तमिलनाडु में बिहारियों पर हमले: क्या है सच? सहमे लोगों की उड़ी नींद, दर्द बयां कर रही इनकी कहानी
पोहे गांव में किसी तरह वापस लौटे संजू मांझी धर्मेंद्र कुमार आदि ने बताया कि वो लोग जैसे-तैसे भागकर यहां पहुंचे हैं। वहां की स्थिति ठीक नहीं है। बिहारियों को मारा काटा जा रहा है। हिंदी भाषी मजदूरों को कम मजदूरी लेने पर बाध्य किया जाता है।
By Ashish Kumar SinghEdited By: Yogesh SahuUpdated: Fri, 03 Mar 2023 12:39 PM (IST)
संवाद सहयोगी, जमुई। तमिलनाडु में हिंसा भड़कने की खबर से जमुई के हजारों परिवार की नींद उड़ गई है। अपनों की खैरियत को लेकर कोई सरकार से गुहार लगा रहा है तो कोई सलामती की दुआ कर रहा है।
ऐसे ही लोगों में शहर के सिरचंद नवादा की बसंती देवी भी शामिल हैं। बीते एक सप्ताह से इनकी आंखों से नींद और दिल का चैन गायब हो गया है। उनका पुत्र मजदूरी करने तमिलनाडु गया था।अब वहां से हिंसा भड़कने की खबर आ रही है। 15 दिन पहले ही काम की तलाश में राजू गया था। लिहाजा उसे तमिल का अक्षर ज्ञान भी नहीं है।
राशन पानी के बगैर वह सिरचंद नवादा के ही 15 अन्य युवकों के साथ कमरे में फंसा है। कुछ ऐसी ही स्थिति सिकंदरा प्रखंड अंतर्गत पोहे पंचायत में कई परिवारों की है।बताया जाता है कि यहां पोहे, पिरहिंडा, सहसराम, रामडीह आदि गांव से बड़ी संख्या में लोग बरसों से तमिलनाडु के अलग-अलग हिस्सों में काम कर रहे हैं। पोहे पंचायत महज बानगी भर है।
कमोबेश ऐसी ही स्थिति सिकंदरा, अलीगंज एवं जमुई सदर प्रखंड के प्रायः हर गांव और टोले की है। शायद कोई गांव और टोला बचा हो, जहां का युवक अपने पसीने से वहां की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ नहीं कर रहा हो, लेकिन अब उन्हीं युवकों के खून से तमिलनाडु की धरती लाल हो रही है।
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