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कला के दम पर मधुबनी की महिलाएं बढ़ रही हैं आगे, दे रहीं आत्मनिर्भर बनने का संदेश

मधुबनी के नरुआर की 35 महिलाएं हस्तकला के आत्मबल से बढ़ रहीं आगे। 2005 में एक सिलाई मशीन के सहारे हुई थी शुरुआत। वर्ष 2014 में महिलाओं ने समूह बनाकर कपड़ों की सिलाई के साथ-साथ जूट से झोला सहित अन्य वस्तुओं का उत्पादन और बिक्री का काम शुरू किया।

By Kapileshwar SahEdited By: Ajit kumarUpdated: Thu, 06 Oct 2022 06:51 AM (IST)
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समूह की महिलाओं को प्रतिमाह 10 से 25 हजार रुपये की आमदनी हो रही है। प्रतीकात्मक फोटो
मधुबनी, जासं। करीब 17 साल पहले की गई एक छोटी सी शुरुआत आज स्वावलंबन की पाठशाला बन चुकी है। यहां कला के साथ समृद्धि आ रही है। मधुबनी के झंझारपुर के नरुआर गांव की 35 महिलाएं हस्तकला के आत्मबल से आगे बढ़ रही हैं। ये महिलाएं जूट का झोला, पानी बोतल की थैली, लंच बाक्स, पेंसिल बाक्स, लैपटाप बैग, हैंड बैग और घरेलू उपयोग की अन्य वस्तुएं तैयार कर रही हैं। कोरोना काल में जब हर ओर बेरोजगारी थी, उस दौर में इन्होंने मास्क बनाकर घर-परिवार संभाला। आजादी के अमृत महोत्सव में भी तिरंगा (राष्ट्रध्वज) का निर्माण किया। अब तो सरकारी विद्यालयों के बच्चों की ड्रेस भी बना रही हैं। पाई-पाई जोड़ने वाली महिलाएं अब लाखों में व्यवसाय कर रही हैं।

बच्चों व महिलाओं के कपड़ों की सिलाई से शुरू हुआ सफर

नरुआर की पूनम देवी ने वर्ष 2005 में एक सिलाई मशीन खरीदकर काम शुरू किया था। गांव के बच्चों और महिलाओं के कपड़ों की सिलाई शुरू की थी। उन्हें देख गांव की कुछ महिलाएं साथ आईं। वर्ष 2014 में महिलाओं ने समूह बनाकर कपड़ों की सिलाई के साथ-साथ जूट से झोला सहित अन्य वस्तुओं का उत्पादन और बिक्री का काम शुरू किया। उसी साल जीविका के सहयोग से करीब पांच लाख की लागत से उत्पादन इकाई का विस्तार किया गया। वहां 26 सिलाई, इंटरलाक, कटिंग और पीको मशीन लगाई गई। इसके बाद महिलाओं ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। गांव से निकलकर महिलाएं पटना, दिल्ली, कोलकाता जैसे शहरों में स्टाल लगाकर अपने उत्पादन की बिक्री कर रही हैं। महिलाओं ने कोरोना काल में करीब एक करोड़ का मास्क का कारोबार किया था। 10 लाख का कारोबार सरकारी स्कूलों के बच्चों की ड्रेस से हुआ है। वहीं, तिरंगा का करीब 10 लाख का कारोबार हुआ है। जूट के वस्तुओं से 80 लाख रुपये का व्यवसाय हुआ है। महिलाओं को प्रतिमाह बिक्री के अनुसार उनके उत्पाद का भुगतान किया जाता है। समूह की अध्यक्ष पूनम देवी का कहना है कि जूट से तैयार होनेवाली वस्तुओं तथा स्कूल ड्रेस की मांग वर्षभर होती है। जूट कोलकाता से मंगाया जाता है। समूह की महिलाओं को प्रतिमाह 10 से 25 हजार रुपये की आमदनी हो रही है।

महिलाओं को तीन स्तर पर मिला प्रशिक्षण

झंझारपुर जीविका कार्यालय के जीविकोपार्जन विशेषज्ञ राकेश कुमार सिंह का कहना है कि महिलाओं को जीविका द्वारा तीन चरणों में प्रशिक्षण दिया गया है। प्रथम चरण में बुनियादी जानकारी, दूसरे में एडवांस तथा तीसरे में डिजाइन डेवलपमेंट का प्रशिक्षण दिया गया है। तीनों चरणों के लिए अलग-अलग 15 दिनों के लिए प्रशिक्षण के दौरान महिलाओं को प्रतिदिन 250 रुपये भुगतान किया गया। सरस मेला सहित देश के विभिन्न राज्यों में लगने वाले मेले में शामिल होनेवाली समूह की महिलाओं को आने-जाने, मेला में रहने तथा उनके भोजन का खर्च जीविका द्वारा दिया जाता है। 

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