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Sahitya Akademi Award 2024: रिंकी झा और नारायण जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार, मधुबनी के रहने वाले हैं दोनों

Madhubani News बिहार के मिथ‍िला से इस बार दो साहित्‍यकारों को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है। मैथिली साहित्य के लिए युवा कवयित्री रिंकी झा ऋषिका को चुना गया है। उन्‍हें कविता संग्रह नदी घाटी सभ्यता के लिए साहित्य अकादमी युवा देने की घोषणा की गई है। वहीं वरिष्ठ कवि व कथाकार डॉ. नारायण जी को बाल कथा संग्रह के लिए पुरस्कार देने की घोषणा से क्षेत्रवासियों में हर्ष व्याप्त है।

By Sudesh Kumar Mishra Edited By: Prateek Jain Updated: Sat, 15 Jun 2024 09:02 PM (IST)
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मैथिली की कवयित्री रिंकी झा 'ऋषिका' (बाएं), वरिष्ठ कवि व कथाकार डॉ. नारायण जी (दाएं)

जागरण टीम, अंधराठाढ़ी/घोघरडीहा (मधुबनी)। साहित्य अकादमी पुरस्कार 2024 की रविवार को घोषणा की गयी है। इसमें मैथिली साहित्य के लिए युवा कवयित्री रिंकी झा ऋषिका को चुना गया है। 

मैथिली की कवयित्री रिंकी झा 'ऋषिका' को उनके कविता संग्रह 'नदी घाटी सभ्यता' के लिए साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। वह मधुबनी के ननौर की रहने वाली हैं।

वहीं, वरिष्ठ कवि और कथाकार नारायण जी को उनके बाल कथा संग्रह 'अनार' के लिए साहित्य अकादमी बाल पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। ये मधुबनी के घोघरडीहा के रहने वाले हैं।

रिंकी को चेतना समिति पटना भी कर चुकी सम्‍मानित

अंधराठाढ़ी की बेटी रिंकी झा ऋषिका को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिलने की घोषणा सुनते ही समस्त मिथिलांचल और अंधराठाढ़ी एक बार फिर गौरवान्वित महसूस कर रहा है।

अपने पिता के साथ रिंकी

इससे पहले भी रिंकी को मैथिली साहित्य में विशिष्ट योगदान देने के लिए चेतना समिति पटना द्वारा माहेश्वरी सिंह महेश सम्मान भी दिया जा चुका है।

रिंकी की दो पुस्‍तके हो चुकीं प्रकाश‍ित

28 वर्षीय युवा कवियित्री रिंकी बचपन से ही काफी संवेदनशील थी। प्रखंड के ननौर गांव के देवता देवी और शैलेन्द्र झा की सबसे छोटी बेटी रिंकी बचपन से ही साहित्यिक सांस्कृतिक गतिविधियों में काफी आगे रहती थी। रिंकी की कविता वाचन की शुरुआत बाबा नागार्जुन की कविता 'कालिदास सच-सच बतलाना' से हुई थी।

अबतक रिंकी की दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। 2022 में नदी घाटी सभ्यता और 2024 में कठिन समयक विरुद्ध। नवारम्भ प्रकाशन से प्रकाशित नदी घाटी सभ्यता में कुल 49 कविताएं शामिल हैं। पिता को समर्पित इस कविता संग्रह में स्त्री विमर्श का स्वर मुखर है।

प्रसिद्ध मैथिल कवि आनंद मोहन झा बताते हैं कि इनकी कविताएं समय, समाज, इतिहास सभी से प्रश्न करती हैं। मैथिली की नव कवयित्रियों मे इनकी कविताओं मे प्रतिरोध का स्वर सर्वाधिक मुखर है। रिंकी बहुत ही सहज कवियत्री हैं मगर उनकी कविताएं लोगों को सोचने के लिए मजबूर करती हैं।

मैथिली भाषा में पीएचडी धारक हैं  डॉ. नारायण 

घोघरडीहा नगर पंचायत वार्ड दस निवासी वरिष्ठ कवि व कथाकार डॉ. नारायण जी को बाल कथा संग्रह के लिए साहित्य अकादमी दिल्ली के द्वारा बाल पुरस्कार देने की घोषणा से क्षेत्रवासियों में हर्ष व्याप्त है। 68 वर्षीय नारायण जी का जन्म एक जनवरी, 1956 को घोघरडीहा निवासी पिता स्व बालेश्वर झा एवं त्रिपुरा ओझाइन (विमाता) एवं त्रिवेणी ओझाइन माता के घर हुआ था। उन्‍होंने मैथिली भाषा में एमए एवं पीएचडी हासि‍ल की है। 

वे घोघरडीहा स्थित कामेश्वर लता संस्कृत उच्च विद्यालय में 40 वर्षों तक शिक्षक की सेवा में थे। उन्हें बच्चों के लिए अनार बाल कथा संग्रह के लिए साहित्य अकादमी द्वारा बाल पुरस्कार देने की घोषणा की गई है।

नारायण जी को इसके अलावा चेतना समिति पटना द्वारा 1994 ई में डॉ महेश्वरी सिंह महेश ग्रंथ पुरस्कार, यात्री पुरस्कार मैथिल समाज रहिका द्वारा 2010 ई में एवं वर्ष 2017 में कीर्ति नारायण सिंह साहित्य सम्मान से सम्मानित किया गया था। 

नारायण जी की अन्य रचनाएं

नारायण जी की अन्य रचनाओं में कविता संग्रह हम घर घुरि रहल छि, अंगना एकटा आग्रह थिक ई, धरती पर देखु, जल धरतीक अनुरागमें बसैत अछि, कोनो टूटल अछि तंतु एवं 2022 में सांझ बाति के अलावा चित्र कथा संग्रह प्रकाशित हुआ है। नारायण जी साहित्य अकादमी पुरस्कृत स्व जीवकांत के रचित तकैत अछि चिड़ै का हिंदी अनुवाद केदार कानन के साथ मिलकर निशांत की चिड़िया नाम से प्रकाशित हुआ था।

घोघरडीहा से इन्‍हें भी मिले पुरस्‍कार

बता दें कि घोघरडीहा नगर पंचायत वार्ड तीन निवासी स्व जीवकांत को 1998 ई में तकैत अछि चिड़ै के लिए मैथिली में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था तो मरणोपरांत बौकि धरती के लिए बाल पुरस्कार भी मिला था। इसके अलावा वर्ष 2023 में घोघरडीहा प्रखंड क्षेत्र के हटनी निवासी अजित आजाद को मैथिली में 'पेन ड्राइव में पृथ्वी' के लिए साहित्य अकादमी से पुरस्कार मिला था।

डॉ नारायण ने कहा कि बाल साहित्य का मैथिली में समुचित विकास हो, जिससे मैथिली के एक स्वस्थ पीढ़ी का निर्माण हो सके और भाषा एवं संस्कृति की विशिष्टता का संपूर्ण देश में परिचय मिल सके।