पूर्व मंत्री सुरेश शर्मा व उनके स्वजन पर बेशकीमती सरकारी जमीने बेचने का आरोप लगा है। खरीदार की जमीन का अंचल से दाखिल-खारिज का आवेदन निरस्त होने पर इस मामले का पर्दाफाश हुआ। डीएम ने जब मामले की जांच कराई तो मुशहरी सीओ ने तिलक मैदान स्थित बिक्री की जमीन के सरकारी होने की पुष्टि की। इस जमीन पर वर्षों से कब्जा कर वाहन शो-रूम चलाया जा रहा था।
प्रेम शंकर मिश्रा, मुजफ्फरपुर। बिहार के पूर्व नगर विकास एवं आवास मंत्री सुरेश कुमार शर्मा और उनके पुत्रों ने बेशकीमती सरकारी जमीन बेच दी। यह मामला तब उजागर हुआ जब जमीन खरीदने वाले के दाखिल-खारिज का आवेदन मुशहरी अंचल से अस्वीकृत हो गया। बताया गया कि पूर्व मंत्री और उनके परिवार के लोगों द्वारा बेची गई जमीन के तीन टुकड़ों में एक बिहार सरकार की है। इसका रकबा 4.2 डिसमिल है।
जमीन खरीदने वाले सूतापट्टी निवासी ऋषि कुमार ने मामले की शिकायत डीएम सुब्रत कुमार सेन से करते हुए इसकी जांच और विधि सम्मत कार्रवाई का आग्रह किया। डीएम के निर्देश पर जांच कराई गई। मुशहरी के अंचलाधिकारी महेंद्र प्रसाद शुक्ला ने जांच रिपोर्ट में जमीन के बिहार सरकार के नाम दर्ज होने की पुष्टि की है।
डीएम को दिए आवेदन में ऋषि कुमार ने कहा कि तिलक मैदान स्थित जमीन की खरीद के लिए ब्रोकरों के माध्यम से बात हुई। तीन अगस्त 2019 को 4.20 डिसमिल, 0.32 डिसमिल एवं 3.98 डिसमिल जमीन के लिए बात तय हुई। इसका मुख्तारनामा किया गया। तीनों टुकड़े की जमीन की कीमत दो करोड़ 15 लाख रुपये तय हुई। राशि देने के बाद 19 मई 2020 को जमीन के तीनों टुकड़ों का निबंधन उसके और अंकित रोशन के नाम से किया गया।
अंचल कार्यालय में इसकी जमाबंदी के लिए आवेदन दिया गया। इसमें यह पता चला कि खेसरा संख्या 329/571 की 4.20 डिसमिल जमीन बिहार सरकार की है। उसे धोखे में रखकर बिहार सरकार की जमीन की बिक्री की गई। जबकि वर्ष 2002-03 में ही तत्कालीन मुशहरी सीओ की रिपोर्ट में उक्त भूमि को बिहार सरकार बताया गया था। इसके बावजूद पूर्व मंत्री का उक्त जमीन पर कब्जा रहा। बाद में इसकी बिक्री कर दी।
इसे देखते हुए पूर्व मंत्री, उनकी पत्नी एवं उनके पुत्र राजीव कुमार शर्मा, संजीव कुमार शर्मा पर विधि सम्मत कार्रवाई की जाए। इस मामले में बात करने के लिए पूर्व मंत्री सुरेश कुमार शर्मा के मोबाइल नंबर पर काल किया तो वह स्वीच आफ मिला। वहीं उनके पुत्र संजीव कुमार शर्मा ने कहा कि इस मामले में वह कल बात करेंगे।
शक के घेरे में निबंधन और अंचल के तत्कालीन सीओ:
डीएम को दिए गए आवेदन एवं मुशहरी सीओ की रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व मंत्री और उनके परिवार ने उक्त जमीन अन्नपूर्णा देवी, पति महंत श्याम नारायण दास से ली थी। वर्ष 2002 में जमीन के दाखिल-खारिज के लिए दिए गए आवेदन को मुशहरी अंचल कार्यालय ने स्वीकृति दे दी थी। मगर इसमें खेसरा संख्या 329/571 को बिहार सरकार की बताते हुए इसका 1870 वर्गफीट क्षेत्र छोड़कर 6789 वर्गफीट हिस्से की जमाबंदी की स्वीकृति दी थी।
करीब 18 साल बाद जमीन की बिक्री के दौरान निबंधन कार्यालय में इस गड़बड़ी को नहीं पकड़ा गया। अस्वीकृत किए गए हिस्से की भी रजिस्ट्री कर दी गई। इसके बाद वर्ष 2021 में तत्कालीन मुशहरी सीओ की कार्यशैली भी शक के घेरे में आ गई है। यह इसलिए कि तत्कालीन सीओ सुधांशु शेखर ने 30 जनवरी 2021 को तीनों टुकड़ों के दाखिल खारिज के आवेदक ऋषि कुमार के आवेदन को अस्वीकृत कर दिया। इसके बाद पुन: मुशहरी अंचल कार्यालय में ही दाखिल-खारिज का आवेदन दिया गया।
इसमें 4.20 डिसमिल रकबा वाले भाग को छोड़कर अन्य दो हिस्सों के दाखिल-खारिज का आवेदन दिया गया। दो जुलाई को तत्कालीन सीओ सुधांशु शेखर ने
0.32 डिसमिल एवं 3.98 डिसमिल रकबा के हिस्से के दाखिल-खारिज को स्वीकृति दे दी। सबसे बड़ा टुकड़ा 4.20 डिसमिल के बारे में बताया गया कि खेसरा संख्या 329/571 हाल सर्वे खतियान में बिहार सरकार के नाम से दर्ज है, जबकि नियमानुसार जिस निबंधन दस्तावेज के दाखिल-खारिज का आवेदन अंचल कार्यालय से अस्वीकृत कर दिया जाता है उसे ऊपर के पदाधिकारी के यहां अपील की जाती है। मगर, इस मामले में यह नहीं हुआ।
एक दस्तावेज पहली बार अस्वीकृत किए गए, बाद में उसमें से एक हिस्से को हटाकर आवेदन दिया गया तो उसे स्वीकृत कर लिया गया।
ऐसा मामला संज्ञान में आया है। सरकारी जमीन की खरीद-बिक्री का मामला है। इसमें जांच रिपोर्ट के आधार पर विधि सम्मत कार्रवाई की जाएगी। -
सुब्रत कुमार सेन, डीएम
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