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वेतन के 23 लाख लौटाने वाले बिहार के प्रोफेसर साहब को मिली ट्रांसफर वाली ई-मेल, यह रही पहली प्रतिक्रिया

प्रो. ललन को ई-मेल से मिला ट्रांसफर लेटर सोमवार को देंगे योगदान। शहर से 40 किलोमीटर दूर साहेबगंज के चंद्रदेव नारायण कालेज में तबादला। उन्होंने 11 अक्टूबर से अनिश्चितकालीन सत्याग्रह करने का निर्णय लिया था संकल्प। लोगों का सवाल अब सत्याग्रह का क्या होगा?

By Jagran NewsEdited By: Ajit kumarUpdated: Sat, 08 Oct 2022 02:49 PM (IST)
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13 सितंबर को उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन को दिया था ज्ञापन। फाइल फोटो

मुजफ्फरपुर, जासं। नीतीश्वर कालेज के सहायक प्रो.ललन कुमार के तबादले की सूचना शुक्रवार दोपहर उनको ई-मेल से मिली। ई-मेल पर भेजा गया पत्र गोपनीय बताया गया। इसके मिलने के बाद उन्होंने कहा कि उनके आंदोलन को दबाने का प्रयास किया जा रहा है। शहर से 40 किलोमीटर दूर साहेबगंज के चंद्रदेव नारायण कालेज में उनकी बदली कर दी गई है ताकि आंदोलन नहीं कर सकें। उन्होंने कहा कि इसके बाद भी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई जारी रहेगी। विश्वविद्यालय खुलने पर सोमवार को नए कालेज में योगदान देंगे। उसके बाद अवकाश का आवेदन देकर शिक्षा में सुधार के लिए अनिश्चितकालीन सत्याग्रह पर बैठेंगे।

इंटरनेट मीडिया पर लड़ाई जारी

इंटरनेट मीडिया पर प्रो.ललन कुमार की बातें खूब पढ़ी जा रही हैं। उन्होंने लिखा है कि घातक है, जो देवता-सदृश दिखता है, लेकिन कमरे में गलत हुक्म लिखता है। चोरों के हैं जो हित, ठगों के बल हैं, जिनके प्रताप पलते पाप सकल हैं। उन्होंने कहा कि गुरुवार की शाम कुछ लोगों द्वारा नीतीश्वर महाविद्यालय से स्थानांतरित करने की जानकारी मिली। 13 सितंबर को बीआरए बिहार विश्वविद्यालय प्रशासन को शैक्षिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था में आवश्यक सुधार के लिए एक ज्ञापन दिया था। इस संबंध में मैंने 11 अक्टूबर से अनिश्चितकालीन सत्याग्रह करने का निर्णय लिया था। इसे रोकने की मंशा से यह स्थानांतरण किया गया है।

क्या शिक्षा में सुधार की बात करना गलत

विश्वविद्यालय के निजाम की समझ यह है कि आप सुधार की बात करेंगे तो आपको स्थानांतरण की सजा दी जाएगी। इस विश्वविद्यालय के और देश के सभी छात्र-छात्राओं, शिक्षकों, अभिभावकों, समाजसेवियों, शिक्षा व्यवस्था के सभी स्टेक होल्डरों से मेरी अपील है कि इस मुद्दे पर विचार करें। उन्होंने लोगों से सवाल किया है कि क्या शिक्षा में सुधार की बात करना गलत है क्या बिहार के विद्यार्थियों को बेहतर उच्च शिक्षा के लिए बिहार से माइग्रेट होते रहने के लिए अभिशप्त होना पड़ेगा, क्या बिहार के लोग शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि के लिए दूसरे राज्यों का ही मुंह ताकते रहेंगे, आखिर हम कब तक उनपर बोझ बने रहेंगे, क्या बिहारियों की पहचान एक माइग्रेटेड कौम की होकर रह जाएगी, कृपया इन सवालों पर संजीदगी से विचार किया जाए। मेरा संघर्ष केवल व्यक्तिगत नहीं है, यह बिहार और बिहारियों के भविष्य को लेकर है। छुट्टी नहीं मिली तो और कोई हथकंडा अपनाएंगे।