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बिहार का वो मंदिर जहां हिंदू-मुस्लिम एक साथ टेकते हैं माथा, 18वीं सदी से चली आ रही परंपरा; पढ़ें रोचक बातें

बिहार के किशनगंज में एक ऐसा मंदिर है जहां हिंदू और मुस्लिम एक साथ माथा टेकते हैं। मुस्लिम धर्मावलंबी अपनी मुराद लेकर मां के दरबार में पहुंचते हैं और चढ़ावा भी चढ़ाते हैं। इस मंदिर की स्थापना 18वीं सदी में हुई थी। इस प्रसिद्ध दुर्गा मंदिर में लोग बिहार बंगाल और नेपाल से भी आते हैं। मंदिर से जुड़े कई रोचक किस्से हैं जिन्हें जान आप हैरान रह जाएंगे।

By Sachidanand SinghEdited By: Rajat MouryaUpdated: Sun, 15 Oct 2023 05:36 PM (IST)
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बिहार का वो मंदिर जहां हिंदू-मुस्लिम एक साथ टेकते हैं माथा, 18वीं सदी से चल आ रही परंपरा

संवाद सूत्र, दिघलबैंक (किशनगंज)। Bihar Famous Maa Durga Temple दिघलबैंक प्रखंड के सीमावर्ती गांव धनतोला में पौराणिक मां दुर्गा मंदिर अवस्थित है। जिसकी कहानियां भी काफी रोचक हैं। दुर्गा पूजा कमेटी के सदस्य बताते हैं कि करीब 321 वर्ष पूर्व मूल निवासी मंगलू ग्वाला ने मंदिर की स्थापना की थी और तभी से यहां दुर्गा मां की पूजा होती आ रही है। 18वीं सदी में मंगलू ग्वाला ने परंपरा को शुरू किया था। इस मंदिर की एक और खास बात है। यहां हिंदू-मुस्लिम एक साथ माथा टेकते हैं।

ऐसी मान्यता है कि नवरात्र पूजा के बाद जब मैया की विदाई अश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को की जाती थी तब मंगलू ग्वाला की धर्मपत्नी दुर्गा मैया को नैवेद्य रूप में साग भात अर्पित कर निवेदन करती थीं कि आप एकादशी दिन तक के लिए आईं और मुझसे जो भी हो सका तेरा मान सत्कार किया। अब जा रही हो तो अमानत के रूप में अपने सारे जेवरात मुझे देकर जाओ अगले वर्ष आओगी तो फिर इन जेवरातों से श्रृंगार कर लेना।

अपने आप खुल कर गिर जाते जेवरात

मंगलू ग्वाला की पत्नी के ये कहने पर चांदी की हसली, गोट, माला, चन्द्रहार, सोने की नथ, पायल आदि सारे जेवरात स्वत: खुल कर ग्वाला की पत्नी की आंचल में गिर पड़ते थे। बताया गया कि कालांतर में राजा पृथ्वीचन्द लाल जो पूर्णिया के जमींदार हुआ करते थे। उनके द्वारा दुर्गा पूजन हुआ करता था एवं उनके पुरोहितों द्वारा पदमावती देवी के नामित भू-खण्ड में अब तक अंकित है।

मंदिर में मुस्लिम भी टेकते हैं माथा

हालांकि, आजादी के बाद इस प्राचीन दुर्गा मंदिर को सार्वजनिक मंदिर का रूप दे दिया गया। तभी से स्थानीय श्रद्धालुओं के सहयोग से मंदिर को नया रूप देते हुए पूजा अर्चना होती आ रही है। यहां की दुर्गा वैष्णवी है। श्रद्धालुओं के द्वारा केला भोग चढ़ाया जाता है। लंबे समय से यहां मुस्लिम धर्मावलंबी भी मन्नत मांगने आते हैं और मुराद पूरी होने पर चढ़ावा चढ़ाते हैं।

नवमी और एकादशी पर लगता है मेला

नवमी पूजा एवं एकादशी में लगने वाले मेले में हजारों की संख्या में यहां श्रद्धालुओं का आगमन होता है। मां की महिमा के बारे में श्रद्धालु खुद बताते हैं कि जो संतानहीन थे उनको मां की कृपा से संतान की प्राप्ति मिली, जो रोग से ग्रसित थे उन्होंने आरोग्य लाभ प्राप्त हुआ एवं जो विजय भाव से मां के दरबार में आए उन्हें विजय प्राप्ति मिली है।

वहीं, अब वर्तमान में पूजा कमेटी के मुख्य सदस्य पंचानंद गणेश पिछले करीब 46 वर्षो से मां की सेवा कर रहे हैं। साथ ही पूजा व्यवस्था में मुख्य पुजारी गौरी शंकर त्रिमूर्ति, खिरण लाल गणेश सहित अन्य युवा एवं ग्रामीण पूजा को सफल बनाने में तत्पर रहते हैं।

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