पितृ पक्ष शुरू: पांच कोस, पंद्रह दिन और पचपन पिंडवेदी पर आज से तर्पण-अर्पण; यहां समझें पिंडदान की अहमियत
आज से पितृ पक्ष का आरंभ हो गया है। गया में पिंडदानियों के लिए इसको लेकर खास इंतजाम किए गए हैं। आज से पांच कोस में पंद्रह दिनों तक पचपन पिंडवेदियों पर अपने पूर्वजों के प्रति तर्पण और समर्पण का भाव लेकर पुत्रों का आना गयाजी में आना शुरू हो गया है। पितृपक्ष आज से शुरू होकर 14 अक्टूबर तक चलेगा।
कमल नयन, गया: पंचक्रोशं गया क्षेत्रे तीनक्रोशमेकं गयाशिर: तन्मध्ये सर्वतीर्थानि। यही गयाजी है। पांच कोस में पंद्रह दिनों तक पचपन पिंडवेदियों पर अपने पूर्वजों के प्रति तर्पण और समर्पण का भाव लेकर पुत्र गयाजी आते हैं। पुत्रों का गयाजी आना प्रारंभ हो गया है।
शहर का दक्षिणी इलाका विष्णुपद क्षेत्र विशेषकर महासंगम का क्षेत्र माना जाता है। देश के विभिन्न कोने से आने वाले तीर्थयात्री इस क्षेत्र में रहना ज्यादा पसंद करते हैं। पितृपक्ष का दिवस भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी से आरंभ होकर आश्विन कृष्णपक्ष प्रतिपदा तक चलता है।
14 अक्टूबर तक पितृ पक्ष
पितृ पक्ष 28 सितंबर से प्रारंभ होकर 14 अक्टूबर तक चलेगा। इस पक्ष के बारे में अग्निपुराण में यह भी कहा गया है कि जो व्यक्ति गयाजी में तीन पक्ष यानी 17 दिनों तक निवास करते हैं, वे अपनी सात पीढ़ियों को तार देते हैं।
कालांतर में यहां 365 पिंडवेदियां थी। जो शनै:-शनै: विलुप्त होती गई। अब 55 पिंडवेदियों पर भी पिंडदान एकबार हो जाता है। वैसे समयाभाव के कारण एक दिवसीय पिंडदान काफी लोकप्रिय हो गया है। इसमें श्रद्धालु फल्गु में तर्पण के बाद विष्णुपद और अक्षयवट में पिंडदान का विधान करते हैं और यही कर्मकांड पूर्ण हो जाता है।
पिछले कुछ वर्षों में 17 दिवसीय पिंडदान के प्रति भी लोगों का रुझान बढ़ा है। 17 दिवसीय पिंडदान में सभी पिंडवेदियों पर एक-एक दिन का कर्मकांड कराया जाता है। इसके पहले भागवत कथा का भी प्रचलन बढ़ गया है।
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दिवंगत पूर्वजों का श्रद्धापूर्वक स्मरण
भारतीय संस्कृति की यह विशेषता है कि हम अपने दिवंगत पूर्वजों को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं। इसकी पूरी झलक गयाजी में पंद्रह दिनों तक दिखती है। गयाजी अन्य कई क्षेत्रों में भी विभिन्न रूप से विद्यमान है।
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ओडिशा के जाजपुर के वैतरणी तीर्थ सहित नाभी गया, आंध्रप्रदेश के पीठमपुर के पादगया क्षेत्र, गुजरात के सिद्धपुर कोमात्र गयाक्षेत्र और उत्तराखंड के बद्रीनाथ को ब्रह्मकपाली गया कहा गया है। वैसे में गया डी तीर्थ पूजनीय और वंदनीय है।