बिहार के गांवों में हजारों लोगों को रोगों से बचा रहा मटका फिल्टर, इस तरह करता काम
घोघरडीहा प्रखंड स्वराज विकास संघ के अध्यक्ष रमेश कुमार सिंह ने बताया कि मटका फिल्टर आयरन वाले जल को करीब दो घंटे में फिल्टर कर देता है। पानी से गंध व नुकसानदायक तत्व खत्म करने में चारकोल बढ़िया काम करता है।
By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Sun, 06 Nov 2022 06:35 PM (IST)
कपिलेश्वर साह, मधुबनी: बिजली का झंझट न वाटर प्यूरीफायर की तरह पानी की बर्बादी। इसके बाद भी शुद्ध पेयजल। कीमत भी महज दो से लेकर चार सौ रुपये, जिसे आम आदमी आसानी से खरीद सके। बिहार के मधुबनी जिले में ऐसा ही मटका फिल्टर बनाया जा रहा है। 12 वर्ष पहले इसकी शुरुआत हुई थी। आज यह मटका फिल्टर हजारों ग्रामीणों के लिए वाटर प्यूरीफायर की जरूरत पूरी कर रहा है। इससे करीब 100 कुम्हारों को रोजगार भी मिला है।
पीला पानी देख आया विचार
जिले के घोघरडीहा प्रखंड स्वराज विकास संघ के अध्यक्ष रमेश कुमार सिंह ने फुलपरास प्रखंड में जल की गुणवत्ता पर काम करने के दौरान पाया कि मापदंड से अधिक आयरन होने के कारण यहां हैंडपंप से निकलने वाला पानी पीला है। इससे ग्रामीण पेट की कई बीमारियों से पीड़ित थे। इस पर ऐसे फिल्टर का विचार आया, जिसे कम खर्च में ग्रामीण घरों में लगा सकें। उनका ध्यान पानी साफ करने की परंपरागत मटका विधि पर गया। इसके बाद वर्ष 2010 में इस पर काम शुरू हुआ। स्थानीय कुम्हारों से मटका बनवाकर इसका निशुल्क वितरण शुरू किया। बीते 12 वर्षों में उन्होंने घोघरडीहा, खुटौना व अंधराठाढी प्रखंड के पांच दर्जन से अधिक गांवों में करीब छह हजार लोगों को यह मटका फिल्टर निशुल्क उपलब्ध कराया है। इस पर आने वाला खर्च वे लोगों के सहयोग व संस्था के माध्यम से उठाते हैं।
इस तरह करता काम
मटका फिल्टर तीन मटकों को एक के ऊपर एक रखकर तैयार किया जाता है। पहला मटका खाली रहता है, जिसमें पानी डाला जाता है। दूसरे में फिल्टर के लिए बालू, चारकोल और नायलान की जाली लगी होती है। इससे पानी छनकर तीसरे मटके में पहुंचता है, जो शुद्ध होता है। इसमें लगी टोंटी से पानी निकाला जाता है। इस प्रक्रिया से आयरन समेत अन्य अशुद्धियां दूर हो जाती हैं। मटका में पानी ठंडा भी रहता है, इस कारण फ्रिज का उपयोग नहीं करना पड़ता। इस मटके का इस्तेमाल करने वाली चंद्ररेखा देवी, चानो देवी और शीतली देवी ने बताया कि इससे पेट संबंधी समस्या दूर हो गई है।
कुम्हारों को मिला रोजगार
घोघरडीहा, फुलपरास, अंधराठाढी व खुटौना प्रखंड के करीब 100 कुम्हार 10 से लेकर 30 लीटर वाला मटका फिल्टर बनाते हैं। इसकी कीमत क्रमश: 200, 300 और 400 रुपये होती है। कुम्हार सहदेव और चौठी का कहना है कि 200 रुपये की लागत वाले मटका फिल्टर की मांग अधिक है। मधुबनी के अलावा दरभंगा, सुपौल, सहरसा, समस्तीपुर तक इसकी बिक्री हो रही है। बीते साल फरवरी से लेकर जून तक करीब पांच लाख का कारोबार हुआ था। इस साल यह आंकड़ा करीब 10 लाख तक पहुंचने की उम्मीद है। अब तक छह लाख का व्यवसाय हो चुका है।घोघरडीहा प्रखंड स्वराज विकास संघ के अध्यक्ष रमेश कुमार सिंह ने बताया कि मटका फिल्टर आयरन वाले जल को करीब दो घंटे में फिल्टर कर देता है। पानी से गंध व नुकसानदायक तत्व खत्म करने में चारकोल बढ़िया काम करता है। वैसे पानी से बैक्टीरिया आदि हटाने के लिए कपड़े या छलनी का प्रयोग जरूरी है। मटका फिल्टर में नायलान की जाली यह काम करती है। इसके चलते पानी शुद्ध हो जाता है।
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