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Madhubani Lok Sabha Seat: कांग्रेस-राजद ने यादव तो भाजपा ने ब्राह्मण चेहरे पर कभी नहीं लगाया दांव

1998 1999 2004 2009 में कांग्रेस ने डॉ. शकील अहमद तो राजद ने 2009 और 2014 में अब्दुल बारी सिद्दकी को मौका दिया। दोनों शेख बिरादरी से आते हैं। इस बार भी राजद के टिकट पर मैदान में उतरे दरभंगा के पूर्व सांसद अली अशरफ फातमी शेख समाज से ही आते हैं। जबकि मुस्लिम आबादी में अंसारी धुनिया और कुजरा (अतिपिछड़ा) का बड़ा हिस्सा इस लोकसभा क्षेत्र में है।

By Braj Mohan Mishra Edited By: Rajat Mourya Updated: Tue, 14 May 2024 07:28 PM (IST)
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कांग्रेस-राजद ने यादव तो भाजपा ने ब्राह्मण चेहरे पर कभी नहीं लगाया दांव
ब्रज मोहन मिश्र, मधुबनी। Madhubani Lok Sabha Seat मधुबनी संसदीय सीट का इतिहास पुराना है। शुरुआती दौर में कांग्रेस ने कायस्थ, ब्राह्मण और अतिपिछड़ा मुस्लिम को प्रत्याशी बनाया। उन्हें सफलता भी मिली। 1996 में कांग्रेस ने अंतिम बार किसी ब्राह्मण चेहरे को मौका दिया था। मगर सीपीआई के कद्दावर नेता और ब्राह्मण चेहरा चतुरानन मिश्र ने ही उन्हें हरा दिया।

सीपीआई ने भोगेंद्र झा को भी लगातार प्रत्याशी बनाया और वे जयनगर से लेकर मधुबनी तक चार बार सांसद भी रहे। मगर 1998 और उसके बाद कांग्रेस और राजद ने मुस्लिम समुदाय के उच्च वर्ग शेख पर ही दांव लगाया।

राजद ने अली अशरफ फातमी पर जताया भरोसा

1998, 1999, 2004, 2009 में कांग्रेस ने डॉ. शकील अहमद, तो राजद ने 2009 और 2014 में अब्दुल बारी सिद्दकी को मौका दिया। दोनों शेख बिरादरी से आते हैं। इस बार भी राजद के टिकट पर मैदान में उतरे दरभंगा के पूर्व सांसद अली अशरफ फातमी शेख समाज से ही आते हैं। जबकि मुस्लिम आबादी में अंसारी, धुनिया और कुजरा (अतिपिछड़ा) का बड़ा हिस्सा इस लोकसभा क्षेत्र में है।

1977, 1980, 1984 और 1989 का समीकरण

1977, 1980, 1984 और 1989 में कांग्रेस ने इस वर्ग से आने वाले सफीउल्लाह अंसारी और अब्दुल हन्नान अंसारी को प्रत्याशी बनाया था। 1980 में सफीउल्लाह अंसारी को जीत भी मिली थी। उन्होंने भोगेंद्र झा को करीबी मुकाबले में 3223 वोट से हराया था। जबकि 1984 में अब्दुल हन्नान अंसारी को बहुत बड़ी जीत मिली।

उन्होंने सीपीआई के भोगेंद्र झा को बड़े अंतर से हराया। इसके पीछे बड़ा कारण था इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उठी सहानुभूति की लहर। 1989 में अब्दुल हन्नान अंसारी को सीपीआई के भोगेंद्र झा से हार का सामना करना पड़ा। कारण था पहली बार भाजपा ने अपना उम्मीदवार बालेश्वर भारती के तौर पर उतारा था। जिन्होंने कांग्रेस के बेस वोट में सेंधमारी कर दी और लाभ भोगेंद्र झा को मिला।

बालेश्वर भारती कोइरी वर्ग से आते हैं। भाजपा ने 1991 में भी बालेश्वर भारती को ही उतारा। जबकि कांग्रेस से पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र मैदान में थे। मगर सीपीआई के भोगेंद्र झा ने उन्हें 80 हजार से ज्यादा मतों से पराजित किया। वहीं, बालेश्वर भारती खास नहीं कर पाए।

बुरी तरह हारे कुमुद रंजन झा

1996 में कांग्रेस और सीपीआई दोनों ने ब्राह्मण चेहरे को उतारा और भाजपा ने कोइरी उम्मीदवार को बदलकर हुक्मदेव नारायण यादव पर दांव लगाया। कांग्रेस के कुमुद रंजन झा को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा और सीपीआई के चतुरानन मिश्र को बड़ी जीत मिली। मगर इन दोनों के बीच भाजपा ने हारकर भी अपना वोट प्रतिशत सात से 38 तक पहुंचा लिया था।

इसके बाद भाजपा ने हुक्मदेव नारायाण यादव को 2014 तक लगातार मौका दिया। जिसमें उन्हें तीन बार जीत भी मिली। 2019 में उनके बेटे अशोक यादव को जीत मिली और 2024 में भी वह भाजपा से लड़ रहे हैं। यानी भाजपा ने पहले दो बार कोइरी और उसके बाद लगातार सात बार यादव चेहरे पर ही दांव लगाया।

वहीं, कांग्रेस ने कभी यादव चेहरे पर दांव नहीं लगाया। 2009, 2014 और अब 2024 में राजद मुस्लिम में शेख उम्मीदवार को ही मौका दिया। यानी राजद से उच्च वर्ग के मुस्लिम को छोड़कर किसी दूसरे चेहरे पर दांव नहीं लगाया।

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