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मशहूर बनारसी पान का बिहार के नवादा से है गहरा नाता जानिए कैसे, मगध की शान है “मगही पान”

पकरीबरावां प्रखंड के छात्रवार एवं डोला गांव में लगभग चार सौ किसान मगही पान की खेती करते हैं। यहां के किसान मगही पान को बनारस की मंडी में बेचते हैं। बनारस के व्यापारी मगही पान की प्रोसेसिंग करते हैं। प्रोसेसिंग के बाद उसी पान को बनारसी पान कहा जाता है।

By Prashant Kumar PandeyEdited By: Updated: Fri, 13 May 2022 10:24 AM (IST)
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मगध की शान है “मगही पान”, जागरण आर्काइव
 संवाद सूत्र, पकरीबरावां (नवादा): पकरीबरावां प्रखंड के छात्रवार एवं डोला गांव में लगभग चार सौ किसान मगही पान की खेती करते हैं। यहां के किसान मगही पान को बनारस की मंडी में बेचते हैं। बनारस के व्यापारी मगही पान की प्रोसेसिंग करते हैं। प्रोसेसिंग के बाद उसी पान को बनारसी पान कहा जाता है। पान के शौकीनों को लुभाने वाला मगही पान न सिर्फ प्रखंड, जिले की शान है, बल्कि इसके कद्रदान तो बाबा नगरी वारणसी, पश्चिम बंगाल के अलावा नेपाल, बंगलादेश और पाकिस्तान तक हैं।

बरेजा के अंदर दिखती है पान की हरियाली

पान उत्पादक किसान हरिद्वार चौरसिया, सतीश प्रसाद, राजेश चौरसिया, श्रवण चौरसिया, नरेश चौरसिया ने कहा कि जिस जमीन में बरेजा बनाया जाए उसका ढाल सही होना चाहिए। जिससे किसी भी प्रकार का पानी उसमें रुक न सके। बरेजा के अंदर ही पान की फसल लगाई जाती है। जिस जगह भी बरेजा बनाया जाता है, वहां किसी तालाब की काली मिटटी की मोटी परत नीचे डाल दी जाती है। 

बरेजा का निर्माण करने के लिए जगह के हिसाब से बांस काटी जाती है। ताकि आपको बेल को सहारा देने के लिए मजबूत बरेजा बन सके। इसे मार्च से लेकर अप्रैल तक लगाया जाता है। पान उत्पादक किसान इन दिनों बरेजा को तैयार करने में जुट गए हैं। बरेजा बनाते समय ध्यान दिया जाता है कि उसकी दिशा ठीक रहे। भविष्य में आने वाले तूफ़ान इसको क्षतिग्रस्त न कर सके।

टपकन विधि से होती है सिंचाई

पान की बेल को अधिक जल की आवश्यकता होती है। इसमें टपक विधि से सिंचाई की जाती है। इसके लिए आप को जगह जगह मिट्टी के घड़े बांधकर लटका दे। पान की रोपाई के 10 दिन तक रोजाना 3 से 4 बार लोटा या मिटटी के घड़े से पानी पटाया जाता है। इसमें मौसम के अनुसार सिंचाई होती है। गर्मी के मौसम में 5-7 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जरूरत पड़ती है, वहीं जाड़े में 10-15 दिन के अंतराल पर जबकि बरसात में सिंचाई की विशेष आवश्यकता नहीं रहती है, फिर भी जरूरत पड़े तो हल्की सिंचाई कर देते हैं। 200 पान पत्तों की एक ढोली होती है। जिसकी बाजार कीमत 50 से 150 रुपये तक होती है। 

प्रखंड उद्यान के प्रभारी पदाधिकारी सुनील कुमार ने कहा कि सरकार द्वारा फिलहाल पान उत्पादक किसानों के लिए मंडी की व्यवस्था नहीं है। पान उत्पादक किसानों को समय-समय पर अनुदान लाभ दिया जाता है।

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