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Shringirishi Dham: प्रकृति की गोद में बसा है श्रृंगीऋषि धाम, रोमांचित करते हैं पहाड़ों से गिरते झरने और सुंदर वादियां

Shringirishi Dham Lakhisarai श्रृंगीऋषि धाम प्रकृति की गोद में बसा एक आध्यात्मिक स्थल है जहां सालों भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। यहां एक झरना और दो जलकुंड भी हैं जहां स्नान करने से पापों का नाश होता है और चर्म रोग दूर होते हैं। श्रृंगीऋषि धाम की यात्रा एक अविस्मरणीय अनुभव है जो आपको प्रकृति की सुंदरता और आध्यात्मिक शांति का एहसास कराएगा।

By Mritunjai Mishra Edited By: Mohit Tripathi Updated: Fri, 30 Aug 2024 03:31 PM (IST)
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प्रकृति की गोद में बसा है श्रृंगीऋषि धाम।

सुमन कुमार सुमन, लखीसराय। लखीसराय में दियारा, टाल, पहाड़ और जंगल का बेजोड़ संगम है। पर्यटन के ख्याल से यह जिला समृद्ध है बशर्ते की राज्य सरकार इस पर विशेष ध्यान दे।

यहां धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक के साथ ही मनोरम वादियों का भी आनंद लेने लायक पर्यटन स्थल हैं जो साइलेंट उद्योग के रूप में विकसित हो सकते हैं। इससे जहां बाहरी पर्यटकों का आगमन हो सकता है। वहीं, इससे अच्छा राजस्व भी प्राप्त हो सकता है।

लखीसराय के दक्षिणी भाग में पहाड़ और जंगल है। इस जंगल और पहाड़ के बीच में कई ऐसे स्थल हैं, जहां बाहरी पर्यटकों को लाया जा सकता है। पहाड़ और जंगल की सुंदर वादियां, मनोरम दृश्य, दूर तक फैली हरियाली और पहाड़ों से गिरते झरने लोगों को रोमांचित करते हैं।

सूर्यगढ़ा और चानन प्रखंड के बीच कई पहाड़ों को लांघकर मोरवे डैम विशाल जलाशय है। यहां पर पहाड़ों से गिरने वाले झरने के बीच ही ऊपरी चोटी परआध्यात्मिक, पौराणिक व रमणीक स्थल बाबा श्रृंगीऋषि धाम भी है। यहां बाबा ऋषि श्रृंगी के अलावा शिवलिंग, बगल में पार्वती, बजरंगबली सहित विभिन्न देवी-देवताओं के मंदिर स्थापित हैं।

विभिन्न अवसर पर श्रृंगीऋषि धाम में अवस्थित शिवलिंग पर जलाभिषेक किया जाता है। खासकर सावन माह एवं सोमवार के दिन शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के लिए श्रृंगीऋषि धाम में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है।

मंदिर के बगल में पहाड़ों से सालों भर झरना गिरते रहता है। वहीं पर दो जलकुंड भी है। झरने के साथ ही पर्यटक इस कुंड में डुबकी लगाते हैं। जंगलों-पहाड़ों के बीच स्थित श्रृंगी ऋषि धाम का दृश्य काफी मनमोहक है।

मोरवे डैम का विशाल जलाशय जिसमें दूर-दूर तक नीली झील ही दिखती है। दूर देखने पर ऐसा लगता है जैसे वहीं पर आसमान गिर रहा हो और पहाड़ तथा झील से मिल रहा हो।

श्रृंगीऋषि धाम का त्रेता युग से जुड़ा है इतिहास

श्रृंगीऋषि धाम का त्रेतायुगीन महत्व है। उक्त स्थल अयोध्या के राजा दशरथ एवं उनके पुत्र भगवान श्रीराम सहित चारों भाईयों से जुड़ा हुआ है। वहां मौजूद शिवलिंग सहित विभिन्न देवी-देवताओं का मंदिर त्रेतायुगीन हैं।

श्रृंगीऋषि की पहाड़ियां, झरना और कुंड आकर्षण के केंद्र हैं। मोरवे डैम के बड़े क्षेत्र में फैली नीली झील पहाड़ियों पर से देखकर बहुत ही मनोरम लगती है।

पौराणिक पुस्तकों के अनुसार यहां पुत्र प्राप्ति के लिए राजा दशरथ ने पुत्रेष्ठि यज्ञ किया था। इसके बाद भगवान राम, लक्ष्मण, भरत एवं शत्रुघ्न के अवतरित होने के बाद यहीं पर उन चारों भाईयों का मुंडन संस्कार भी हुआ था।

श्रृंगी ऋषि धाम की विशेषता

बाबा श्रृंगीऋषि धाम की विशेषता यह है कि अब भी पुत्र रत्न की प्राप्ति सहित के अन्य मनोरथ पूरा होने के लिए लोग दूर-दूर से यहां पहुंचकर कुंड में स्नान कर शिलिंग का जलाभिषेक कर विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करते हैं। यहां सालों भर अनुष्ठान एवं हवन का कार्यक्रम होते रहता है।

वसंत पंचमी में यहां ऐतिहासिक मेला लगता है। साथ ही सावन माह में शिवलिंग के जलाभिषेक के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

इसके अलावा, प्रत्येक दिवस विशेष एवं त्योहार में लोग पूजा-अर्चना के लिए श्रृंगी ऋषि धाम स्वत: खिंचे चले आते हैं।

मान्यता है कि झरने के कुंड में स्नान करने से सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है और चर्म रोग का नाश भी होता है। बहुत सारे लोग यहां से गैलन में जल भरकर पेयजल के लिए भी ले जाते हैं।

ऋषि श्रृंगी की रही है तपोभूमि

राजा रोमपाद ने अपनी दत्तक पुत्री शांता, जो राजा दशरथ से गोद लिया था उनसे ऋषि श्रृंगी का विवाह रचाया। यह क्षेत्र रामपाद के अधीन था।

विवाह के बाद राजा रोमपाद ने ऋषि को यह जंगली-पहाड़ी क्षेत्र अपनी तप एवं साधना के लिए दे दिया था। इसके बाद से ऋषि श्रृंगी यहीं रहकर तपस्या एवं साधना करने लगे। इस कारण यह स्थल श्रृंगीऋषि धाम कहलाया।

झरना और जलकुंड में स्नान करने का है मजा

ऋृंगी ऋषि धाम के पास दो जलकुंड है। इसमें एक का इस्तेमाल महिलाएं तो दूसरे का पुरुष करते हैं। पहाड़ों से गिरते झरने यहां हर समय कल-कल करते रहता है।

बरसात के दिनों में यहां आने का अलग मजा है। अधिक वर्षा होने पर पहाड़ों पर से जलधारा बहने लगती है जो डरावना के साथ ही मनभावन भी होता है। कुंड एवं झरने का जल स्वादिष्ट एवं काफी सुपाच्य है। इसे पीने से पाचन शक्ति ठीक रहती है।

गत 10 वर्ष पूर्व लखीसराय के तत्कालीन अनुमंडल पदाधिकारी की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन कर श्रृंगी ऋषि धाम के विकास के लिए कुंड के जल को बोतल बंद कर श्रृंगीऋषि नीर के रूप में बेचने का निर्णय लिया गया था परंतु उक्त योजना कागज तक ही सिमटकर रह गई।

श्रृंगी ऋषि धाम के विकास की है जरूरत

श्रृंगीऋषि धाम के विकास के प्रति जिला प्रशासन और राज्य सरकार उदासीन है। कहने को तो इसके विकास के लिए कमेटी भी बनी है लेकिन इसकी सक्रियता नहीं है।

अयोध्या में मंदिर निर्माण और रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की खुशी में विशाल शोभा यात्रा निकाली गई थी जिसमें राज्य के उप मुख्यमंत्री सह क्षेत्रीय विधायक विजय कुमार सिन्हा भी शामिल हुए थे। उक्त यात्रा का समापन इसी स्थल पर किया गया था।

उस समय विजय कुमार सिन्हा ने इस स्थल को रामायण सर्किट से जोड़ने एवं पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की घोषणा की थी। लेकिन अब तक इसकी फाइल नहीं खुली है।

श्रृंगी ऋषि धाम जाने का सुगम मार्ग

लखीसराय से श्रृंगी ऋषि धाम करीब 23 किलोमीटर दूर है। किऊल के रास्ते सड़क मार्ग से श्रृंगी ऋषि पहुंचा जा सकता है।

इसके अलावा, लखीसराय-सूर्यगढ़ा एनएच 80 पर चंदनपुरा गांव स्थित एनएच 80 से दैताबांध रोड होकर भी सड़क मार्ग से वहां पहुंचा जा सकता है। यहां पहुंचने के लिए निजी वाहन का ही इस्तेमाल किया जाता है।

चूंकि, पहाड़ों के बीच आदिवासी समाज का गांव है। ये गांव भी लोगों को आकर्षित करते हैं। लोग वहां जाकर पौराणिक जीवन शैली को नजदीक से देख सकते हैं।

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