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बिहार की एक भी भाषा अब तक नहीं बनी शास्त्रीय भाषा, मैथिली हो सकता शामिल

मधुबनी । शास्त्रीय भाषा के रूप में अब तक बिहार की एक भी भाषा को शामिल नहीं किया गया है।

By JagranEdited By: Updated: Fri, 09 Jul 2021 10:38 PM (IST)
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बिहार की एक भी भाषा अब तक नहीं बनी शास्त्रीय भाषा, मैथिली हो सकता शामिल

मधुबनी । शास्त्रीय भाषा के रूप में अब तक बिहार की एक भी भाषा को शामिल नहीं किया गया है। संविधान की अष्टम सूची में शामिल मिथिला क्षेत्र की भाषा मैथिली शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त करने की सभी निर्धारित शर्तों को पूरा करती है। ऐसे में मैथिली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिलाने के लिए निवेदन समिति के सभापति पूर्व मंत्री सह बेनीपट्टी विधायक विनोद नारायण झा ने पहल की है। इस बाबत उन्होंने राज्य के शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी से भेंट कर उनसे इस दिशा में आवश्यक कदम उठाने का अनुरोध किया है। अपने पत्र में पूर्व मंत्री ने शिक्षा मंत्री से एक उच्च स्तरीय समिति का गठन करने की मांग करते हुए कहा कि कमेटी की रिपोर्ट को भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय को अनुशंसा के लिए भेजा जाए। कमेटी गठन के लिए उन्होंने कई नामों का सुझाव भी शिक्षा मंत्री को दिया है। कहा कि शास्त्रीय भाषा के रूप में अधिसूचित होने के लिए मैथिली भाषा सभी निर्धारित शर्तों को पूरा करती है।

समिति में इन्हें शामिल करने का सुझाव : पूर्व मंत्री ने केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजने के लिए जिस उच्च स्तरीय कमेटी के गठन का सुझाव दिया है, उसके लिए कई नामों की अनुशंसा भी की है। कमेटी में शामिल करने के लिए चाणक्या लॉ यूनिवर्सिटी के कुलपति न्यायमूर्ति मृदुला मिश्रा, सीएम के सलाहकार रिटायर्ड आइएएस अंजनी कुमार सिंह, लनामिवि के पूर्व इतिहास विभागाध्यक्ष प्रो. रत्नेश्वर मिश्र, भारतीय भाषा संस्थान मैसूर के पूर्व निदेशक प्रो. अवधेश मिश्र, मैथिली अकादमी पटना के पूर्व अध्यक्ष प्रो. महेंद्र नारायण राम, चेतना समिति के अध्यक्ष विवेकानंद झा, मैथिली साहित्य संस्थान के सचिव भैरव लाल दास, मिथिला भारती मैथिली शोध पत्रिका के संपादक डॉ. शिव कुमार मिश्र, नवारंभ प्रकाशन के संपादक अजीत आजाद एवं सहरसा महाविद्यालय के प्राध्यापक कमल मोहन के नामों का सुझाव दिया गया है।

अष्टम सूची की छह भाषाओं को मिल चुका दर्जा : बता दें कि संविधान की अष्टम सूची में शामिल छह भाषाओं को अब तक शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिल चुका है। इनमें तमिल (2004), संस्कृत (2005), कन्नड़ (2008), तेलुगू (2008), मलयालम (2013) एवं ओड़िया (2014) शामिल हैं। बता दें कि फरवरी 2014 में संस्कृति मंत्रालय ने किसी भाषा को शास्त्रीय घोषित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इसके अनुसार उन भाषाओं को शास्त्रीय घोषित किया जा सकता है जिसके प्रारंभिक ग्रंथों का इतिहास 1500-2000 वर्ष से अधिक पुराना हो। साहित्यक परंपरा में मौलिकता हो। मैथिली भाषा उन सभी शर्तों को पूरा करती है।

शास्त्रीय भाषाओं के लिए केंद्र की परियोजना : अपने पत्र में पूर्व मंत्री ने कहा है कि शास्त्रीय भाषाओं के लिए केंद्र सरकार ने एक महती परियोजना का शुभारंभ किया है। इसके तहत भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर को डीम्ड विश्वविद्यालय के रूप में विकसित किया जा रहा है। इसमें उन्हीं भाषाओं का अध्ययन एवं शोध शुरू किया जाएगा, जिन्हें शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त हो चुका है। वर्तमान में बिहार की कोई ऐसी भाषा नहीं है जिसे इस परियोजना का लाभ मिल सके।

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