Ayodhya Ram Mandir: पुलिस के डर से रात में नदी पार कर पहुंच गए थे अयोध्या... पढ़ें आंदोलन की अनकही कहानी, कार सेवक की जुबानी
Ayodhya Ram Mandir अयोध्या आंदोलन के दौरान कारसेवकों को तकलीफें उठानी पड़ी थी। उनका संघर्ष की आज भी सराहना हो रही है। कारसेवक राम कुमार झा कहते हैं कि वह 30 अक्टूबर 1990 को घर से निकले। अयोध्या जाने के क्रम में गोरखपुर में पुलिस ने ट्रेन से उतार दिया। पहरा इतना था कि वह बचते-बचाते नदी के किनारे पहुंचे। रात आठ बजे नदी पार कर अयोध्या पहुंचे।
जागरण संवाददाता, मुजफ्फरपुर। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कारसेवक राम कुमार झा के लिए भावुक करने वाला क्षण है। कहते हैं, इस दिन के पीछे बहुत लंबा संघर्ष है। पहली कारसेवा के बारे में कहते हैं, 30 अक्टूबर 1990 को घर से निकले। अयोध्या जाने के क्रम में गोरखपुर में पुलिस ने ट्रेन से उतार दिया।
बाबा गोरखनाथ का दर्शन कर दोबारा रेलवे स्टेशन पर आए। वहां जो सख्ती थी उसे देख लग रहा था कि वापस ही जाना पड़ेगा। शाम सात बजे अचानक घोषण हुई कि लखनऊ जाने के लिए एक ट्रेन आने वाली हैं। ट्रेन आई। उसमें सवार हो गए। उसके बाद मनिकापुर में उतर गए। वहां विहिप कार्यकर्ता मिले।
अभिनंदन किया और अयोध्या का रास्ता बता दिया। पैदल ही निकल पड़े। जगह-जगह भोजन का इंतजाम था। पुलिस का पहरा इतना था कि कहां गिरफ्तारी हो जाए, कहा नहीं जा सकता। बचते-बचाते सरयुग नदी के किनारे पहुंचे। रात आठ बजे विहिप कार्यकर्ताओं की मदद से नदी पार कर अयोध्या पहुंचे।
वहां छोटी छावनी में पड़ाव हुआ। दो नवंबर की सुबह नौ बजे कारसेवा के लिए निकले। हनुमानगढ़ी के आगे बढ़े तो पहले लाठीचार्ज और उसके बाद फायरिंग शुरू हो गई।
छह दिसंबर को विवादित ढांचे पर टूट पड़े थे कारसेवक
कारसेवक रामकुमार झा कहते हैं कि दूसरी कारसेवा के लिए रास्ते में बाधा नहीं हुई। सीधे अयोध्यानगरी पहुंचे। चार दिसम्बर 1992 को दिगम्बर अखाड़ा में ठहरे। रामधुन में शामिल हो गए।छह दिसम्बर को टास्क मिला की विवादित ढांचा परिसर साफ-सफाई करनी है। सुबह जलपान के बाद नौ बजे पहुंचे। अचानक साधुओं का झु्ंड आया और सीधे विवादित ढांचा वाले परिसर में घुस गया। वहां से रामलला की मूर्ति बाहर करने के बाद धावा बोल दिया। देखते ही देखते ढांचा ध्वस्त हो गया।
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