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बिहार के रोहतास में चार हजार महिलाओं ने लिखी बदलाव की कहानी, बंदिशें तोड़कर जोड़ रहीं हैं ईंटें

बिहार के रोहतास के नक्‍सल प्रभावित तिलाथू में चार हजार महिलाएं समाज की बंदिशें तोड़कर बदलाव की गाथा लिख रहीं हैं। वे गांवों में राजमिस्त्री बढ़ई इलेक्ट्रिशियन व प्लंबर के काम कर रहीं हैं। गांवों के परंपरागत माहौल में ऐसा करना आसान नहीं था लेकिन उन्‍होंने इतिहास रच दिया है।

By Amit AlokEdited By: Updated: Fri, 12 Nov 2021 10:06 PM (IST)
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रोहतास के चिलौथू में मशीन पर काम कर रही महिला राजमिस्त्री। तस्‍वीर: जागरण।
रोहतास, प्रेम पाठक। घर में बुझा चूल्हा और बाहर समाज की लगी बंदिशों का अंधेरा। एक तरफ उम्मीद भरी निगाहों से टुकुर-टुकुर ताकते बच्चे तो दूसरी ओर सैकड़ों निगाहें, जो किसी महिला को मजदूरी की इजाजत तो देते हैं, पर ईंट जोडऩे की नहीं। इन सबके बीच गिरती-पड़ती एक मां की मजबूरी ने जैसे साहस बटोरा। लोक-लाज का घूंघट उठा कदम बाहर निकाले तो जमाना भौंचक रह गया। चेहरे पर थी स्वाभिमान की दमक। हौसले के जोर से बंदिशें टूटती चली गईं और 4,000 से ज्यादा महिलाएं बन गईं बदलाव की वह नायिका, जिसे लोग सम्मान के साथ कहते हैं राजमिस्त्री!

नक्सल प्रभावित इलाके में नई बयार

यह बिहार में रोहतास जिले का तिलौथू प्रखंड नक्सल प्रभावित इलाका है, जहां अब एक नई बयार बह रही है। महिलाएं गांवों में मजदूरी तो करती थीं, पर राजमिस्त्री या कारपेंटर नहीं थीं। आज यहां 4,675 महिलाएं राजमिस्त्री का काम रही हैं, 670 महिलाएं कारपेंटर हैं, 220 इलेक्ट्रिशियन और 290 महिलाएं प्लंबर हैं। देखते-देखते खड़ी हो गई फौज गमला हो या छत की ढलाई, शौचालय हो या सड़क किनारे लगने वाला मील का पत्थर, हर काम अब उनके जिम्मे है।

महिलाओं का कार्य सराहनी

अनुमंडल पदाधिकारी डेहरी समीर सौरभ ने कहा महिलाओं द्वारा इस प्रकार के रेडीमेड दीवार नीव और छत से किसी भी स्थान पर रेडीमेड घर तैयार किया जाना सराहनीय कदम है। जिसे 48 घंटे में किसी भी स्थल पर घर के रूप में तैयार कर दिया जाता है। इसी प्रकार रेहल में पुलिस संवाद कक्ष के रूप में तैयार है।

(रोहतास की मेहनतकश महिलाओं ने बनाए गमले और फव्वारे।)

गांवों में रहकर आसान नहीं था काम

गांवों में रहकर यह सब करना आसान नहीं था। इन्हें राह दिखाई तिलौथू महिला मंडल ने। करीब चार साल पहले महिलाएं इस समूह से जुड़ीं और प्रशिक्षण लेना शुरू किया। देखते-देखते एक फौज खड़ी हो गई। कल तक मजदूरी करने वाली महिलाएं अब कुशल कारीगर बन गई थीं। इन्होंने ही जिले में पहली बार प्री-कास्ट (पूर्व निर्मित दीवार) का निर्माण किया।

महिलाओं ने तैयार की रेडीमेड दीवार

घर की दीवार हो, छत या नींव, महज 48 घंटे में बनकर तैयार हो जाएगी। इन खास राजमिस्त्रियों का हुनर है कि आज  उत्तर प्रदेश और झारखंड के सीमावर्ती जिलों से भी इन्हें काम मिल रहा है। कैमूर पहाड़ी पर रेहल गांव में पुलिस संवाद कक्ष हो या चार दर्जन घर, इनका निर्माण इन महिलाओं ने ही किया है। इस केंद्र की दीवार, छत आदि का निर्माण महिला राजमिस्त्री ने ही किया है और इसे सेट करने में उन्हें महज 48 घंटे लगे। उन्होंने कम लागत और कम समय में बेहतर कार्य किया। वे जो कर रही हैं, वह अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणादायी है।'

(चिलौथू महिला मंडल की सदस्यों द्वारा रेहल में निर्मित पुलिस संवाद कक्ष।)

लोग बुलाते हैं सम्मान से

तिलौथू महिला मंडल की सचिव रंजना सिन्हा कहती हैं, 'संस्था स्व संचालित है। कहीं से किसी तरह का कोई सहयोग नहीं लिया जाता है। जो भी ऑर्डर मिलता है, उसे पूरा किया जाता है। जो भी आय होती है, उसे महिलाएं आपस में बांट लेती हैं।' इनमें कई महिलाएं ऐसी हैं, जिनके पति गुजर गए हैं या परित्यक्ता हैं, पर अब वे अपने बलबूते पर पूरे स्वाभिमान से जी रही हैं। उनकी काबिलियत को देखते हुए उन्हें सरकारी और निजी कंपनियों से भी आर्डर मिल रहा है। घर बनाना हो, बिजली की वायरिंग करानी हो या पाइप का काम हो, लोग अपने घर को बनाने-सजाने की जिम्मेदारी इन्हें ही देते हैं।

(चिलौथू महिला मंडल की सचिव रंजना सिन्हा)

खुद बदली अपनी किस्मत

सरैया गांव की शकीला खातून बताती हैं, 'पति अस्वस्थ रहते थे। दो वक्त की रोटी का इंतजाम भी बमुश्किल हो पाता था। तीन बेटे व तीन बेटियों के भोजन-पानी की चिंता थी सो, घर की देहरी लांघने का फैसला किया। आज 18 हजार रुपए महीना काम रही हूं। बेटियों का विवाह भी इसी से किया।' इसी तरह राजपुर की अनिता देवी बताती हैं कि शादी के बाद पति दिल्ली चले गए, लेकिन इतनी कमाई नहीं थी कि घर पर पैसे भेज सकें। सो, उन्होंने स्वयं प्रशिक्षण लेकर राजमिस्त्री का काम शुरू किया। आज हर महीने करीब 17 हजार रुपए कमा लेती हैं। एक बेटा आइटीआइ में पढ़ रहा है, दो स्कूल में शिक्षा ले रहे हैं।'

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