Our Heritage: ऐतिहासिक दाउद खां के किले की संवरेगी सूरत, पर्यटन स्थल दर्जा मिलने की उम्मीद
सत्रहवीं शताब्दी में निर्मित दाउद खां के किले के सौंदर्यीकरण में पुरातत्व विभाग जुटा है। हालांकि करीब एक साल से काम बंद पड़ा है। अतिक्रमण भी बाधक बन रहा है। औरंगजेब के सिपहसलार दाउद खां ने इस किले का निर्माण कराया था।
ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, 17 वीं शताब्दी में दाउद खां के किला का निर्माण हुआ था। 1663 (1074 हिजरी) में यहां किला का निर्माण शुरू कराया गया, जो 10 साल बाद 1673 में बन कर तैयार हो गया। दाउद खां औरंगजेब का सिपहसालार था। वह 1659 से 1664 तक बिहार का सूबेदार था। पलामू फतह के बाद बादशाह औरंगजेब ने दाउद खां को अंछा, मनोरा परगना भेंट किया था। उसके बाद दाउद खां ने किला का निर्माण कराया था। इसे बनाने में दस साल लग गए थे।
ऐतिहासिक तथ्य है कि दाउद खां के आगमन से पूर्व यह बस्ती अंछा परगना का सिलौटा बखौरा था। दाउदनगर का लिखित इतिहास दाउद खां से ही शुरू हुआ। माना जाता है कि उनके नाम पर ही इस शहर का नाम दाउदनगर पड़ा।1659 में औरंगजेब के शासनकाल में बिहार में प्रथम सूबेदार दाउद खां कुरैशी को बनाया गया। तीन अप्रैल 1660 को दाउद खां पलामू फतह के लिए पटना से रवाना हुआ। जब पलामू फतह हो गया तो पटना लौटने के क्रम में कुछ कारण वश अंछा परगना में उसे रुकना पड़ा। शिकार का शौक था जब वे शिकार पर निकलने लगे तो जानकारी दी गई कि यह इलाका बड़ा खतरनाक है। बड़े इलाके का राजस्व जब दिल्ली पहुंचाने के क्रम में इस इलाके के रास्ते में ही उसे लूट लिया जाता था। इस बात की सूचना बादशाह तक पहुचा दी गयी।
12715.40 वर्ग मीटर है क्षेत्रफल
किले का क्षेत्रफल 12715.40 वर्गमीटर है। लेकिन सुधि नही लिए जाने के कारण यह खंडहर में तब्दील होने लगा। अतिक्रमण का भी शिकार हुआ। जीर्णोद्वार के लिए टेंडर हुआ, पर अतिक्रमण के कारण ठेकेदार ने काम छोड़ दिया। तब इसकी पुरातत्व विभाग ने सुध ली। फिर टेंडर हुआ। सौंदर्यीकरण के लिए करीब साढ़े चार करोड़ का डीपीआर बनाया गया। बिहार राज्य भवन निर्माण निगम के तहत शारदा सिक्यूरिटी ने काम शुरू कराया। चारदीवारी के साथ शौचालय, कमरे, चारो कोने पर शेड का निर्माण कराया गया। दोनों मुख्यद्वार पर दरवाजा भी लगा दिया गया। किला का सौन्दर्यीकरण तो हुआ है पर यह अधूरा है क्योंकि अतिक्रमण नही हटाए जाने से चारदीवारी पूरी नहीं हो सकी। वैसे पुरातत्व विभाग की पहल के बाद इसकी कुछ स्थिति बदल गई है। अब यहां साफ-सफाई रहती है। सुबह-शाम लेाग सैरसपाटे के लिए लोग पहुंचते हैं।
एक साल से बंद पड़ा है काम
पुरातत्व विभाग ने करीब ढाई वर्ष पहले परिसर के सौंदर्यीकरण का काम शुरू कराया था। कभी धीमी तो कभी तेज गति से काम चलता रहा। इधर साल भर से काम पूरी तरह बंद है हालांकि दोनों तरफ गेट लगा दिया गया है। दक्षिण -पश्चिम की तरफ की चारदीवारी करा दी गई है। लेकिन उत्तर की ओर चारदीवारी नहीं बनी है। अतिक्रमण की वजह से ऐसा है। परिसर में चारों तरफ पैदल पथ का निर्माण कराया गया है। पांच पीसीसी पथ बनाए गए हैं। कई जगहों पर लोगों को बैठने के लिए चबूतरा बनाया गया है। पौधे और फूल लगाने के लिए गैबियन लगाए गए हैं। नौ लाइट टांग दिए गए हैं हालांकि यह चालू नहीं हुआ है। इसी तरह पीने के लिए पानी टंकी लगाया गया है, शौचालय का निर्माण भी कराया गया है जो चालू अवस्था में नहीं है।