राजघाट कोल की बदली तस्वीर तो जनजातियों का संवरने लगा जीवन; शिक्षा और रोजगार से विकास की ओर बढ़ने लगे कदम
राजघाट कोल एवं सिंघौल के समीप बसने के बाद आदिम जनजातियों की जिंदगी पटरी पर आने लगी है। ये अब बिजली की रोशनी में पक्के मकानों में रह रहे हैं इन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है शिक्षा और रोजगार की ओर भी कदम बढ़ने लगे हैं। बासगीत पर्चा के माध्यम से जमीन पाकर फूले नहीं समा रहे हैं।
सुमन कुमार, संवाद सहयोगी, लखीसराय। लखीसराय, मुंगेर और जमुई जिले की सीमा के बीच जंगलों और पहाड़ों के अंदर झोपड़ी में आदिम सी जिंदगी जीने वाले छह गांव के 430 अनुसूचित जनजाति परिवार के लोग राजघाट कोल एवं सिंघौल के समीप बसने के बाद से विकास को नजदीक से देख रहे हैं।
शिक्षा पाकर विकास की ओर बढ़ने लगे कदम
ये आबादी अब बिजली की रोशनी में पक्के मकान में रह रही है। इन्हें जब सरकारी योजनाओं का लाभ मिलने लगा, तो शिक्षा और रोजगार की ओर भी कदम बढ़ने लगा। अनुसूचित जनजाति अब शिक्षा व रोजगार हासिल कर समाज की मुख्य धारा से जुड़कर इक्कीसवीं सदी की कल्पना को साकार कर रहे हैं।
अब बेघर किए जाने का भी भय नहीं
जिला प्रशासन के सदियों से झुग्गी-झोपड़ियों में गुजर-बसर करने वाले अनुसूचित जनजाति परिवार अब प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पक्का मकान में रहने लगे हैं।
जंगलों-पहाड़ों के बीच ढिबरी के सहारे अंधकार से निजात पाने का प्रयास करने वाले अनुसूचित जनजाति गांव अब बिजली की रोशनी से जगमगाने लगा है।
भूमिहीन अनुसूचित जनजाति परिवार बासगीत पर्चा के माध्यम से जमीन पाकर फूले नहीं समा रहे हैं। ऐसे परिवार को अब वन विभाग द्वारा बेघर किए जाने का भय नहीं रहा है।
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यहां बसे हैं सैंकड़ों परिवार
जिला प्रशासन द्वारा पहाड़ के उस पार के सुदूरवर्ती घोघरघाटी के 50 परिवार, कानीमोह के एक सौ परिवार, शीतला कोड़ासी के 30 एवं काशीटोला के 40 परिवार को राजघाट कोल में बसाया गया है। जबकि बरमसिया एवं बकुरा के दो सौ परिवार को सिंघौल के समीप मोरवै डैम के हाई लेवल केनाल के समीप बसाया गया है।
अनुसूचित जनजाति का पक्का मकान का सपना पूरा
सदियों से झुग्गी-झोपड़ी में गुजर-बसर करने वाले अनुसूचित जनजाति परिवार का अब पक्का मकान में रहने का सपना साकार होने लगा है। वित्तीय वर्ष 2016-17 से 2021-22 तक घोघरघाटी, कानीमोह, शीतला कोड़ासी एवं काशीटोला के 107 तथा बरमसिया एवं बकुरा के 92 जनजाति परिवार को प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिला है।
मुख्यमंत्री साइकिल योजना साबित हो रहा वरदान
मुख्यमंत्री साइकिल योजना अनुसूचित जनजाति के छात्र-छात्राओं को शिक्षा पाने की दिशा में वरदान साबित हो रहा है। साइकिल के सहारे सैकड़ों की संख्या में अनुसूचित जनजाति बच्चे जंगल-पहाड़ होते हुए सात से 10 किलोमीटर की दूरी तय कर उच्च विद्यालय पहुंचकर शिक्षा पा रहे हैं।
बिजली पहुंचने से जगमगाने लगा जंगली-पहाड़ी क्षेत्र
जिले के सूदूर जंगल-पहाड़ के बीच बसे अनुसूचित जनजाति के सभी गांवों में बिजली पहुंच गई है। अब जंगली-पहाड़ी क्षेत्र बिजली की रोशनी से जगमगाने लगा है। यहां के लोगों को सौ ऊर्जा का लाभ भी दिया गया है।
राजघाट कोल का बदलने लगा स्वरूप
जिला प्रशासन ने कजरा के पास राजघाट कोल में जनजातियों को दुर्गम सुदूर पहाड़ी इलाके से निकालकर बसाया है। राजघाट कोल एवं सिंघौल के समीप मोरवै डैम हाई लेवल केनाल के समीप बसे अनुसूचित जनजाति गांव तक सड़क बनी हुई है। अब अनुसूचित जनजाति के लोग वाहन से अपने घर पर ही उतर रहे हैं। अब राजघाट कोल का स्वरूप बदलने लगा है।
जिले के अनुसूचित जनजाति गांवों में बिजली, पानी का इंतजाम किया गया है। सभी तरह की योजनाओं का लाभ पहुंचाया जा रहा है। पहाड़ के अंदर बसे लोगों को सुगम रास्ता देने के लिए सड़क निर्माण कार्य शुरू कराया जाएगा- अमरेंद्र कुमार, जिलाधिकारी, लखीसराय।
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