Move to Jagran APP

आइए कटिहार... देखिए इस अद्भुत पक्षी को, सभी को भा रहा गंगा व महानंदा नदी के सहयोग से बना गोगाबिल झील

कटिहार में शीतल जल ही नहीं जलीय वनस्पति की प्रचुरता को समेटे गोगाबिल प्रवासी पक्षियों को करता है आकर्षित। नार्दन लैपविंग तथा आस्प्रे को छोड् बत्तख प्रजाति की सभी प्रवासी पक्षी शाकाहारी। गंगा व महानंदा नदी के छाड़न से बना गोगाबिल झील सभी को भा रहा है।

By Neeraj KumarEdited By: Dilip Kumar shuklaUpdated: Mon, 28 Nov 2022 10:01 AM (IST)
Hero Image
बिहार के कटिहार गोगाबिल झील में प्रवासी पक्षी।
जासं, कटिहार। मनिहारी व अमदाबाद प्रखंड की सीमा पर गंगा व महानंदा नदी के छाड़न से बना गोगाबिल झील बिहार में समृद्ध आद्रभूमि का क्षेत्र माना जाता है। 218 एकड़ में गोगाबिल झील फैला हुआ है। इसमें करीब 72 एकड़ को सामुदायिक पक्षी अभ्यारण्य के रूप में अधिसूचित किया गया है। वन एवं पर्यावरण विभाग द्वारा झील के सौंदर्यीकरण एवं पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किए जाने की योजना तैयार की गई है। प्रवासी पक्षियों के लिए जलीय आवास एवं अनुकूल भौगोलिक स्थिति ही नहीं झील में प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला जलीय वनस्पति भी प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करता है। प्रवासी पक्षियों में नार्दन लैपविंग तथा आस्प्रे को छोड़ अन्य बत्तख प्रजाति की प्रवासी पक्षी शाकाहारी प्रवृति की होती है। झील के उपर व पानी की गहराई में उगने वाली जलीय वनस्पति को प्रवासी पक्षी बड़े चाव से खाती है। सोबार खाजा की मोटी पत्ती वाली घास प्रवासी पक्षियों का पसंदीदा भोजन है। हरी काई, फसाई घास, कमलनी के फल, बीज व फूल तथा फीटा घास प्रचुर मात्रा में झील में उपलब्ध होने के कारण हर साल सैकड़ों की संख्या में प्रवासी पक्षी पहंचते हैं।

आठ हजार किमी से भी अधिक की दूरी तय कर पहुंचते हैं प्रवासी पक्षी

साइबेरिया सहित अन्य यूरोप के अन्य देशों से आठ हजार किमी से भी अधिक की दूरी तय कर प्रवासी पक्षी गोगाबिल झील पहुंचते हैं। नवंबर अंतिम से लेकर मार्च माह तक विदेशी पक्षी यहां प्रवास करती है। दिसंबर माह में पक्षियां बहुतायत संख्या में पहुंचती है। इनमें रेड क्रिस्टेड पोचार्ड, गड़वाल, नार्दन सोभलर, ग्रीन विंग टिल, नार्दन् पिंटेल, कामन पोचार्ड, ह्वाइट आई पोचार्ड, नार्दन् लैपविंग, आस्प्रे, गारगेनी सहित अन्य प्रवासी पक्षी शामिल हैं। नवंबर माह से ही गोगाबिल झील पर प्रवासी पक्षियों का कलरव सुनाई देने लगता है।

कम्यनुटी रिजर्व क्षेत्र अधिसूचित होने के बाद नहीं लग पाई शिकारमाही पर रोक

गोगाबिल झील को सामुदायिक पक्षी आश्रयणी के रूप में अधिसूचित किए जाने के बाद भी झील में मछली के शिकारमाही पर पूरी तरह रोक नहीं लगाई जा सकी है। पक्षी विशेषज्ञों की मानें तो झील में शिकारमाही के कारण वर्ष 2017 से लेकर 2021 तक पक्षियों का जाड़े में पहुंचना कम हुआ था। पक्षी अभ्यारण्य के रूप में घोषित किए जाने के बाद भी शिकारमाही रूक नहीं पा रही है। रात के अंधेरे में दबंगों के संरक्षण में झील में मछली मारने का काम किया जा रहा है। मछली मारने के लिए उपयोग में लाया जाने वाला रसायन व जाल को पानी में फेंकने से होने वाली आवाज के कारण प्रवासी पक्षियों के गोगाबिल झील से विमुख होने का खतरा बना हुआ है।

गोगाबिल झील बिहार में समृद्ध आद्रभूमि का क्षेत्र माना जाता है। भौगाेलिक स्थिति एवं जलीय आवास के अतिरिक्त जलीय वनस्पति की प्रचुरता भी साइबेरियन बर्ड सहित अन्य प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करता है। नवंबर माह के दूसरे सप्ताह से प्रवासी पक्षियों का पहुंचना शुरू हो जाता है। दिसंबर से मार्च माह तक 400 से अधिक प्रवासी पक्षी यहां प्रवास के लिए पहुंचते हैं। झील को सामुदायिक पक्षी आश्रय स्थल घोषित किया गया है। - दीपक कुमार, पक्षी विशेषज्ञ सह पर्यावरणविद, जनलक्ष्य

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।