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Kanchanjunga Express Accident: लगी होती यह खास डिवाइस, हादसे का शिकार नहीं होती कंचनजंगा एक्सप्रेस

West Bengal Train Accident पश्चिम बंगाल के न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन के पास सोमवार को कंचनजंगा एक्सप्रेस (Kanchanjunga Express) को एक मालगाड़ी ने पीछे से टक्कर मार दी। इस ट्रेन एक्सीडेंट में ट्रेन के दो डिब्बे पटरी से उतर गए जिससे 15 लोगों की जान चली गई। हालांकि शायद यह एक्सीडेंट नहीं होता यदि टक्कर रोधी कवच प्रणाली लगाई गई होती।

By Neeraj Kumar Edited By: Mohit Tripathi Updated: Wed, 19 Jun 2024 01:41 PM (IST)
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हादसे में गई 15 लोगों की जान। (जागरण फोटो)
नीरज कुमार, कटिहार। West Bengal Train Accident: कटिहार रेलमंडल में ढाई दशक बाद दूसरा बड़ा रेल हादसा हुआ है। गायसल ट्रेन हादसे के बाद सोमवार को हुई ट्रेन दुर्घटना में 15 लोगों की मौत हुई है, जबकि करीब पांच दर्जन जख्मी हुए।

एनजेपी के समीप रंगापानी व निजबाड़ी के बीच कंचनजंघा एक्सप्रेस (Kanchanjunga Express Train Accident) से मालगाड़ी की टक्कर के कारण बड़ा हादसा हुआ।

अगस्त, 1999 में गायसल में अवध-असम एक्सप्रेस व ब्रह्मपुत्र मेल के बीच टक्कर में करीब 500 लोगों की की मौत हुई थी।

इस घटना के बाद रेलवे ने दो ट्रेनों की टक्कर को रोकने के लिए टक्कर रोधी प्रणाली विकसित करने की योजना बनाई थी।

एनएफ रेल जोन में अब तक नहीं लगाई गई कवच प्रणाली

इसी के तहत कवच प्रणाली का विकास हुआ है, लेकिन यह पूर्वोत्तर सीमांत यानी एनएफ रेल जोन में अब तक नहीं लगाई गई है।

टक्कर रोधी कवच प्रणाली एक ऐसा सुरक्षात्मक उपाय है, जिसमें एक ही ट्रैक पर दो ट्रेनों के होने की स्थिति में लोको पायलट व गार्ड को सिग्नल मिल जाता है। ट्रेन में इमरजेंसी ब्रेक लगने की सुविधा भी इस डिवाइस में है।

अब तक एनएफ रेल जोन के किसी भी ट्रेन में यह डिवाइस नहीं लगाया गया है। रेलवे जल्द ही गुवाहाटी से दिल्ली के बीच चलने वाली ट्रेनों में उक्त डिवाइस को जल्द लगाने की योजना पर काम होने की बात कह रहा है।

ऑटोमेटिक ब्लॉक सिस्टम सिग्नलिंग पर भी सवाल

अलुआबाड़ी से एनजेपी के बीच ऑटोमेटिक ब्लॉक सिस्टम सिग्नलिंग पर भी सवाल उठ सकता है। रेल सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, कटिहार से अलुआबाड़ी के बीच अब्लसेल्यूट ब्लॉक सिस्टम सिग्नलिंग है।

इसमें कटिहार से किसी ट्रेन के खुलने के बाद मनिया गुमटी ट्रेन के पास होने के बाद ही उस ट्रैक पर किसी ट्रेन या मालगाड़ी को परिचालन के लिए हरी झंडी मिलती है। इसे पूर्ण ब्लॉक सिस्टम भी कहा जाता है।

वहीं, अलुआबाड़ी से एनजेपी के बीच ऑटोमेटिक ब्लॉक सिस्टम सिग्नलिंग है। इसमें किसी ट्रेन के खुलने के बाद आउटर सिग्नल से 400 मीटर आगे निकलने व ट्रेन के रनिंग स्थिति में होने पर दूसरी ट्रेन को उसी ट्रैक पर रवानगी के लिए हरी झंडी दी जाती है।

कंचनजंघा एक्सप्रेस हादसे में ऑटाेमेटिक ब्लाक सिस्टम सिग्नलिंग की चूक रही। ऑटोमेटिक ब्लॉक सिस्टम काम नहीं करने के कारण मालगाड़ी को पेपर लाइन क्लियर स्लिप देकर रवाना किया गया।

पीएलअसी के आधार पर 15 किमी प्रति घंटे के रफ्तार से ही ट्रेन चलाई जानी है। कंचनजंघा के चितरहट पहुंचने के पूर्व ही मालगाड़ी को पीएलसी दे दिया गया।

3 घंटे से काम नहीं कर रहा था सिग्नल सिस्टम

कंचनजंघा एक्सप्रेस हादसे के बाद वरीय अधिकारी तत्काल कुछ भी स्पष्ट बताने से बचते हुए जांच के इंतजार की बात कही जा रही है। रेल सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, रंगापानी के समीप घटना के दिन अहले सुबह बारिश हुई थी।

सुबह करीब 5.30 बजे से ही सिग्नल सिस्टम काम नहीं कर रहा था। हादसा सुबह आठ बजे के बाद हुआ। आखिर तीन घंटे में सिग्नल सिस्टम दुरूस्त करने को लेकर रेलवे द्वारा क्या कवायद की गई यह भी जांच का विषय हो सकता है।

क्या कहते हैं रेल अधिकारी?

पूर्वोत्तर-सीमांत रेलवे के मुख्य जनसंपर्क पदाधिकारी सव्यसाची डे ने बताया कि रंगापानी व निजबा़ड़ी के बीच कंचनजंघा एक्सप्रेस को मालागाड़ी से टक्कर होने के बाद दुर्घटना की जांच सीआरएस स्तर से की जा रही है। चूक कहां हुई यह जांच के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा।

उन्होंने कहा कि एनएफ रेल जोन में ट्रेनों में टक्कर रोधी कवच प्रणाली अभी नहीं लगाई गई है। गुवाहाटी से दिल्ली के बीच परिचालित होने वाली ट्रेनों में टक्कर रोधी डिवायस लगाए जाने की योजना है।

उन्होंने आगे बताया कि जिस ट्रैक पर कंचनजंघा खड़ी थी, उसी ट्रैक पर माालगाड़ी के लोको पायलट को पेपर लाइन क्लियर स्लिप दिया गया था। पीएलसी मिलने पर 15 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से ही लोको पायलट को पीएलसी में निर्धारित दूरी तक गाड़ी ले जानी है। जांच के बाद ही स्पष्ट रूप से इस संबंध में कुछ कहा जा सकेगा।

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