नमक-भात और सूखा चूड़ा खाकर गुजारा करते हैं ग्रामीण
जमुई। दुमका में गिरफ्तारी के बाद पुलिस हिरासत में 11 लाख के इनामी नक्सली सिद्धू कोड़ा के मौत
जमुई। दुमका में गिरफ्तारी के बाद पुलिस हिरासत में 11 लाख के इनामी नक्सली सिद्धू कोड़ा के मौत के बाद उसका पैतृक गांव निहालडीह चर्चा में है। बिहार-झारखंड सीमा पर चकाई प्रखंड मुख्यालय से 36 किमी की दूरी पर स्थित निहालडीह गांव जाने में काफी कठिनाई होती है। इस दौरान कई बार झारखंड की सीमा में प्रवेश करना पड़ता है और बरमोरिया गांव पहुंचने के बाद निहालडीह जाने के लिए तीन किमी पैदल चलना पड़ता है। क्योंकि आज भी इस हार्डकोर नक्सली के गांव जाने के लिए सड़क नहीं बनी है। लोग पगडंडियों के सहारे ही आते-जाते हैं। यूं कहा जा सकता है कि थाना क्षेत्र के बरमोरिया पंचायत के निहालडीह स्थित हार्डकोर नक्सली सिद्धू कोड़ा के गांव में अब तक विकास की किरण नहीं पहुंच पाई है। गांव में पेयजल की सुविधा का अभाव है। एक भी चापाकल नहीं है। पेयजल का एकमात्र सहारा गांव में बना एकमात्र जलकूप है। गांव के बड़की सोरेन, संझलि बेसरा, संझली बासके आदि का कहना है कि सुविधाओं के अभाव के साथ-साथ गांव में रोजगार का भी अभाव है। लोग जंगल से सखुआ पत्ता को तोड़कर पत्तल बनाकर गोश्वारा गांव में बेचते हैं। एक बंडल पत्तल का दाम 13-15 रुपये मिलता है। गांव की दो बुजुर्ग महिलाओं ने बताया कि पेंशन मिलता है। राशन कार्ड से राशन भी मिल रहा है। गांव में एक भी पक्का मकान नहीं दिखा। 25 परिवारों वाले इस गांव में मात्र एक घर में ही बाइक है। 80 साल की गांव की महिला संझली बताती हैं कि वे लोग आज भी काफी गरीब हैं। खाने के नाम पर नमक-भात और सूखा चूड़ा के सिवा कुछ भी नहीं है। राशन की दुकान से गेहूं-चावल मिलने पर किसी तरह गुजरा चलता है।