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Diwali 2023: बिहार के दो ऐसे गांव, जहां 12 नहीं 13 नवंबर को मनाई जाएगी दिवाली; हिंदू-मुस्लिम साथ करते हैं पूजा

बिहार के जमुई जिले में दो ऐसे गांव हैं जहां पर 12 नवंबर की जगह 13 नवंबर को दिवाली का त्योहार मनाया जाएगा। शताब्दियों से यही परंपरा चली आ रही है। गांव के बुजुर्गों का कहना है कि उनके पूर्वजों ने दिवाली के अगले दिन दीपोत्सव मनाना शुरू किया था। वो भी इसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। गांव में मुस्लिम भी हिंदुओं के साथ पूजा करते हैं।

By Ashish Kumar SinghEdited By: Rajat MouryaUpdated: Fri, 10 Nov 2023 05:28 PM (IST)
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बिहार के दो ऐसे गांव, जहां 12 नहीं 13 नवंबर को मनाई जाएगी दिवाली

आशीष सिंह चिंटू, जमुई। Diwali 2023 जमुई जिले में ऐसे भी दो गांव हैं, जहां के लोग देश में दीपावली मनाने के अगले दिन दीपोत्सव मनाते हैं। यह गांव बरहट प्रखंड का गुगुलडीह और सिकंदरा प्रखंड का लछुआड़ है। यहां शताब्दियों से यही परंपरा चली आ रही है। इसके पीछे के कारण आज के लोग सटीक जानते तो नहीं, लेकिन पूर्वजों की परंपरा निभाने की बात कहते हैं। इन गांवों में माता काली की तांत्रिक विधि से पूजा होती है।

पंडित बताते हैं कि चतुर्दशी और अमावस्या के समागमन में मां काली प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। इसके बाद अगले दिन दीपावली मनाई जाती है। इस साल 13 नवंबर को दीवाली मनाई जाएगी।

गुगुलडीह गांव के बुजुर्ग 105 वर्षीय हरिवंश पांडेय, 82 वर्षीय दूनो मंडल, 80 वर्षीय राजेंद्र पंडित और 70 वर्षीय परमानंद पांडेय ने बताया कि वो बचपन से वैदिक रीति की दिवाली के बाद वाले दिन दिवाली मनाते आ रहे हैं। गुगुलडीह में तीन सौ साल से तांत्रिक विधि से काली मां की पूजा की जा रही है।

श्रद्धालुओं में होता है भात मांस का वितरण

बुजुर्गों ने बताया कि अपने पूर्वजों से सुना है कि धमना घराने के कुमार बैजनाथ सिंह ने इस परंपरा की शुरुआत की थी। यहां दक्षिणेश्वर काली है। पूजा के दिन भेढ़, काढ़ा, पाठा, ईख आदि की बलि पड़ती है। इसी स्थल पर प्रसाद बनता है और माता को भोग लगाया जाता है। इसके बाद श्रद्धालुओं में प्रसाद के रूप में भात मांस का वितरण होता है। बलि पड़ने वाले काढ़ा को जमीन में दबा दिया जाता है।

मुस्लिम भी करते हैं पूजा-अर्चना

यहां मुस्लिम समुदाय के लोग भी पूजा में सक्रिय भूमिका निभाते हैं। मुस्लिम समुदाय के मो गफ्फार सरदार, मो सादिक, मो खालिद ने बताया कि उनके पूर्वजों से मां काली की सेवा और पूजा में सहयोग किया जा रहा है। यही परंपरा आज भी वो लोग निभा रहे हैं। इबादत का तरीका अलग-अलग हो सकता है, लेकिन आस्था, विश्वास का ईश्वर एक ही है।

गुगुलडीह पंचायत के मुखिया बलराम सिंह ने बताया कि गांव की आबादी लगभग 19 हजार है। पूरा गांव और हर धर्म के लोग मिलकर मां काली की पूजा करते हैं। इसी प्रकार सिकंदरा प्रखंड के लछुआड़ में भी तंत्रोक्त विधि से होती है। पूजा समिति के अध्यक्ष राकेश वर्णवाल, सचिव मधुकर सिंह ने बताया कि लछुआड़ में मां काली की प्रतिमा का निर्माण एवं पूजन गिद्धौर राजवंश द्वारा लगभग चार शताब्दी पूर्व में प्रारंभ किया गया था जो 20 वर्ष पूर्व तक अनवरत रूप से चलता रहा। अब इसका आयोजन स्थानीय स्तर की समिति करती है जो गिद्धौर महाराज द्वारा बनाई गई है।

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