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Bihar Land Survey 2024: बिहार में आसान नहीं जमीन सर्वे! 600 साल पुरानी कैथी लिपि से चकरा रहा लोगों का माथा

बिहार में चल रहे जमीन सर्वेक्षण में कैथी लिपि में लिखे पुराने दस्तावेजों के कारण लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। कैथी लिपि को पढ़ने-समझने वाले लोगों की कमी के कारण जमीन सर्वे का काम भी प्रभावित हो रहा है। कैथी लिपि एक ऐतिहासिक ब्राह्मी लिपि है जिसका उपयोग 600 ईसवी से शुरू होने का अनुमान है।

By Braj Mohan Mishra Edited By: Mohit Tripathi Updated: Mon, 16 Sep 2024 10:24 PM (IST)
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600 साल पुरानी है कैथी लिपि, बेहद समृद्ध रहा है इसका इतिहास।

जागरण संवाददाता, मधुबनी। बिहार में जमीन सर्वे का काम जारी है। लोग अपनी जमीन के कागजात दुरुस्त करने में इधर-उधर भाग दौड़ कर रहे हैं। प्रायः सभी अंचल कार्यालयों में सुबह से लेकर शाम तक लोगों की भीड़ देखी जा रही है।

ऐसे में वैसे भूस्वामियों को और अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनकी पुश्तैनी जमीन के खतियान तथा बंटवारे के दस्तावेज कैथी लिपि में लिखे हुए हैं।

बता दें कि आजादी से पहले अंग्रेजों के शासनकाल में वर्ष 1910 में जमीन का सर्वेक्षण हुआ था। उस समय जमीन के दस्तावेज एवं खतियान बनाने में कैथी लिपि का ही उपयोग किया गया था।

स्थानीय कुछ जानकार लोगों की मानें तो लगभग वर्ष 1980 से पहले के जमीन के खतियान और बंटवारे के दस्तावेज कैथी लिपि में ही लिखे गए। चुंकि, अब जमीन सर्वे का काम चल रहा है तो, ऐसे में उन दस्तावेजों एवं खतियान को बाहर निकला जा रहा है।

नवनियुक्त अमीन एवं कानूनगो को इन दस्तावेजों को पढ़ने में अत्यधिक समस्या आ रही है। उन्हें इस लिपि की बिल्कुल भी जानकारी नहीं है।

ऐसी स्थिति में रैयतों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। जिस कारण जमीन सर्वे के काम में भी बाधा आ रही है। रैयत अपनी जमीन बचाने के लिए कैथी लिपि के दस्तावेज एवं खतियान को ट्रांसलेट करने के लिए दर-दर भटक रहे हैं।

नहीं मिल रहे अनुवादक

पंडौल प्रखंड के सरिसब पाही बिट्ठो निवासी संजीव कुमार झा मन्ना ने बताया कि उनके 25 बीघा से अधिक जमीन के कागजात कैथी लिपि में हैं। जमीन की रसीद हर साल कटवाया है। लेकिन अब जब सर्वे शुरू हुआ है तो कई परेशानियां सामने आ रही हैं।

दस्तावेज कैथी लिपि में है और देवनागरी में अनुवाद करने वाले नहीं मिल रहे हैं। पूरे जिले में कैथी लिपि के बहुत कम जानकार लोग हैं। खतियान के अनुवाद के लिए रैयतों से 15 से 20 हजार रुपए की मांग होने लगी है।

जमीन सर्वे से जुड़े अमीन व कानूनगो पढ़ेंगे कैथी लिपि

जिला बंदोबस्त पदाधिकारी राजेश कुमार ने बताया कि कैथी लिपि के दस्तावेज एवं खतियान को पढ़ने में आने वाली समस्याओं को दूर करने के लिए राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग बिहार सरकार ने नव नियोजित विशेष सर्वेक्षण अमीन तथा कानूनगो को कैथी लिपि प्रशिक्षण देने का निर्णय लिया है।

प्रशिक्षक के रूप में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के रिसर्च स्कॉलर प्रीतम कुमार तथा छपरा निवासी मो. वाकर अहमद को प्रशिक्षक नियुक्त किया गया है। सभी जिलों में कार्यरत नवनियुक्त विशेष सर्वेक्षण अमीन तथा कानूनगो को बारी-बारी से यह प्रशिक्षण दिया जाएगा।

फिलहाल, प्रशिक्षण का काम बेतिया से शुरू किया जा रहा है। जहां मंगलवार 17 सितंबर से बृहस्पतिवार 19 सितंबर तक मिथिला प्रक्षेत्र की कैथी लिपि, मगध प्रक्षेत्र तथा भोजपुरी प्रक्षेत्र के कैथि लिपि का प्रशिक्षण दिया जाएगा। चुकी स्थानीय बोली के हिसाब से कैथि लिपि की लिखावट के शब्द बदल जाते हैं।

एक ऐतिहासिक ब्राह्मी लिपि है कैथी

कैथी से हिंदी लेखन के लिए रजिस्ट्री कार्यालय के लिए दस्तावेज लिखने वालों के पास या उनके घर पर लोग पहुंचते थे। अनेकों ऐसे मामले सामने आए हैं, जिसमें न्यायालय में भी कैथी में लिखी दस्तावेजों का हिंदी रूपांतरण की जरूरत पड़ती रही है।

जानकारों के अनुसार, कैथी को कायथी या कायस्थी भी कहा जाता है। एक ऐतिहासिक ब्राह्मी लिपि है। जिसका उपयोग 600 ईसवी से शुरू होने की अनुमान है।

दरअसल, में जमीनी दस्तावेज का लेखन कैथी में कायस्थ समुदाय के लोगों द्वारा किया जाता रहा है।  देश में मुस्लिम शासकों के समय कायस्थ समुदाय के लेखन कार्य करने वाले लोग द्वारा कैथी में जमीनी दस्तावेजों का लेखन शुरू किया गया। अंग्रेज शासनकाल से लेकर आजादी के बाद भी जमीनी दस्तावेज लेखन कैथी प्रचलन चलता रहा।

सौराठ सभा के पंजीकरण प्रमोद कुमार मिश्रा ने बताया कि कैथी में में लिखी गई दस्तावेजों में उर्दू, फारसी व अरबी के लफ्जों का मिश्रण है। जैसे जमीनी दस्तावेज में गैर मजरुआ आम, खास, जदीद, परती कदीम, अलहदे, मुकर्रर, ब्रह्मोतरा जैसे शब्दों का उल्लेख मिलता है।

यह जमीन के किस्मों को अंकित करता है। समय के साथ कैथी के जानकार शहर में अब गिने-चुने ही बचे हैं। हालांकि जमीनी दस्तावेजों के लेखन में एक-दो दशक से कैथी प्रचलन धीरे-धीरे कम होने से इसके कैथी के प्रति युवा पीढ़ी का रुझान कम होता चला गया।

कैथी लिपि का रहा अपना इतिहास

कैथी लिपि एक ऐतिहासिक लिपि है। जिसका प्रयोग मध्यकालीन भारत में सर्वाधिक किया जाता था। बिहार विधान परिषद के नोडल अधिकारी एवं कैथी लिपि के जानकारी भैरव लाल दास के अनुसार कैथी लिपि देश की प्राचीन लिपि के रूप में जानी जाती है।

1540 ई. में शेरशाह सूरी के शासनकाल में कैथी लिपि को सरकारी दस्तावेज की लिपि के रूप में मान्यता मिली थी। सरकारी दस्तावेज कैथी लिपि में ही लिखे जाते थे। रैयतों से संबंधित जितने भी कागजात हैं वह सब कैथी लिपि में थे।

कैथी लिपि बिहार की आत्मा थी यहां के जितने भी दस्तावेज हैं सभी कैथी लिपि में लिखी हुई है। परंतु मुगल काल से लेकर अंग्रेजों के कल तक अपनी-अपनी भाषा को बढ़ावा देने के कारण कैथी लिपि धीरे-धीरे समाप्त होती गई।

कैथी लिपि के समाप्त होने का सबसे ज्यादा घाटा बिहार को ही हुआ। आज हालात यह है कि लोगों के पास जमीन के दस्तावेज तो हैं लेकिन वह कैथी लिपि में लिखी है, जो लोग पढ़ नहीं पा रहे हैं।

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