'बिहार का नाम सुनकर पता नहीं क्यों थर्राते हैं लोग', विनोद राठौड़ ने बताया कि अब गाना-बजाने का दिल क्यों नहीं करता
Vinod Rathore पार्श्व गायक विनोद राठौड़ ने कहा कि बिहार अच्छा लगता है। बिहार का नाम सुनकर लोग पता नहीं क्यों थोड़े से थर्राते हैं? गायक ने बताया कि उनका पसंदीदा शहर पटना है। विनोद राठौड़ का मानना है कि पहले गाने बहुत अच्छे बनते थे। आजकल फिल्में तो चल रही है लेकिन गानों की बहुत कमी है। कहा कि बहुत कम फिल्में भी करता हूं।
By Jagran NewsEdited By: Aysha SheikhUpdated: Sat, 21 Oct 2023 02:40 PM (IST)
जागरण संवाददाता, जमुई। पार्श्व गायक विनोद राठौड़ शुक्रवार को गिद्धौर महोत्सव में भाग लेने जमुई पहुंचे थे। गिद्धौर महोत्सव में विनोद राठौड़ ने अपनी गीतों से समा बांध दिया। देर रात गिद्धौर महोत्सव में दर्शक विनोद राठौड़ के गीतों पर लुफ्त उठाते रहे।
एक दौर वो भी था जब विनोद राठौड़ की आवाज़ के लिए फिल्म अभिनेता आपस में लड़ जाया करते थे। उनका गाना फिल्म से हटाने पर बवाल हो जाता था। हालांकि, अपने कैरियर में एक्टर जैसी स्टारडम देखने वाले विनोद राठौड़ इन दिनों बॉलीवुड में गुमनाम हो चुके हैं।
विनोद राठौड़ से बातचीत
उसी गुमनाम विनोद राठौड़ से शुक्रवार की देर दैनिक जागरण ने बात की। साल 1992 में दिवाना फिल्म का गाना मेरा नसीब है.. जो मेरे यारों ने.. हंस के.. प्यार से.. बेखूदी में.. दिवाना.. मेरा नाम रख दिया.. दिवाना..दिवाना... से चर्चा में आए थे पार्श्व गायक विनोद राठौड़।1990 दशक के चर्चित गायक थे विनोद राठौड़
विनोद राठौड़ का मानना है कि पहले गाने बहुत अच्छे बनते थे। स्टोरी बहुत अच्छी बनती थी। फिल्में चलती थी, लेकिन आजकल के दौर में फिल्में तो चल रही है लेकिन गानों की बहुत कमी है। उन्होंने कहा कि कोई गाना ऐसा नहीं है जिसे श्रोताओं ने पिछले 15-20 सालों में गुनगुनाया या फिर जो आपको दिल को छू लिया हो।
उन्होंने कहा कि इसकी वजह है कि गानों के शब्द पहले की तुलना में हल्के हुए हैं और दौर बदल गया है। रैप का जमाना है, रैप का सिस्टम चालू हुआ है जिससे गाना—बजाना पीछे हुआ है और स्टाइल चेंज हुआ है। उन्होंने कहा कि आने वाले साल डेढ़ साल में मेलोडि आएगा तो अच्छे गीत बनेंगे तो विनोद राठौड़ फिर से गाना शुरु करेगा।
'दिल नहीं करता गाना-बजाने का'
विनोद राठौड़ ने कहा कि पहले से कम काम करता हूं। बहुत कम फिल्में भी करता हूं। उन्होंने कहा कि कई संगीत निदेशक ऐसे थे जिनके साथ काम करने में अच्छा लगता था, लेकिन अब वो इस दुनिया में नहीं है जिससे कुछ झटके लगे इसलिए दिल नहीं करता गाना-बजाना का।
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