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Bihar News: आस्था और प्रकृति दर्शन का 'शिखर', समृद्ध इतिहास से परिचित कराती हैं वाणावर की पहाड़ियां

बिहार के जहानाबाद जिले में स्थित वाणावर की पहाड़ियां समृद्ध इतिहास से परिचित कराती हैं। जिले के मखदुमपुर प्रखंड में वाणावर पहाड़ी की सबसे ऊंची चोटी पर देश के प्राचीनतम शिव मंदिरों में से एक सिद्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर है। इस मंदिर में जल चढ़ाने के लिए सालों भर श्रद्धालु आते हैं। वहीं सावन में यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

By Jagran NewsEdited By: Shashank ShekharUpdated: Fri, 13 Oct 2023 06:48 PM (IST)
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आस्था और प्रकृति दर्शन का 'शिखर', समृद्ध इतिहास से परिचित कराती हैं वाणावर की पहाड़ियां

धीरज, जहानाबाद। गुफाएं भी कभी निवास करने की सुरक्षित और हर मौसम के अनुकूल रही होंगी, वाणावर (बराबर) पहाड़ियों पर करीने से बनीं गुफाएं इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। पुरानी सभ्यताओं के बारे में जानने समझने के प्रति अभिरुचि रखने वाले पर्यटकों के लिए यहां की यात्रा यादगार हो सकती है।

यह गया प्रमंडल मुख्यालय से 30 किमी उत्तर-पूरब और जहानाबाद जिला मुख्यालय से 25 किमी दक्षिण-पूरब स्थित है।

आप कौतूहल व रोमांच से भर जाएंगे। यह देश के बेहद पुराने पहाड़ों में से एक है। यही कारण है कि इसे स्थानीय लोग मगध का 'हिमालय' पुकारते हैं। अक्टूबर से मार्च तक का मौसम यहां आने लिए बेहतर है।

प्राचीनतम शिव मंदिरों में से एक है सिद्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर

जिले के मखदुमपुर प्रखंड में वाणावर पहाड़ी की सबसे ऊंची चोटी पर देश के प्राचीनतम शिवमंदिरों में से एक सिद्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर भी है। इस शिव मंदिर में जल चढ़ाने के लिए सालों भर श्रद्धालु आते हैं, लेकिन सावन में यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

यहां मगध सम्राट अशोक के शासनकाल के शिलालेख विद्यमान हैं। ब्राह्मी लिपि में लिखे यह अभिलेख उस कालखं‍ड के इतिहास व शासन व्यवस्था के जीवंत प्रमाण हैं। वाणावर ना केवल पहाड़ और जंगल के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां औषधीय पौधों और लौह अयस्क के भी भंडार हैं।

गया प्रमंडल मुख्यालय से 30 किमी उत्तर-पूरब

यह गया प्रमंडल मुख्यालय से 30 किमी उत्तर-पूरब और जहानाबाद जिला मुख्यालय से 25 किमी दक्षिण-पूरब स्थित है। यहां का शांत और प्रदूषण रहित नैसर्गिक सौंदर्य बरबस मन मोह लेता है। पहाड़ी पर राक पेंटिंग के अद्भुत नमूने देखने को मिलेंगे।

गत दिनों इस स्थल के सुंदरीकरण को लेकर सरकारी स्तर पर कई कार्य किए गए हैं। सुरक्षा के लिए अब यहां पुलिस थाने की स्थापना कर दी गई है। बौद्ध सर्किट से जोड़े जाने के साथ-साथ हर वर्ष यहां राजकीय बाणावर महोत्सव का भी आयोजन होता है।

24 करोड़ की लागत से पहाड़ की चोटी तक सुगमता पूर्वक पहुंचने को लेकर चार किमी लंबे रोपवे का निर्माण कार्य चल रहा है। हालंकि कार्य की गति मंद है।

आजीवक बौद्ध भिक्षुओं के लिए सम्राट अशोक ने बनवाई थी गुफाएं

वाणावर की पहाड़ियों पर कुल सात गुफाएं हैं, जो पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। इनमें चार वाणावर पहाड़ियों पर और तीन पास में ही नागार्जुन की पहाड़ियों पर है। पहाड़ों को सावधानी से काट कर हजारों वर्ष पहले इंसान ने बेहद सुंदर गुफाओं को बनाया है।

इनमें से कई गुफाओं की दीवारों को देखकर आप दंग रह जाएंगे। इसकी चिकनाई आज के समय में लगाई जाने वाली टाइल्स से कम नहीं हैं। मौर्य काल की यह स्थापत्य कला पर्यटकों को आश्चर्य से भर देती है। इनका निर्माण सम्राट अशोक के आदेश पर आजीवक संप्रदाय के बौद्ध भिक्षुओं के रहने के लिए करवाया गया था।

इसमें कर्ण चौपर, सुदामा और लोमस ऋषि गुफा अपनी स्थापत्य कला के लिए देश और दुनिया में प्रसिद्ध हैं। गुफाओं के प्रवेश द्वार पर ही सम्राट अशोक के अभिलेख हैं। ब्राह्मी लिपि के जानकार इसे पढ़ और समझ पाते हैं। गाइड इसके बारे में विस्तार से बताते हैं।

सातवीं सदी में बनाया गया था बाबा सिद्धनाथ का मंदिर

वाणावर की चोटी पर अवस्थित बाबा सिद्धनाथ मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में गुप्त काल के दौरान कराया गया था। इसे लेकर दंतकथाओं में यह भी प्रचलित है कि द्वापर युग में मगध सम्राट जरासंध ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। तब यहां से यहां से गुप्त मार्ग मगध की तात्कालीन राजधानी राजगीर किले तक जाता था।

उसी रास्ते से जरासंध पूजा अर्चना करने के लिए मंदिर में आते थे। राजगीर की पंच पहाड़ियों में से एक वैभारगिरी पर भी बाबा सिद्धनाथ मंदिर है, इसके बारे में भी मान्यता है कि निर्माण जरासंध ने कराया था और यहां प्रतिदिन शिवलिंग का जलाभिषेक करते थे। पहाड़ी के नीचे विशाल जलाशय पातालगंगा में स्नान कर मंदिर में पूजा अर्चना की जाती थी। यह जलाशय आज भी है।

राजधानी पटना से कैसे पहुंचें बराबर

पटना से सड़क मार्ग से यहां तीन से चार घंटे में पहुंच सकते हैं। पटना-गया राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 83 से होते हुए मखदुमपुर में जमुने नदी के पुल को पार करने पर पूरब की ओर सड़क जाती है, जो सीधे वाणावर तक पहुंचती है। ट्रेन से आने वाले लोग बराबर हाल्ट पर उतर कर सवारी गाड़ी के माध्यम से भी यहां पहुंच सकते हैं।

यहां पर्यटकों की सुविधा के लिए जिला प्रशासन की ओर से कई इंतजाम किए गए हैं, सुरक्षा के लिए पुलिस रहती है, वहीं खान-पान और ठहरने की सुविधा भी आसानी से मिल जाती है। नजदीकी हवाई अड्डा गया और पटना है। यहां के बाद आप बोध गया, नालंदा व राजगीर का भ्रमण कर सकते हैं।

विश्व धरोहर की सूची में शामिल दो दो प्राचीन धरोहर के दर्शन कर सकते हैं। इनमें महाबोधि मंदिर बोधगया में और प्राचीन नालंदा महाविहार के भग्नावशेष नालंदा में हैं। इनके अतिरिक्त भी भ्रमण योग्य कई स्थल हैं।

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