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सीमांचल का सच: मात्र 10 रु में घुसपैठियों को मिल जाती है देश की नागरिकता, पंचायत प्रतिनिधि निभा रहे अहम भूमिका

भारत में बांग्लादेशी नागरिकों की घुसपैठ एक गंभीर मुद्दा है। अवैध तरीके से भारत की नागरिकता हासिल करने वाले लाखों बांग्लादेशियों की संख्या बिहार के किशनगंज में भी काफी बढ़ गई है। यहां का भौगोलिक स्वरूप धीरे-धीरे काफी बदल गया है।

By Jagran NewsEdited By: Ritu ShawUpdated: Sat, 31 Dec 2022 12:13 PM (IST)
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सीमांचल का सच: 10 रु में घुसपैठियों को मिल जाती है देश की नागरिकता, पंचायत प्रतिनिधी निभा रहे अहम भूमिका
संजय सिंह, जागरण संवाददाता: बिहार के किशनगंज से पश्चिम बंगाल के इस्लामपुर तक 32 किलोमीटर का क्षेत्र चिकेन नेक कहलाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह इलाका कई प्रांतों की लाइफ लाइन है। नेपाल और बंगाल के बीच मात्र 15 से 20 किलोमीटर की चौड़ाई की पट्टी है। यह पट्टी बांग्लादेशी घुसपैठियों के संरक्षण में चली गई है। इन घुसपैठियों के झूठे दस्तावेज बनाने में पीपुल्स फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआइ) सहित अन्य देश विरोधी संगठन मदद करते हैं।

पैसे के लोभ में स्थानीय लोग करते हैं मदद

इन घुसपैठियों को पनाह देने में सबसे बड़ा है यहां रहने वाले आम लोगों का। स्थानीय अल्पसंख्यक समुदाय के भी कुछ लोग पैसे के लोभ में इन्हें अपना रिश्तेदार बताकर संरक्षण देते हैं। इसके बाद कोई एक दस्तावेज तैयार होते ही अन्य दस्तावेज तैयार हो जाते हैं, फिर सारी सुविधाओं का लाभ इन्हें मिलने लगता है। जनप्रतिनिधि बनने का सपना देखने वाले स्थानीय नेता भी इनकी खूब मदद करते हैं। मतदाता सूची में इनका नाम शामिल करवाकर इनके वोट से अपना ख्वाब पूरा करने में सफल हो जाते हैं। सीमांचल में 368 मुखिया और 369 सरपंच अल्पसंख्यक समुदाय से हैं।

दूसरे राज्य जाने वाले मजदूरों को दिया जाने वाला एक परिचय पत्र भी झूठा दस्तावेज बनाने में इनकी खूब मदद कर रहा है। 10 रुपये में बनने वाले इस परिचय पत्र में एक फोटो और नाम-पता भरने की जगह होती है, घुसपैठिये इसे भरते हैं और सेटिंग वाले जनप्रतिनिधि की मुहर लगवा लेते हैं। आगे यह आधार बनवाने में काम आता है। आधार के शुरुआती दौर में इस दस्तावेज का घुसपैठियों ने खूब इस्तेमाल किया। समय-समय पर केंद्रीय सुरक्षा जांच एजेंसी ऐसे लोगों को पकड़ती भी रही है। 21 अक्टूबर 2021 को दिल्ली की स्पेशल सेल ने मु. असरफ नामक संदिग्ध आतंकी को पकड़ा था।

जांच के क्रम में सुरक्षा एजेंसी को यह जानकारी मिली कि उसने कोचाधामन के एक सरपंच की मिलीभगत से आधार कार्ड बनवाया था। उसी कार्ड के आधार पर उसने भारतीय होने के अन्य दस्तावेज तैयार किए थे। ऐसे मामले और भी हैं। सहरसा के डीआइजी शिवदीप वामन राव लांडे बताते हैं कि दो वर्ष पूर्व जब वे मुंबई में एटीएस में तैनात थे तब 85 बांग्लादेशी घुसपैठियों को फर्जी कागजात के आधार पर पासपोर्ट बनाने के आरोप में पकड़ा था। इन लोगों ने फर्जी मतदाता परिचय पत्र के आधार पर अपना पासपोर्ट तैयार कराया था। इसका मास्टर माइंड बांग्लादेश निवासी मु. अकरम था। जांच पड़ताल में यह भी पता चला कि सारे फर्जी मतदाता परिचय पत्र सीमांचल से सटे पश्चिम बंगाल के मालदा और मुर्शिदाबाद में बने थे।

जांच हो तो खुलेगी पोल

इससे पहले आधार कार्ड बनाने का काम करने वाले अररिया निवासी विमल कुमार बताते हैं कि वह वर्ष 2013 में आधार कार्ड बनाते थे। इस दौरान जिनके पास मतदाता परिचय पत्र नहीं रहता था, उनका आधार कार्ड मुखिया या सरपंच द्वारा जारी अनुशंसा पत्र के आधार पर बनाया जाता था। इस दौरान कई फर्जी लोगों ने आधार कार्ड बनवाए। उस कार्यकाल की यदि जांच हो तो सैकड़ों लोग झूठे आधार कार्ड बनवाने के आरोप में पकड़े जा सकते हैं। इसी आधार पर उन्होंने मतदाता पहचान पत्र, ड्राइविंग लाइसेंस और राशन कार्ड बनवा लिया है। उपलब्ध आकड़ों के अनुसार अररिया में 32.42 लाख, किशनगंज में 19.80 लाख, पूर्णिया में 34.77 लाख और कटिहार में 35.75 लाख लोगों के आधार कार्ड बने हैं। नरपतगंज प्रखंड के मु. इरफान अंसारी, मु. फिरोज और दिलशाद अहमद से जब मतदाता पहचान पत्र के संबंध में पूछा गया तो उनका कहना था कि वे लोग बाहर मजदूरी करने गए थे। कार्ड वहीं खो गया, पर वोटर लिस्ट में उनका नाम दर्ज है। इस उदहारण से बहुत कुछ समझा जा सकता है।

बदल चुका है यहां का डेमोग्राफिक हिस्सा

1951 से 2011 तक देश की कुल आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी जहां चार प्रतिशत बढ़ी है, वहीं सीमांचल में यह आंकड़ा करीब 16 प्रतिशत है। किशनगंज बिहार का ऐसा जिला है, जहां हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं। बांग्लादेशी मुसलमानों ने पिछले कुछ दशकों में यहां जबरदस्त घुसपैठ की है। 2011 की जनगणना के अनुसार, किशनगंज में मुस्लिमों की जनसंख्या 67.58 प्रतिशत थी, तो हिंदू मात्र 31.43 प्रतिशत रह गए। कटिहार में 44.47, अररिया में 42.95 और पूर्णिया में मुस्लिम जनसंख्या 38.46 प्रतिशत हो चुकी है। पिछले एक दशक में मुस्लिम जनसंख्या और तेज गति से बढ़ी है। जिलों के दर्जनों गांवों में हिंदू अल्पसंख्यक होकर पलायन कर गए हैं।

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