भूसे के बराबर भी नहीं मिल रहा मक्के का दाम
कटिहार। मुनाफे की चाहत में मक्के का भंडारण करने वाले किसानों के अरमानों पर तुषारा
कटिहार। मुनाफे की चाहत में मक्के का भंडारण करने वाले किसानों के अरमानों पर तुषारापात हो रहा है। आलम यह है कि क्षेत्र में मक्के की तुलना में भूसे का मूल्य डेढ़ गुना हो गया है। किसानों को मक्के में खर्च हुई लागत भी वापस नहीं हो पा रहा है। बता दें कि मक्के के मूल्य में निरंतर गिरावट को देख किसान खून के आंसू रोने को विवश हैं। हाल के वर्षों में क्षेत्र में पीला सोना के नाम से विख्यात मक्के की फसल किसानों को खूब भाने लगा था। किसान जी तोड़ मेहनत कर मक्के की फसल से अपनी सेहत बदल रहे थे। साथ ही मक्के से होने वाला आमदनी से घर गृहस्थी के साथ बच्चों की पढ़ाई आदि का खर्च वहन कर रहे थे। लेकिन इस वर्ष मक्के के मूल्य ने उसके सपनों पर ब्रेक लगा दिया है। शुरुआती समय मे गत वर्ष की तुलना में मक्के का आधी कीमत को देख किसान घर, गोदाम के अलावा अन्य जगहों पर मक्के का भंडारण कर लिया है। किसानों को उम्मीद थी कि आगे मूल्य में वृद्धि होगी, लेकिन लॉकडाउन ने उसके मंसूबों पर विराम लगा दिया है। वर्तमान समय मे मक्के का मूल्य साढ़े नो सौ से लेकर हजार रुपए प्रति क्विटल है। जबकि क्षेत्र में मवेशी का सूखा चारा गेंहूँ का भूसा पंद्रह सौ रुपए क्विटल बिक रहा है। दाना के आगे भूसे का अधिक भाव देख किसान छाती पीट रहे हैं। उसे मक्के के उत्पादन में लगी लागत के साथ साहूकार का कर्ज चुकाने की चिता सताने लगी है। वर्तमान मूल्य में लागत भी नहीं निकल पाएगा। मक्के के भंडारण में अतिरिक्त लागत के बाद उसके मूल्य को देख किसानों को अपनी किसानी पर रोना आ रहा है। किसान धर्मेंद्र नाथ ठाकुर, मनोज मंडल, अखिलेश मंडल, रंजीत सिंह, अस्कन्द सिंह सहित कई लोगों ने बताया कि केंद्र एवं राज्य सरकार को किसानों के फसलों का उचित मूल्य के लिए सार्थक कदम उठाना चाहिए। ताकि किसान को उसके लागत के अनुरुप मुनाफा मिल सके।