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लौटे प्रवासी तो जीवंत हो उठी खाट की परिपाटी

जमुई। संक्रमण काल ने सिर्फ अभिशाप ही नहीं दिया बल्कि यहां विलुप्त होती वस्तुओं व संस्कृति की हिफाजत भी हुई है।

By JagranEdited By: Updated: Mon, 08 Jun 2020 06:27 PM (IST)
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लौटे प्रवासी तो जीवंत हो उठी खाट की परिपाटी

जमुई। संक्रमण काल ने सिर्फ अभिशाप ही नहीं दिया, बल्कि यहां विलुप्त होती वस्तुओं व संस्कृति की हिफाजत भी हुई है। जिसे हम वरदान कह सकते हैं। देखने वाली बात है कि इसे सहेजने के लिए सरकार की मदद किस हद तक मिलती है।

केरल, कोलकाता, दिल्ली, गुड़गांव, हरियाणा सहित अन्य स्थानों से लौटे प्रवासियों ने गांवों से भी विलुप्त हो रही खाट की परिपाटी को जीवंत कर दिया है। नए-नए खाट तैयार हो रहे हैं और उसकी बुनाई भी हो रही है। कहते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में सोने के लिए इससे बेहतर उपयोगिता किसी अन्य की नहीं है। बड़ी बात यह है कि खाट तैयार करने वाले एक भी प्रवासी परंपरागत पेशा वाले बढ़ई जाति से नहीं हैं। सभी आदिवासी परिवार से हैं और परदेस में बढ़ई का कार्य करते थे, जहां उनके द्वारा की गई नक्काशी डाइनिग और बेडरूम की शोभा बढ़ा रही है। अब इन हुनरमंदों की नजर सरकार और जिला प्रशासन की ओर टिकी है। उन्हें उम्मीद है कि मदद मिली तो इनके हुनर से जमुई के घरों की रौनक बढ़ाई जा सकती है और डायनिग हॉल से बेडरूम तक इन कामगारों की नक्काशी से चार चांद लग सकता है।

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खैरा प्रखंड के हरणी पंचायत अंतर्गत खलारी गांव में केरल से वापस लौटे जालीम तूरी, रामवृक्ष मांझी, मुरारी तूरी, गुड़गांव से आए महेंद्र मांझी, दिल्ली से लौटे नरेश तूरी, कोल्हापुर से लौटे ललन कुमार तूरी, बेंगलुरु से आए मदन तूरी तथा सतना से लौटे दिलीप तूरी अब फिर से परदेश जाना नहीं चाहते। उनकी इच्छा है कि उनके हुनर के मुताबिक सरकार सहायता करे तो यहीं गांव में रहकर अपने शहर के घरों में चार चांद लगाने की चाहत रखते हैं।

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कोट

उद्योग विभाग की ओर से कारपेंटर तथा रेडीमेड गारमेंट्स के लिए समूह तैयार करने की योजना है। शीघ्र ही इसके प्रारुप को लेकर विभाग से निर्देश प्राप्त हो जाने की उम्मीद है। इसके अलावा पीएमईजीपी तथा मुख्यमंत्री अनुसूचित जाति-जनजाति व अतिपिछड़ा कल्याण योजना के तहत भी रोजगार के लिए अनुदान के साथ ऋृण की सुविधा का लाभ उठा सकते हैं।

वीरेंद्र सिंह, महाप्रबंधक, उद्योग विभाग, जमुई।

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