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Bihar News: किसानों की कमाई बढ़ाने को लेकर नीतीश सरकार गंभीर, इस जिले में ड्रैगन की खेती से हो रहा बंपर मुनाफा

बिहार में नीतीश सरकार किसानों की ये बढ़ाने को लेकर काफी गंभीर है। इसको लेकर राज्य में कई तरह की योजनाएं चलाई जा रही हैं। इससे कुछ फसलों की खेती पर किसानों को फायदा भी हो रहा है। बिहार के एक जिलों में किसान अब ड्रैगन की खेती को आय का बड़ा जरिया बना चुके हैं। इससे उन्हें बंपर मुनाफा मिल रहा है।

By Ravindra Nath Bajpai Edited By: Mukul Kumar Updated: Thu, 27 Jun 2024 03:39 PM (IST)
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ड्रैगन फ्रूट की खेती दिखाता किसान। फोटो- जागरण
प्रमोद कुमार तिवारी, रामगढ़। जिले में अब परंपरागत खेती करने वाले किसान औषधीय, फल-फूल आदि की खेती में भी रुचि लेने लगे हैं। इससे अब जिले के किसान पहले से समृद्ध भी हुए हैं।

जिले के रामगढ़ प्रखंड के जंदाहा गांव निवासी दो भाई किसान विजय सिंह व अजय सिंह भी कुछ ऐसा ही कर अन्य किसानों के लिए प्रेरणा बन गए हैं। दोनों मिल कर ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं।

इनके अलावा, कैमूर जिले के अन्य प्रखंडों में भी एक-दो किसान इसकी खेती करने लगे हैं। फिलहाल, जिले में इसकी खेती लगभग ढ़ाई एकड़ में हो रही है। इसकी खेती से किसानों को 15 माह में ही लाभ मिलने लग रहा है।

एक एकड़ से अधिक भूमि में कर रहे ड्रैगन फ्रूट की खेती

पिता हरिहर सिंह से सीख कर दाेनों भाई एक एकड़ से अधिक भूमि में इस औषधीय पौधे की खेती कर रहे हैं। साथ ही दूसरे किसानों को भी इसकी खेती सिखा रहे हैं। विजय सिंह ने बताया कि इस ड्रैगन को जड़ से ऊपर ले जाने के लिए कंक्रीट का पोल लगाया जाता है, जो छह फीट का होता है।

इसके ऊपर एक गोलाकार चकरी लगाई जाती है। जिसपर पहुंचते ही इस पौधे का विकास होता है। जो कई भागों में विभक्त होकर इसके तना से फल तैयार होने का मार्ग बनाता है। एक एकड़ में चार सौ पौल लगे हुए हैं। एक पोल पर ड्रैगन फ्रूट का चार प्लांट लगा है। एक पोल पर 15 से 16 सौ रुपये खर्च होते हैं।

एक एकड़ में कुल लागत छह लाख रुपये के आसपास खर्च हुई है। दोनों पांच वर्ष से ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं। शहरी क्षेत्र नहीं होने के बावजूद वे इसके बाजार को यहां स्थापित करा रहे हैं। जिसके कारण छोटी बड़ी मंडियों में भी इसके फल अब मिलने लगे हैं।

स्प्रिंकलर पद्धति से होती है सिंचाई

इस ड्रैगन फ्रूट की सिंचाई में ज्यादा पानी की भी आवश्यकता नहीं है। इसकी सिंचाई स्प्रिंकलर पद्धति के तहत होती है। सभी पौधों के यहां चार कनेक्शन दिया गया है। स्प्रिंकलर से चारों दिशा में वर्षा के रुप में सिंचाई होती है। इससे बेवजह पानी बर्बाद नहीं होता है।

ड्रैगन फ्रूट का फल बरसात के साथ शुरू होने लगता है। अक्टूबर माह तक इस पौधे से चार बार फल निकल जाता है। तीन वर्ष का पौधा होने पर एक पोल से 10 किलो ड्रैगन फ्रूट एक सीजन में निकल जाता है।

ड्रैगन फ्रूट के फल कई रोगों से लड़ने में है कारगर

ड्रैगन फ्रूट के गुण व तत्व से विज्ञानी भी परिचित है। पूरी तरह से इस फल को नेचुरल एंटी आक्सीडेंट माना जाता है। जिसके ग्रहण से मनुष्य में एंटी बाडी व हार्ट इम्यूनिटी पावर बढ़ता है तथा कैंसर जैसे रोगों से लड़ने की क्षमता रखता है। इस फल के सेवन से गंभीर बीमारी भी दूर होती है।

कैंसर के अलावा मधुमेह तथा अर्थराइटिस के लिए इसका सेवन रामबाण बताया जाता है। इस फल के अंदर काले काले बीज होते हैं। जो नेचुरल एंटी आक्सीडेंट होते है।

अमेरिका व अफ्रीका की प्रजाति है ड्रैगन

यह एक औषधीय फल है। अमेरिका व अफ्रीका के अलग-अलग जगहों पर यह पाया जाता है। ड्रैगन कैक्टस प्रजाति का देशज फल है। इसे आमतौर पर पिताया जीनस व स्टेनो केरस के नाम से भी जाना जाता है।

जीनस हिलोकेरस के फल को पीताया या ड्रैगन कहते हैं। यह ऊपर से काफी ऊबड़ खाबड़ व अंदर से काफी मुलायम व स्वादिष्ट होता है।

जैम व आइसक्रीम में भी होता प्रयोग

इस फल का कई चीजों में प्रयोग होता है। केवल असाधारण दिखता ही नहीं कार्य भी इसका असाधारण है। इसका प्रयोग जैम, आइसक्रीम, जैली, जूस, आदि में भी होता है।

इसकी खेती अपने देश कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, ओडिसा, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश व अंडमान निकोबार द्वीप समूह में हो रही है। अब इसकी खेती कैमूर जिले में भी शुरू हुई है।

15 माह में ही देने लगता है फल

सबसे पहले पौधों को लगाने के 15 माह में ही फल आना शुरू हो जाता है। जो 25 साल तक देता है। एक पौधे से एक सीजन में प्रारंभिक दौर में 20 से 25 किलो फल निकलता है। खास बात यह है कि इसकी खेती में रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं होता है। फल तैयार होने के साथ ही व्यापारी यहां खुद आकर फल की बुकिंग कराते हैं।

तीन- चार सौ रुपये किलो के भाव में भी यह आसानी से बिक जाता है। किसान विजय सिंह ने बताया कि इसकी खेती काफी लाभ देने वाली है। देखने में बिल्कुल शो प्लांट की तरह है। कटीले लंबे लंबे टहनियों के बीच छतरीनुमा इस पौधों को देखने के लिए बाहर के लोग पहुंच रहे हैं।

गुजरात में कमलम के नाम से जाना जाता है यह फ्रूट

सरकार ने ड्रैगन शब्द को अटपटा समझ इस फ्रूट की बेहतरी के लिए नामकरण में बदलाव किया है। गुजरात में इस ड्रैगन को जो कमल के समान दिखता है इसे संस्कृत का शब्द कमलम के नाम से जाना जाता है। इससे इसकी विशेषता व मिठास बढ़ जाती है।

क्या कहते हैं पदाधिकारी

रामगढ़ में इसकी खेती हो रही है। जंदाहा के किसान विजय सिंह द्वारा इस औषधीय खेती की शुरुआत हुई है। बाजार भले इसका यहां नहीं मिल पा रहा है, लेकिन काफी गुणकारी व लाभकारी फल है। उद्यान विभाग के पदाधिकारी सत्येन्द्र चौबे वहां जाने वाले हैं। ऐसे किसानों को प्रोत्साहित किया जाएगा तथा खेती के लिए अनुदान भी दिया जाएगा।-मृत्युंजय कुमार सिंह, बीएओ

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