Bihar News मधुबनी का 300 साल पुराना बाबा भुईया स्थान लाखों पशुपालकों की आस्था का केंद्र है। दरभंगा मधुबनी सीतामढ़ी समेत नेपाल देश के पशुपालकों के मन में भुईया स्थान में विशेष श्रद्धा है। मन्नतों के पूरा होने पर सैंकड़ों पशुपालक भक्त हर सोमवार-शुक्रवार को भुईया दूध का चढ़ावा चढ़ाने आते हैं। आसपास के कई जिलों समेत पड़ोसी देश नेपाल के किसान बाबा भुईया स्थान में दूध चढ़ाने पहुंचते हैं।
By Edited By: Mohit TripathiUpdated: Tue, 11 Jul 2023 06:50 PM (IST)
अमोद कुमार झा, जागरण: मधुबनी के बेनीपट्टी प्रखंड के बसैठ गांव में 300 साल पुराना बाबा भुईया स्थान लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है। दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी सहित पड़ोसी देश नेपाल के पशुपालकों के मन में भुईया स्थान में विशेष विश्वास है। मन्नत पूरी होने पर सैंकड़ों पशुपालक भक्त हर सोमवार और शुक्रवार को यहां दूध का चढ़ावा चढ़ाने आते हैं।
पशुपालकों के लिए आस्था व विश्वास का केन्द्र बन गया है। मन्नत पूरी होने पर किसान व पशुपालक बाबा भुईया स्थान में श्रद्धा व निष्ठा के साथ दूध चढ़ाते हैं। दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी जिला सहित पड़ोसी देश नेपाल के किसान व पशुपालक मन्नत पूरी होने पर बाबा भुईया स्थान में दूध चढ़ाने के लिए पहुंचते हैं।
चढ़ाए गये दूध के बारे में खास बात
खास बात यह है कि चढ़ाये गये दूध को एक पात्र में एकत्रित किया जाता है। उसे बेचकर मंदिर का विकास किया जाता है। एक सप्ताह में करीब 400 लीटर दूध एकत्रित होता है। 50 लीटर सामाजिक स्तर पर बांट दिया जा है।350 लीटर दूध को बेचकर उससे आने वाली राशि से मंदिर का विकास कार्य होता है। पहले छोटा सा मंदिर था। लेकिन दूध से हुई कमाई से भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है। भविष्य में धर्मशाला बनाने की योजना पर काम चल रहा है।
तीन सौ सालों से चली आ रही है परंपरा
बेनीपट्टी अनुमंडल मुख्यालय से महज बारह किलोमीटर की दूरी पर बसैठ गांव में बाबा भुईया स्थान विराजमान हैं।
भुईया बाबा स्थान में तीन सौ सालों से पशुपालक इस ऐतिहासिक स्थान में नियम निष्ठा के साथ दूध चढ़ा रहे हैं।
अपने पशुओं स्वाथ्य के लिए दूध अर्पण करते हैं किसान
सप्ताह में सोमवार एवं शुक्रवार को भुईया बाबा दरवार में पशुपालकों की दूध चढ़ाने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है। किसान एवं पशुपालक अपने मवेशी गाय, भैंस और अन्य मवेशी के स्वस्थ और निरोग रहने, गर्भधारण करने व विभिन्न प्रकार की बीमारी से छूटकारा के लिए भुईया बाबा स्थान में कवला करते हैं।
मवेशियों के स्वस्थ रहने एवं गाय व भैंस के बच्चा देने के बाद किसान व पशुपालक एक माह के बाद लोटा में नियम निष्ठा के साथ दूध लेकर बाबा भुईया स्थान चढ़ाने के लिए पहुंचते हैं।
क्या कहते हैं पुजारी
बाबा भुईया स्थान के पुजारी श्रीनारायण यादव ने बताया कि बाबा भुईया स्थान तीन सौ साल पुराना है। सप्ताह में सोमवार और शुक्रवार को बाबा स्थान में पशुपालकों मन्नतों के पूरा होने पर दूध चढ़ाने के लिए आते हैं।
पशुपालक भुईया बाबा के समाधि स्थल पर दूध चढ़ाते हैं। वह दूध बगल के छोटा से बने कुंठ में आकर गिरता है। सप्ताह के दो सोमवार और शुक्रवार दिन दोनों मिलाकर चार सौ से साढ़े चार सौ लोग पशुपालक बाबा के दरवार में दूध चढ़ाने पहुंचते हैं।
कुंठ को पूरी तरह से पवित्र रखा गया है। उसी कुंठ से दूध निकालकर बिक्री की जाती है। बिक्री की राशि से मंदिर का विकास किया जाता है। कुछ दूध समाज में भी बांट दिया जाता है।
घर से निकलने के बाद सीधे मंदिर पहुंचते हैं भक्त
मंदिर के आगे दर्जनों दुकानदार फूल, माला, अगरवती व प्रसाद लेकर बैठे रहते हैं। दूध चढ़ाने वाले पशुपालक प्रसाद, आगरवती, फूल, माला खरीदकर पूजा पाठ के बाद बाबा के स्थान में दूध चढ़ाते हैं।
पशुपालक दूध चढ़ाने के लिए जब अपने घर से निकलते हैं, तो रास्ते में कहीं भी शौच और पेशाव के लिए नहीं रूकते हैं। पूरी निष्ठा के साथ लोटा व डिब्बे में दूध लेकर बाबा के स्थान में पहुंचते हैं।
पुजारी कहते हैं कि बारह पीढ़ी से मेरे परिवार के लोग यह काम को देख रहे हैं। भुईया बाबा के नाम से सोलह कठ्ठा दस धूर जमीन का खतियान है।
क्या कहते हैं पशुपालक
दूध चढ़ाने भुईया बाबा स्थान में आये उच्चैठ गांव की शिवम कुमार यादव, पूनम देवी और पड़ोसी देश नेपाल जलेश्वर के रीझन कुमार साह सहित कई लोगों ने बताया कि गाय और भैंस समय पर गर्भधारण नहीं कर रहा था। वह बराबर बीमार रहता था, जिसके लिए भुईया बाबा से मवेशी के निरोग रहने के लिए कवला किया था।
गाय और भैंस के बच्चा देने के बाद भुईया बाबा के स्थान में नियम-निष्ठा के साथ दूध अर्पण करने आया हूं।
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