Move to Jagran APP

च्‍यवन ऋषि का दर्शन करने पहुंचे थे भगवान राम, आप जानते हैं कितने वर्षों से जल रहा यहां का अग्निकुंड

औरंगाबाद के देवकुंड धाम में सालोंभर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मान्‍यता है कि यहां च्‍यवन ऋषि का अाश्रम है। यहीं भगवान राम ने उनके दर्शन किए थे। इस स्‍थान को पर्यटन स्‍थल के रूप में विकसित करने की मांग होती आ रही है।

By Vyas ChandraEdited By: Updated: Sat, 12 Dec 2020 07:10 AM (IST)
Hero Image
देवकुंड स्थित च्‍यवन ऋषि का आश्रम। जागरण

जेएनएन, औरंगाबाद।  जिला मुख्यालय से 60 किमी की दूरी पर है देवकुंडधाम। आस्‍था के इस केंद्र में सालोभर भक्तों की भीड़ लगी रहती है। प्राचीन सरोवर पर महाआरती दूर-दूर के श्रद्धालुओं को यहां खींचती है। पौराणिकता से जुड़े इस जगह पर च्‍यवन ऋषि के आश्रम के अवशेष मौजूद हैं। मान्‍यता है कि भगवान राम भी यहां पहुंचे थे। यहां उन्‍होंने च्‍यवन ऋषि का आशीर्वाद लिया था। कहा जाता है कि पांच सौ वर्ष पहले से स्थापित अग्निकुंड की आग अब तक नहीं बुझी है। कुंड में अब भी हवन होता है। मंदिर में शिवलिंग, देवी देवताओं की प्रतिमाएं भी हैं। पद्म पुराण, पाताल खंड, वायु पुराण, आनंद रामायण जैसे धार्मिक ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। ऐसे में इस स्‍थल की महत्‍ता स्‍वाभाविक भी है।

भगवान राम ने की थी शिवलिंग की स्‍थापना

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान राम हजारों वर्ष पूर्व कर्मनाशा नदी पार कर देवकुंड पहुंचे। यहां च्‍यवन ऋषि के सरोवर में स्‍नान किया। सरोवर के नाम पर ही इस स्थान का नाम देवकुंड रखा गया। च्यवन ऋषि ने सप्त नदियों एवं सिंधु के जल को मिलाकर इस सरोवर का निर्माण कराया। पुनपुन एवं मंदार नदी के संगम पर होने के कारण यह पवित्र तीर्थ स्थल है। भगवना राम ने ही यहां शिवलिंग स्थापित की। यह शिवलिंग बाबा दुधेश्‍वरनाथ के नाम से पूरे राज्य में प्रसिद्ध है। सावन मास में यहां कई राज्यों से शिवभक्त जल चढ़ाने पहुंचते हैं। पटना में गंगा स्नान कर भक्त पैदल जल चढ़ाने आते हैं। मंदिर परिसर में लग्न के समय सैकड़ों की संख्‍या में विवाह होता है। 

 सरोवर में सप्त नदियों के जल का है समावेश : 

कथा है कि गया शहर की स्थापना करने वाले राजर्षिगेय ने अश्‍वमेध यज्ञ का आयोजन किया। इसमें भाग लेने गया पहुंचे ऋषि च्यवन ने उस समय ककीट देश (वर्तमान मगध) की व्यापक यात्रा की। यात्रा के दौरान ही उन्होंने सिद्घवन को देखा जो सोनभद्र व पुनपुन के बीच स्थित था। सिद्घवन यानी देवकुंड से प्रभावित च्यवन ऋषि तपस्या में बैठ गए। काफी दिनों तक आसन पर बैठने के कारण उनका शरीर एकत्रित मिट्टी से ढक गया। इसी दौरान राजा ययाति अपनी पुत्री सुकन्या के साथ यहां पहुंचे। सुकन्या और च्यवन ऋषि ने इसी सरोवर में छठ किया था। उनकी मनोकामनाएं पूरी हुईं। यहां सरोवर में स्‍नान से च्यवन ऋषि शरीर ठीक हो गया।

24 घंटे कुंड से होती है अग्नि प्रज्‍ज्वलित :

मान्‍यता है कि देवकुंड मठ का अग्निकुंड करीब 500 से अधिक वर्षों से प्रज्जवलित है। अग्निकुंड की आग अब तक नहीं बुझी है। 24 घंटे लगातार कुंड से अग्नि प्रज्वलित होती रहती है। महर्षि भृगु को उत्पन्न करने वाली

इस कुंड का रहस्य आजतक कोई समझ नहीं सका है। 

पहले की अपेक्षा देवकुंड की स्थिति बेहतर

महंत कन्हैयानंदपुरी ने बताया कि पहले की अपेक्षा देवकुंड की स्थिति काफी सुधर गई है। प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु बाबा दुधेश्वरनाथ के दर्शन को आते हैं। अग्निकुंड की अपनी एक विशेष महता है। च्वयन ऋषि के आश्रम को बेहतर किया जा रहा है। संस्कृत विद्यालय यहां केवल कागजों पर चलाया गया था, धरातल पर नहीं दिखाई दिया। गुरुकुल में शिक्षा देने को लेकर कार्य किया जा रहा है। इसके लिए सभी का सहयोग मिल रहा है।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।