Bihar News: बच्चों के लिए काल बन रहे मधुबनी के अवैध गड्ढे, महज दो महीने में 12 मासूमों की ले चुका है जान
Bihar News जमीन की अंधाधुन खुदाई करने के बाद खुले छोड़ दिए गये गड्ढों में मानसून की बारिश के बाद लबालब भर गये हैं। समस्तीपुर में ये गड्ढे बच्चों के लिए काल बन रहे हैं। महज दो महीने के भीतर इन गड्ढों ने 12 बच्चों को निगल चुके हैं। बच्चे मर रहे हैं लेकिन इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।
ब्रज मोहन मिश्र, मधुबनी। मधुबनी में जेसीबी द्वारा खोदे गये गड्ढे बच्चों के लिए काल बन रहे हैं। जिले में पिछले दो महीने के भीतर जेसीबी द्वारा खोदकर खुले छोड़ दिए गये मौतों के गड्ढों ने 12 से ज्यादा बच्चों को निगल लिया।
नियमों के खिलाफ जेसीबी से जहां-तहां खुदाई करके छोड़ देने से बने गड्डों में डूबकर बच्चों की जान जा रही है। हालांकि न तो आपदा विभाग को इसके बारे में कोई जानकारी है और न ही खनन विभाग को इससे कोई लेना-देना है।
पिछले दो माह के आंकड़े
जिले में पिछले दो महीने में जेसीबी के गड्ढों में डूबने से सबसे ज्यादा मौतें बिस्फी में हुई है। बिस्फी के बलहा में 1, दक्षिण भरनटोल में 2 और हीरो पट्टी में 3 बच्चों की मौत हुई है। पंडौल के सलेमपुर में करीब 15 दिन पहले 3 बच्चों की मौत इसी तरह के जेसीबी के खोदे गड्डे में डूबने से मौत हो चुकी है।
लदनियां में शनिवार और रविवार को ही जेसीबी के खोदे गड्ढे में डूबने से दो बच्चों की मौत हुई है। झंझारपुर के पूरब कोठिया में एक ईंट उद्योग के दूर के कैपस में खोदे गए गड्ढे में डूबने से 2 बच्चों की मौत हो गई थी। ये घटनाएं कुछ माह के भीतर हुई हैं।
बिस्फी में दो साल पहले बिस्फी, नूरचक, कोरियानी, सिमरी आदि गांवों में दर्जन भर से अधिक बच्चे जेसीबी से खोदे गए गड्ढों में डूबकर काल के गाल में समा गए। इन घटनाओं के बावजूद प्रशासन इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। ऐसे मामलों में कोई प्राथिमकी आज तक नहीं हुई है। डूबने वाले बच्चे ज्यादातर गरीब और सामाजिक रूप से पिछड़े होते हैं।
क्या है नियम
नियमों के मुताबिक, ईंट भट्ठों को मिट्टी खोदने के लिये परमिट लेना होता है। खनन पदाधिकारी इसकी जांच करते हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से एनओसी लेना होता है। रॉयलटी शुल्क जमा करना होता है। इसके बाद भट्ठा मालिकों को बतायी गई जमीन में ही खनन करने की अनुमति होती है।
परमिट लेने के अलावा जमीन खोदने के भी कुछ महत्वपूर्ण नियम है। नियमों के मुताबिक, डेढ़ मीटर से ज्यादा गहराई तक किसी भी हालत में नहीं खुदाई की जा सकती है। इसके अलावा, जुलाई से सितंबर माह की बीच बारिश के मौसम में किसी हालत में खुदाई नहीं करनी है।
निजी जमीनों से मिट्टी निकालने के लिए भी खनन विभाग में आवेदन देकर अनुमति लेनी होती है। पहले खनन पदाधिकारी जांच करते हैं। इसके बाद 34 रुपये प्रति घन मीटर के हिसाब से शुल्क जमा कराना होता है। परमिशन मिलने के बाद नियमों के मुताबिक, केवल डेढ़ मीटर से ज्यादा गहराई नहीं की जा सकती है।
व्यवसायिक इस्तेमाल के लिये मिट्टी की खुदाई करने के लिये विभाग से मंजूरी लेने का प्रावधान है। इसके साथ ही इसके लिये डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड में भी शुल्क जमा करना होता है। निजी जमीन पर खुदाई के लिये खनन प्लान देना होता है। खुदाई के बाद गड्ढे को सुरक्षा घेरे से घेरना होता है।
सरकार ने नियम तो बना दिये हैं, लेकिन इस तरह के किसी नियम का पालन नहीं किया जा रहा है। असल में जेसीबी से खोदे अवैध गड्ढों के संबंध में विभाग ने पिछले छह महीनों में कोई कार्रवाई नहीं की है। गड्ढे में डूबकर बच्चे मर रहे हैं, लेकिन न तो कोई नियमों का पालन कराने वाला है और न ही इन बच्चों की सुध लेने वाला।
क्या कहते हैं पदाधिकारी
खनन विकास पदाधिकारी संतोष कुमार का कहना है कि अवैध खनन की शिकायत या सूचना मिलने के बाद या क्षेत्र भ्रमण के दौरान ऐसी बात सामने आती है तो कार्रवाई की जाती है। हालांकि, खनन के बाद गड्ढों को छोड़ देने पर यदि डूबने से किसी की मौत हो जाती है, तो ऐसे मामलों में उनके विभाग की भूमिका नहीं होती है।
क्या कहते हैं जिला आपदा पदाधिकारी
जिला आपदा पदाधिकारी परिमल कुमार कहते हैं कि जेसीबी से खोदे गये गड्ढों में हुई मौतों की रिपोर्ट संबंधित प्रखंड के सीओ से मांगी गई है। बिस्फी के सीओ ने यह जानकारी दी थी कि एक घटना में परिवार ने पोस्टमार्टम कराने से इनकार कर दिया था। ऐसे में मामलों में पोस्टमार्ट और पुलिस रिपोर्ट जारूरी होती है। प्रशासन लगातार अपील कर रहा है कि नदी, तालाब और ऐसे गड्ढों से लोगों का खासकर बच्चों को दूर रखा जाये।