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Bihar Politics: एक ऐसी लोकसभा सीट जिसने सभी का रखा मान, कभी पत्थर तोड़ने वाली को पहुंचाया संसद तो...

Loksabha Election 2024 सत्रहवें लोकसभा चुनाव के लिए इलेक्शन कमीशन ने तारीखों का एलान कर दिया है। सभी पार्टियां अपनी-अपनी चालें चलनी शुरु कर दी हैं। गया संसदीय सुरक्षित सीट पर अबतक के आंकड़े यह दर्शाते हैं कि किसी एक का होकर नहीं रहना चाहिए। समय-समय पर सभी को मौका देना चाहिए। गया एक ऐसी संसदीय सीट है जहां पार्टी के साथ-साथ व्यक्तित्व भी बदलता रहा है।

By Mohit Tripathi Edited By: Mohit Tripathi Updated: Thu, 21 Mar 2024 04:36 PM (IST)
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गया लोकसभा सीट का राजनीतिक इतिहास। (फाइल फोटो)
नीरज कुमार, गया। 17वें लोकसभा चुनाव की बिसात बिछ गई है, सभी पार्टी अपनी-अपनी चालें चलनी शुरु कर दी हैं। गया संसदीय सुरक्षित सीट पर अबतक के आंकड़े दर्शाते हैं कि किसी एक के होकर नहीं रहें। समय-समय पर गया संसदीय सीट ने पार्टी के साथ-साथ व्यक्तित्व को भी बदला है।

गया ऐसी सुरक्षित संसदीय क्षेत्र है, जहां पत्थर तोड़ने वाली महिला भगवती देवी भी संसद तक पहुंच गई। और भाजपा के सीधे सादे नाटे कद के ईश्वर चौधरी ने भी लगातार अपनी जीत दर्ज कर मानो इस क्षेत्र को भाजपा का क्षेत्र हीं घोषित कर दिया था, जबकि अब परिस्थिति बदल चुका है।

वोटर का मन मिजाज भी बदला हुआ है। गया संसदीय क्षेत्र का सुरक्षित होना खुद कई वोटरों को दर्द देता है। देश के इस महासमर में वे अपनी भागीदारी सिर्फ निभाना जानते हैं, उनका लगाव पड़ोस के संसदीय क्षेत्र से ज्यादा रहता है। चूंकि इस क्षेत्र में सब कुछ सामान्य है। जीत-हार तो किसी ना किसी के पाले जाना हीं है।

यहां विकास की कोई बड़ी लकीर नहीं खींचा

देश की आजादी के बाद वर्ष 1957 में गया संसदीय सीट का गठन हुआ। उस वक्त गया संसदीय सीट पर प्रथम सांसद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ब्रजेश्वर प्रसाद रहे। इनका कार्यकाल 1962 तक रहा। यही कार्यकाल सामान्य जाति के लिए रहा।

इसके बाद गया संसदीय सीट को सुरक्षित यानि अनुसूचित जाति के लिए कर दिया गया। इसके बाद से 2019 तक अनुसूचित जाति के उम्मीदवार ही गया संसदीय सीट से लोकसभा में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

सांसद के बेहतर काम का राह तकता गया

गया जैसे धार्मिक, ऐतिहासिक नगरी से लोकसभा में प्रतिनिधि किए हैं। गया से प्रतिनिधित्व करने वाले उम्मीदवारों का कार्यकाल निरंतर बढ़ता गया। लेकिन कोई भी बड़ा कार्य गया संसदीय क्षेत्र में नहीं दिखता है।

सबसे बड़ी बात है कि गया शहरी क्षेत्र और राष्ट्रीय राजमार्ग पर आज भी कई तरह की समस्या है। गया शहरी क्षेत्र की आबादी बढ़ी, लेकिन देश की आजादी के बाद फ्लाई ओवर नही बन सकता है।

नतीजन है कि दूसरे देश व प्रदेश से आने वाले पर्यटकों को जाम की समस्या से जूझना पड़ता है। सांसदों के प्रयास से यहां कोई रोजगार का साधन उपलब्ध नहीं कराया गया है।

इसका प्रतिफल है कि दूसरे प्रदेशों में रोजगार खोजने के लिए युवा पलायन करते है। यहां विकास की कोई बड़ी लकीर नहीं खींचा गया है।

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