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जन्म के शुरुआती 42 दिनों तक शिशु को विशेष देखभाल की जरूरत, जानिए ये जरूरी बातें

शिशु जन्म के शुरूआती 42 दिन अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान उचित देखभाल के अभाव में शिशु के मृत्यु की संभावना अधिक होती है। ऐसे में होम बेस्ड न्यू बोर्न केयर कार्यक्रम काफी कारगर साबित हो रहा है।

By Sumita JaiswalEdited By: Updated: Wed, 04 Aug 2021 11:21 AM (IST)
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नवजात के खतरे के संकेतों को समझना जरुरी, सांकेतिक तस्‍वीर।
भभुआ, जागरण संवाददाता। प्रसव के बाद नवजात के बेहतर देखभाल की जरूरत बढ़ जाती है। संस्थागत प्रसव के मामलों में शुरूआती दो दिनों तक मां और नवजात का ख्याल अस्पताल में रखा जाता है। लेकिन गृह प्रसव के मामलों में पहले दिन से ही नवजात को बेहतर देखभाल की जरूरत होती है। शिशु जन्म के शुरूआती 42 दिन अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान उचित देखभाल के अभाव में शिशु के मृत्यु की संभावना अधिक होती है। ऐसे में होम बेस्ड न्यू बोर्न केयर (एचबीएनसी) यानि गृह आधारित नवजात देखभाल कार्यक्रम काफी कारगर साबित हो रहा है। इस कार्यक्रम के तहत संस्थागत प्रसव एवं गृह प्रसव दोनों स्थितियों में आशा घर जाकर 42 दिनों तक नवजात की देखभाल करती है। स्वास्थ्य विभाग की इस पहल से शिशु मृत्यु दर में काफी गिरावट आई है।

गृह आधारित नवजात देखभाल पर अधिक ध्यान:

अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. जितेंद्र नाथ ङ्क्षसह ने बताया कि नवजात देखभाल सप्ताह के दौरान आशाओं द्वारा किए जा रहे गृह आधारित नवजात देखभाल पर अधिक जोर दिया जाता है। इसके लिए आशाओं को निर्देशित भी किया गया है कि वह गृह भ्रमण के दौरान नवजातों में होने वाली समस्याओं की अच्छे से पहचान करें एवं जरुरत पडऩे पर उन्हें रेफर भी करें। आशाएं गृह भ्रमण के दौरान ना सिर्फ बच्चों में खतरे के संकेतों की पहचान करती हैं, बल्कि माताओं को आवश्यक नवजात देखभाल के विषय में जानकारी भी देती हैं।

संस्थागत प्रसव में छह एवं गृह प्रसव में सात भ्रमण :

कुदरा प्रखंड की आशा कार्यकर्ता निर्मला देवी ने बताया कि एचबीएनसी कार्यक्रम के कारण जन्म के बाद शिशुओं में होने वाली जटिलताओं का भी पता चलता है। जिसका समय पर इलाज संभव ही पता है। कार्यक्रम के तहत आशाएं संस्थागत एवं गृह प्रसव दोनों स्थितियों में गृह भ्रमण कर नवजात शिशु की देखभाल करती है। संस्थागत प्रसव की स्थिति में छह बार (जन्म के 3, 7,14, 21, 28 एवं 42 वें दिवस पर) गृह भ्रमण करती है। गृह प्रसव की स्थिति में 7 बार (जन्म के 1, 3, 7,14, 21, 28 एवं 42 वें दिवस पर) गृह भ्रमण करती हैं।

कार्यक्रम का यह है उद्देश्य :

- सभी नवजात शिशुओं को अनिवार्य नवजात शिशु देखभाल सुविधाएं उपलब्ध कराना एवं जटिलताओं से बचाना

- समय पूर्व जन्म लेने वाले नवजातों एवं जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों की शीघ्र पहचान कर उनकी विशेष देखभाल करना

- नवजात शिशु की बीमारी का शीघ्र पता कर समुचित देखभाल करना एवं रेफर करना

- परिवार को आदर्श स्वास्थ्य व्यवहार अपनाने के लिए प्रेरित करना एवं सहयोग करना

- मां के अंदर अपने नवजात स्वास्थ्य की सुरक्षा करने का आत्मविश्वास एवं दक्षता को विकसित करना

इन लक्षणों को न करें अनदेखा :

सही समय पर नवजात की बीमारी का पता लगाकर उसकी जान बचायी जा सकती है। इसके लिए खतरे के संकेतों को समझना जरुरी होता है। खतरे को जानकर तुरंत शिशु को नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र ले जायें।

- शिशु को सांस लेने में तकलीफ हो

- शिशु स्तनपान करने में असमर्थ हो

- शरीर अधिक गर्म या अधिक ठंडा हो

- शरीर सुस्त हो जाए

- शरीर में होने वाली हलचल में अचानक कमी आ जाए

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