इस गांव में इंसान ही नहीं मवेशी भी मच्छरदानी में गुजारते हैं रात, बिहारी पशुपालकों ने निकाला अनोखा तोड़
Bihar News बिहार में मोहनियां प्रखंड के सरेयां गांव में मवेशी भी मच्छरदानी में रात गुजारते हैं। यहां इंसानों के साथ पशुओं की भी सुख-सुविधाओं का ध्यान रखा जाता है। पिछले तीन वर्षों से यह व्यवस्था की गई है जिसकी पूरे जिले में चर्चा होती है। इससे दूध उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है और मवेशी भी मच्छरदानी में चैन से रात गुजारते हैं।
By Ajit Pandey (Mohania)Edited By: Aysha SheikhUpdated: Sun, 08 Oct 2023 03:03 PM (IST)
संवाद सहयोगी, मोहनियां। यह सुनने में कुछ अटपटा लगेगा, लेकिन है हकीकत। मोहनियां प्रखंड का एक गांव है सरेयां। यहां आमलोग ही नहीं मवेशी भी मच्छरदानी में रात गुजारते हैं।
आमलोगों की तरह ही मच्छरों से बचाव के लिए मवेशियों को यहां ग्रामीण दिन या रात हमेशा मच्छरदानी में रखते हैं। इस गांव के ग्रामीणों की यह पहल अन्य गांव के लोगों को आकर्षित करती है।ग्रामीण मच्छरों से बचाव के लिए मवेशियों के लिए भी मच्छरदानी लगाते हैं, जिसमें वे आराम से रात गुजारते हैं। यह मानवता के साथ-साथ मवेशियों के प्रति पशुपालकों के लगाव को दर्शाता है। पिछले तीन वर्षों से यह व्यवस्था की गई है, जिसकी पूरे जिले में चर्चा होती है।
गांव में सिर्फ एक ही जाति के लोग करते हैं निवास
प्रखंड मुख्यालय से सरेयां गांव की दूरी करीब सात किलोमीटर है। इस गांव में सिर्फ यादव जाति के ही लोग रहते हैं। गांव की आबादी करीब आठ सौ है। हर घर में अच्छी नस्ल की गाय और भैंस देखने को मिलेंगी, जिनकी कीमत 70 से 80 हजार रुपये है। ग्रामीणों को गाय भैंस पालने का शौक है। ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह की व्यवस्था अन्य पशुपालकों के साथ सरकारी तंत्र को भी आईना दिखाने जैसा है।
मच्छरों से बचाने के लिए की गई पहल
आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में घर के बाहर मवेशी बांधे जाते हैं, जहां मच्छरों की भरमार रहती है। मच्छरों के काटने से बेजुबान जानवर बेदम हो जाते हैं। इससे दुधारू मवेशियों का दूध भी काफी कम हो जाता है, जिससे ग्रामीणों को काफी नुकसान होता है।इसको ध्यान में रखकर सरेयां के ग्रामीणों ने मवेशियों को भी मच्छरदानी में रखने का तरीका निकाला। यह प्रयोग इतना सफल हुआ कि हर पशुपालक ने इसको अपना लिया। इससे दूध उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है। घर में पशुपालक मच्छरदानी में चैन की नींद सोते हैं तो बाहर में मवेशी मच्छरदानी में चैन से रात गुजारते हैं।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।मच्छरों के काटने से बीमार होने लगे थे मवेशी
ग्रामीणों ने बताया कि बरसात के दिनों में मच्छरों के कारण मवेशियों को काफी परेशानी होती थी। मच्छरों के काटने से मवेशी बीमार पड़ जाते थे। इससे ग्रामीणों को काफी नुकसान होता था। पशुओं का दूध घट कर आधा हो जाता था, जिससे आर्थिक क्षति होती थी।पशु चिकित्सकों ने इसे मच्छरों का प्रकोप बताया। तब ग्रामीणों ने सोचा की इंसान अपनी सुख-सुविधा के लिए सब कुछ कर रहा है। वहीं, ये बेजुबान मवेशी मच्छरों के काटने से बेहाल है। क्यों न इनके लिए भी मच्छरदानी की व्यवस्था की जाए। यहीं से इस व्यवस्था की शुरुआत हुई।गांव में मवेशियों के लिए है 80 मच्छरदानी
गांव में मवेशियों के लिए करीब 80 मच्छरदानी है। मवेशियों की संख्या और जगह के हिसाब से मच्छरदानी बनवाई गई हैं। ऐसा नहीं है कि मच्छरदानी सिर्फ बरसात के समय लगाई जाती है, बल्कि पूरे वर्ष ऐसा होता है। ग्रामीणों ने बताया कि जब से मवेशियों को मच्छरदानी के भीतर बांधने की व्यवस्था की गई है तब से ये स्वस्थ रह रहे हैं।दुग्ध उत्पादन भी अच्छा हो रहा है। शास्त्रों में कहा गया है कि पशुओं को अगर पीड़ा हो तो पशुपालक दरिद्र होता है। इस हिसाब से भी मवेशियों को आराम मिलने से पशुपालकों का भला होगा। इस व्यवस्था की हर कोई तारीफ करता है। बाहर से आने वाला हर व्यक्ति मच्छरदानी के भीतर बंधे मवेशियों को देखने के लिए खड़ा हो जाता है। धीरे-धीरे प्रखंड के अन्य गांवों में भी लोग इस व्यवस्था का अनुसरण करने लगे हैं।क्या कहते हैं पशु चिकित्सक?
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