नेपाल की तरफ से भारत को सिया सुकुमारी के विवाह का उपहार, इस शालिग्राम देवशिला से 9 माह में स्वरुप लेंगे रामलला
Shaligram Devshila from Janakpur 28 नवंबर 2022 को विवाह पंचमी के अवसर पर नेपाल के जनकपुरधाम के महंत ने श्रीराम जानकी विवाह के आयोजन में संकल्प लिया था कि रामलला का विग्रह तैयार करने के लिए उपहार स्वरुप ये विशाल शालिग्राम देवशिलाएं दी जाएंगी।
By Jagran NewsEdited By: Ashish PandeyUpdated: Tue, 31 Jan 2023 08:47 AM (IST)
बृजेश दुबे/नीरज, जनकपुरधाम/मधुबनी: कृष्ण गंडकी से अयोध्या तक, आस्था सागर का उद्वेलन करती चल रहीं देवशिलाएं दो देशों के मध्य कूटनीतिक या राजनीतिक संबंध की देन भर नहीं हैं। इन संबंधों से अतिरिक्त यह दो आध्यात्मिक राष्ट्रों के मध्य प्रगाढ़ आध्यात्मिक संबंधों का प्रमाण हैं। ये शिलाएं वस्तुत: जनक दुलारी सिया सुकुमारी के विवाह का उपहार हैं अपने पाहुन श्रीराम को। ये शिलाएं बीते वर्ष विवाह पंचमी के अवसर पर अयोध्या से आई राम बरात को विदाई की बेला में उपहार स्वरूप दे दी गई थीं। यात्रा के रूप में देवशिलाएं एक-दो फरवरी की रात्रि तक अयोध्या पहुंचेंगी, जहां मुख्य शिला से रामलला को स्वरूप देने का कार्य होगा।
विवाह पंचमी पर तीन लघु शिलाओं का हुआ था पूजन
नेपाल के जनकपुरधाम स्थित जगतजननी माता जानकी मंदिर में प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष की शुक्ल पंचमी को श्रीराम जानकी विवाह का आयोजन होता है। अयोध्या से बरात आती है। विवाह के पश्चात विदाई की बेला में जनकपुरधाम के महंत बरातियों को भेंट-उपहार देते हैं। राम बरात के संयोजक और देवशिला यात्रा के समन्वयक विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय मंत्री राजेंद्र पंकज ने बताया कि 28 नवंबर, 2022 को विवाह पंचमी के अवसर पर जनकपुरधाम के महंत ने सिया सुकुमारी के विवाह के उपहार स्वरूप ये विशाल शालिग्राम शिलाएं दीं। तब ये प्राप्त नहीं हुईं थी, इसलिए तीन लघु शालिग्राम शिलाओं का पूजनकर संकल्प लिया गया था कि रामलला का विग्रह स्वरूप तैयार करने के लिए ये देवशिलाएं दी जाएंगी।
देवशिला का पूजन करते श्रद्धालु। फोटो- जागरण
जनकपुरधाम स्थित जगतजननी माता जानकी मंदिर के महंत राम तपेश्वरदास वैष्णव ने बताया कि अयोध्या में बन रहे श्रीराम मंदिर में रामलला का स्वरूप कृष्ण गंडकी के शालिग्राम से निर्मित हो, ऐसा भाव आया। जनकपुरधाम ने नेपाल राष्ट्र सरकार और गंडकी प्रदेश सरकार से जानकी विवाह में उपहार देने के लिए देवशिलाएं मांगी थी। विवाह के समय ये देवशिलाएं नहीं मिल पाई थीं। सरकार ने अब जनकपुरधाम को देवशिलाएं सौंपी हैं। राजेंद्र पंकज कहते हैं कि अब हम अपना उपहार ले जा रहे हैं। इन शिलाओं के साथ उपहारस्वरुप पियरी (पीली धोती) धोती, गमछा, फल, मिठाई, पाहुर आदि भी हैं।
शिला निकालने में रखा गया पर्यावरण का ध्यान
पंकज ने बताया कि शिलाओं को निकालने में पर्यावरण का पूरा ध्यान रखा गया है। भूगर्भ विज्ञानियों का कहना था कि नदी की धारा से बड़ी शिलाएं निकालने पर पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इस सुझाव को ध्यान में रखते हुए तटवर्ती क्षेत्र से शिलाएं प्राप्त की गईं। देवशिला की खोज में भी समय लगा। मुक्तिनाथ से पोखरा तक तीन भ्रमण कार्यक्रम में 80 दिन तक शिलाओं की खोज हुई। यह खोज पुलह, पुलस्त्य और कपिल मुनि की तपोभूमि गलेश्वरनाथ धाम पर पूरी हुई। यहां कृष्ण गंडकी नदी के पास शालिग्राम पर स्वयंभू शिवलिंग स्थापित हैं और बाबा गलेश्वरनाथ का आश्रम भी है।
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