मधेपुरा में क्या कांग्रेस चार दशक बाद कर पाएगी वापसी? जनता पार्टी की लहर में ध्वस्त हुआ था किला
कभी मधेपुरा कांग्रेस का मजबूत गढ़ था जहां बीपी मंडल जैसे नेताओं ने राजनीति की शुरुआत की। लेकिन 80 के दशक में समाजवादी आंदोलन के कारण कांग्रेस कमजोर हो गई। पिछले चार दशकों में संगठन कमजोर हुआ और 2020 में सिर्फ एक सीट मिली। अब कांग्रेस फिर से बिहारीगंज सीट पर दावा कर रही है हालांकि उम्मीदवार का नाम तय नहीं है।

अमितेष, मधेपुरा। एक समय में कोसी इलाके का मधेपुरा जिला कांग्रेस का मजबूत गढ़ हुआ करता था। कांग्रेस की टिकट पर पूर्व मुख्यमंत्री सह मंडल कमीशन के प्रणेता रहे बीपी मंडल, संविधान सभा के सदस्य रहे कमलेश्वरी प्रसाद मंडल, भोली प्रसाद मंडल, विद्याकर कवि, जयकुमार सिंह यादव, डॉ. आर. के. यादव रवि, राजो बाबू, सरीखे राजनेताओं ने संसदीय राजनीति की शुरूआत की थी।
बिंध्येश्वरी प्रसाद मंडल(बीपी मंडल), कांग्रेस से बगावत कर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गए और 1968 में बिहार के मुख्यमंत्री भी बने। इसके बाद 80 के दशक में कांग्रेस से राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाले तमाम बड़े नेता समाजवादी आंदोलन में शामिल हो गए।
लिहाजा मधेपुरा समाजवाद का प्रयोगशाला बन गया और जनता पार्टी की लहर में कांग्रेस का मजबूत किला ध्वस्त हो गया। जिले में कांग्रेस के पांव इस कदर उखड़े कि चार में से एक भी सीट पर मजबूत स्थिति नहीं रही।
कमजोर पड़ता चला गया कांग्रेस का संगठन
विगत चार दशक में कांग्रेस का संगठन भी कमजोर पड़ता चला गया। तमाम बड़े राजनेता कांग्रेस छोड़ जनता पार्टी में शामिल हो गए। चार विधानसभा क्षेत्र वाले मधेपुरा में 2020 के चुनाव में तीन सीट राजद और एक बिहारीगंज कांग्रेस के खाते में रहा।
गत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बिहारीगंज से पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव की पुत्री सुभाषिनी बुंदेला को चुनाव लड़ाया, हारने के बाद दुबारा वह नहीं लौटीं।
गत चुनाव को ही आधार मानकर कांग्रेस इस बार फिर से बिहारीगंज सीट पर दावा कर रही है लेकिन लड़ेंगे कौन, इस सवाल के जवाब पर एक तरह से चुप्पी है।
पूर्व जिलाध्यक्ष सत्येंद्र सिंह यादव खुद को दावेदर बताते हुए कहते हैं कि बिहारीगंज सीट पर पार्टी चुनाव लड़ेगी। आलाकमान टिकट फाइनल करेगी।
1985 में भोली प्रसाद मंडल बने थे विधायक
मधेपुरा सीट पर आखिर बार 1985 में भोली प्रसाद मंडल विधायक चुने गए थे। उनके निधन बाद हुए उपचुनाव में राजेंद्र प्रसाद यादव(राजो बाबू) विधायक बने। इसके बाद से मधेपुरा सीट पर जनता पार्टी, जदयू के बाद अब राजद का कब्जा है।
इसी तरह सिंहेश्वर सीट पर डॉ. रमेंद्र कुमार यादव रवि (आर के रवि) 1981 में कांग्रेस से विधायक चुने गए। इसके बाद वे 1985 के चुनाव में लोक दल के टिकट पर लड़े और कांग्रेस के ही उम्मीदार काे हराकर विधानसभा पहुंचे। इसके बाद कभी कांग्रेस को इस सीट पर सफलता नहीं मिली।
वहीं, आलमनगर विधानसभा सीट 1957 से 72 तक कांग्रेस के कब्जे में रहा। 1957 व 62 में यदुनाथ झा और 1967, 69 व 72 में विद्याकर कवि लगातार जीतकर विधानसभा पहुंचे।
लेकिन जेपी आंदोलन के बाद 1977 में इस सीट पर जनता पार्टी के टिकट पर आलमनगर ड्योढ़ी परिवार के वीरेंद्र सिंह चुनाव लड़े और विद्याकर कवि को हराकर विधानसभा पहुंचे। इसके बाद से इस सीट पर जनता पार्टी, लोकदल और जदयू का कब्जा है।
इसी तरह बिहारीगंज यानी तब के उदाकिशुनगंज विधानसभा क्षेत्र से आखिरी बार 1980 में सिंहेश्वर मेहता कांग्रेस से विधायक चुने गए थे। इससे पूर्व संविधान सभा के सदस्य रहे कमलेश्वरी प्रसाद मंडल दो बार जीतकर विधानसभा पहुंचे थे।
पार्टी का साथ मिला लेकिन जनता साथ नहीं रही
मंडल और कमंडल की राजनीति का गहरा असर मधेपुरा में पड़ा। श की राजनीति को नई दिशा देने वाला मंडल कमीशन के प्रणेता बीपी मंडल के गृह क्षेत्र में समाजवाद की राजनीति गहरे पैठ गया।
शुरूआत में कांग्रेस के खिलाफ समाजवादी नेता भी दो धरे में बंटे। जनता पार्टी के विघटन के बाद बने राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाईटेट यहां की राजनीति की धुरी बनी हुई है।
कांग्रेस को बाद के दिनों में जनता पार्टी में पार्टी का साथ राजद के रूप में तो मिला लेकिन जनता का साथ नहीं मिलने से चार दशक से वापसी के इंतजार में है।
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