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बिहार विधान परिषद के भावी सभापति ने 20 वर्षों में नहीं लिया वेतन...सीएम के करीबी इस नेता ने और कई आदर्श स्थापित किए

बिहार विधान परिषद के सभापति बनने जा रहे देवेश चंद्र ठाकुर राजनीति के लिए प्रेरणा। पिछले साल नवंबर महीने में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के 15 साल बेमिसाल कार्यकाल के अवसर पर रुन्नीसैदपुर के अथरी गांव में पैतृक भवन व भूमि को स्कूल के नाम दान कर दिया।

By Ajit KumarEdited By: Updated: Thu, 25 Aug 2022 09:03 AM (IST)
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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ विधान पार्षद देवेश चंद्र ठाकुर। जागरण अर्काइव

सीतामढ़ी, जागरण संवाददाता। बिहार विधान परिषद में सभापति पद के लिए नामांकन के बाद विधान पार्षद देवेश चंद्र ठाकुर की जीत लगभग तय है। नेता व कार्यकर्ता गुरुवार को उनके शपथ ग्रहण को लेकर आशान्वित हैं और इसके लिए उनके स्वागत की तैयारी के लिए पटना पहुंच चुके हैं। जदयू के वरिष्ठ नेता व अधिवक्ता विमल शुक्ला का कहना है कि राजनीति में एमएलसी देवेश चंद्र ठाकुर लोकतंत्र के लिए एक मिसाल हैं। उन्होंने अपने 20 वर्ष के राजनीति करियर में अपना वेतन नहीं लिया। पद को लेकर कभी उनके मन में कोई लोभ-लालच नहीं रहा। देवेश चंद्र ठाकुर चौथी बार तिरहुत स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से विधान पार्षद निर्वाचित हुए हैं। पहली बार साल 2002 में निर्वाचित हुए। इतना ही नहीं विधान पार्षद रुन्नीसैदपुर के अथरी गांव में अपना पैतृक भवन व भूमि एक स्कूल के नाम दान कर दिया है। अब उनके मकान में सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल संचालित हो रहा है। पिछले साल नवंबर महीने में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के 15 साल बेमिसाल कार्यकाल के अवसर पर उन्होंने अपने पैतृक भवन व भूमि को दान किया। जदयू की ओर से विधान मंडल में सदन के उपनेता भी रह चुके हैं। अब सभापति के लिए नामित करना उत्तर बिहार के लिए गौरव का विषय माना जा रहा है।

आदर्श स्थापित करने के लिए नहीं लेते वेतन

देवेश चंद्र ठाकुर के द्वारा वेतन नहीं लेने के सवाल पर उनका कहना है कि अक्सर मैंने लोगों के मुंह से सुना था कि वो नेताओं के बारे में क्या बोलते हैं। लोग कहते हैं कि कल तक साइकिल से चलने वाला आज सूमो-स्कार्पियो से चल रहा है। लोग जन प्रतिनिधियों से नाराज रहते हैं। मैं कोई व्यवसायी नहीं हूं। उन्होंने कहना है कि कि जनता उनके ऊपर दोषारोपण न करे कि कल उनकी हैसियत क्या थी और क्या हो गई है इसलिए जनता से किया वादा कि जब तक विधान पार्षद रहूंगा, अपना वेतन नहीं लूंगा उसको निभाने का प्रयास कर रहा हूं। उन्होंने बताया कि पहले कार्यकाल का पैसा मुख्यमंत्री राहत कोष में दे दिया था। उसके बाद वेतन मद में जो रकम आई, उसका उपयोग स्कूल और कालेज के विकास में किया। विधान परिषद के तत्काल सभापति जाबिर हुसैन से उन्होंने यह इच्छा जाहिर करते हुए जब अनुरोध किया कि वेतन का पैसा नहीं लेना चाहते तो सभापति ने उनसे बताया कि यह प्रावधान ही नहीं है। हां, इसे आप किसी दूसरे मद में दे सकते हैं। इसके बाद उन्होंने खुद वेतन न उठाते हुए इसे अन्य मदों में देने का काम किया।

भूमि को स्कूल के नाम दान करने की चहुंओर प्रशंसा

विधान पार्षद के द्वारा वेतन नहीं लेने और रुन्नीसैदपुर में अथरी गांव स्थित पैतृक भवन व भूमि को स्कूल के नाम से दान कर देने के कदम की हर कोई सराहाना करता है। जदयू जिलाध्यक्ष सत्येंद्र सिंह कुशवाहा, जदयू नेता सह मुखिया संजीव भूषण गोपाल, रुन्नीसैदपुर विधायक पंकज मिश्रा का कहना है कि देवेश बाबू एक ऐसे राजनीतिज्ञ हैं जिनका पूरा जीवन समाज सेवा के लिए ही समर्पित है। विधान पार्षद का कहना है कि भारतीय संस्कृति को जीवंत रखते हुए शिक्षा के साथ देशनिर्माण एवं अपने माता-पिता को सच्ची श्रद्धांजलि स्वरूप अपने पैतृक भवन एवं भूमि को दान दिया है। कहा कि उनके पैतृक आवास, रुन्नी सैदपुर के अथरी स्थित पैतृक भवन व भूमि पर माता-पिता के नाम पर पूर्व से लोक शिक्षा समिति की बाल इकाई अवध ठाकुर रंभा देवी सरस्वती शिशु मंदिर का संचालन हो रहा था। आज भूमि और भवन के दानस्वरुप प्राप्ति के पश्चात लोक शिक्षा समिति, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शैक्षणिक इकाई है एवं विश्व का सबसे बड़ा शैक्षणिक संगठन है। स्थायी रूप से इस क्षेत्र में स्थापित हो गया है। उनका कहना है कि विश्वास है कि परस्पर सहयोग से भविष्य मे अवध ठाकुर रंभा देवी सरस्वती शिशु मंदिर विद्यामंदिर के रूप मे उत्क्रमित हो तथा शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप मे स्थापित होगा। विद्यालय के शिक्षा समिति के अध्यक्ष प्रदीप कुमार सिन्हा ने इसके लिए उनके प्रति आभार जताया है। 

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