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1934 के भूकंप का मंजर याद कर आज भी कांप जाती है रूह

मुंगेर। 15 जनवरी 1934 को आए भूकंप के बाद मुंगेर और जमालपुर शहर पूरी तरह से मलबे की ढ

By JagranEdited By: Updated: Mon, 14 Jan 2019 10:07 PM (IST)
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1934 के भूकंप का मंजर याद कर आज भी कांप जाती है रूह

मुंगेर। 15 जनवरी 1934 को आए भूकंप के बाद मुंगेर और जमालपुर शहर पूरी तरह से मलबे की ढेर में तब्दील हो गया था। उस समय आजादी की लड़ाई के लिए संघर्ष कर रहे देश के सभी बड़े नेता मुंगेर पहुंचे थे। महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल आदि ने खुद से हाथों में फवाड़ा लेकर राहत व बचाव अभियान चलाया। 1934 के भूकंप की त्रासदी के साक्षी रहे लोग अब नहीं रहे। लेकिन, अपने बुजुर्गों से कई लोगों ने यह कहानी सूनी। 1934 के भूकंप में जमालपुर रेल कारखाना को भी काफी नुकसान पहुंचा था। इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत ने इंगलैंड से इंजीनियरों की टीम बुलाई। इंजीनियर की टीम ने नए सिरे से जमालपुर और मुंगेर शहर को बसाया। 15 जनवरी 1934 का दिन मुंगेर के इतिहास में काला अध्याय माना जाता है। दोपहर के समय आये भूकंप ने शहर को अस्त-व्यस्त कर दिया था और चारों ओर तबाही का मंजर था। इस भूकंप में सैकड़ों लोगों की मौत हुई थी, वहीं पूरा शहर मलवे में तब्दील हो गया था। धन-बल की भी भारी क्षति हुई थी। खेत और सड़कों में दरारें पड़ गई थी। पंडित मदन मोहन मालवीय, सरोजनी नायडू, खान अब्दुल गफ्फार खान, यमुना लाल बजाज, आचार्य कृपलानी जैसे लोगों ने मुंगेर में आकर राहत कार्य में सहयोग किया था। 1934 में आए भूकंप की याद में आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से पूरे बिहार में 15 जनवरी को भूकंप दिवस के रूप में मनाया जाता है।

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