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Bihar Politics: भूमिहार और यादवों की आन है यह लोकसभा सीट, 1962 से ही होती रही है टक्कर, इस बार भी होगा खेला?

Bihar News Today बिहार की जहानाबाद लोकसभा सीट काफी चर्चा में है। इस सीट पर भूमिहार और यादव के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिलती है। 1962 से ही यादव और भूमिहार समाज के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिलती रही है। हालांकि नीतीश कुमार ने अपने समीकरण से 2019 में इस मुकाबले को अलग ही रंग दे दिया था।

By dheeraj kumar Edited By: Sanjeev KumarUpdated: Wed, 07 Feb 2024 03:12 PM (IST)
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लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार (जागरण)
राकेश कुमार, जहानाबाद। Bihar Political News: जहानाबाद संसदीय सीट पर भूमिहार और यादव समाज से आने वाले उम्मीदवारों के बीच ही सीधा मुकाबला होता रहा है। दोनों जाति में से कोई एक ही यहां के सांसद निर्वाचित होते रहे हैं। वर्ष 2019 में पहली बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने सोशल इंजीनियरिंग का उपयोग करते हुए चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी को चुनाव मैदान में उतरा और जीत हासिल की।

1962 से यादव और भूमिहार के बीच होता रहा है मुकाबला (Yadav vs Bhumihar)

भूमिहार और यादव की बहुलता वाले इलाके में जातीय समीकरण की पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए चंद्रवंशी चुनाव जीतने में सफल रहे। इससे पहले 1962 से 2019 तक जहानाबाद संसदीय सीट (Jehanabad Lok Sabha Seat) पर भूमिहार और यादव समाज के उम्मीदवारों का ही कब्जा रहा। 1962 के चुनाव में भूमिहार समाज से आने वाली सत्यभामा देवी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतने में सफल रही।

मूल रूप से मुंगेर की रहने वाली सत्यभामा देवी गरीबों के बीच जमीन दान कर लोकप्रियता हासिल की थी। उसके बाद 1967 और 71 में यादव समाज से आने वाले चंद्रशेखर सिंह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर लोकसभा पहुंचे। 1977 में यादव समाज के ही हरिलाल प्रसाद सिंह बीएलडी पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतने में सफल रहे। 1980 में भूमिहार समाज के महेंद्र प्रसाद कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे।

1984 से 2019 तक यादव समाज का रहा है दबदबा

1984 से 1996 तक के चुनाव में यादव समाज (Yadav) के रामश्रय प्रसाद लगातार चार बार चुनाव भाकपा के टिकट पर चुनाव जीतते रहे। इसके बाद बिहार में यादव समाज के नेता के रूप में लालू प्रसाद ने अपनी लोकप्रियता पूरे प्रदेश में हासिल की। इसका असर जहानाबाद में भी हुआ। कम्युनिस्ट पार्टी का गढ़ लालू की लोकप्रियता के सामने ध्वस्त हो गया। लेकिन जातीय समीकरण में कोई बदलाव नहीं हुआ।

1998 के चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर सुरेंद्र प्रसाद यादव चुनाव जीतने में सफल रहे। लेकिन 1999 के उपचुनाव में फिर यह सीट भूमिहार समाज के बीच आ गई। इसी समाज से आने वाले अरुण कुमार जदयू के टिकट पर सदन पहुंचे।

2004 में फिर यादव समाज से आने वाले गणेश प्रसाद सिंह राजद के टिकट पर चुनाव जीते। 2009 में भूमिहार समाज के जगदीश शर्मा जदयू के टिकट पर तो इसी समाज के अरुण कुमार रालोसपा के टिकट पर 2014 में चुनाव जीत कर सदन पहुंचे। 2019 में पहली बार चंद्रवंशी समाज के चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी चुनाव जीतकर दिल्ली पहुंचे।

संसदीय क्षेत्र में विकास के गूंजते मुद्दे

Bihar News: जब जहानाबाद में बिजली नहीं थी, तब यहां चमरा शोधन, बाल्टी और बल्ब की फैक्ट्रियां चलती थी। धीरे-धीरे ये सभी उद्योग धंधे बंद हो गए। इन उद्योगों को फिर से संचालित करने का मुद्दा कई दशकों से बना हुआ है। जिस पर चुनाव के समय भाषण भी होते हैं।

लेकिन प्रत्याशियों को भी पता होता है कि समस्याओं के निराकरण से ज्यादा जातीय कार्ड यहां फायदेमंद होगा। राजा बाजार रेलवे अंडरपास की बदहाली अब तक दूर नहीं हो सकी जबकि हमेशा चुनाव में यह मुद्दा रहा है। हर खेत तक पानी, दम तोड़ती नदियों की साफ-सफाई, जिला बने कई वर्ष बाद भी अरवल मुख्यालय में डिग्री कॉलेज का अभाव, जहानाबाद सब्जी मंडी में मल्टी कांप्लेक्स भवन का निर्माण समेत दर्जनों ऐसे मुद्दे हैं जो इसबार भी चुनावी सभा में गुजेंगे।

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