Bihar Tourist Places बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के प्रखंडों में प्राकृतिक सौंदर्य और आस्था का मेल दिखाई देता है। यहां बूढ़ी गंडक नदी के किनारे पानापुर में स्थित भस्मी देवी मंदिर काफी ऐतिहासिक है। इस मंदिर में बलि देने की प्रथा भी अलग तरह की है। नवरात्र के अवसर पर यहां दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं की अच्छी-खासी भीड़ उमड़ती है।
राजीव रंजन, कांटी (मुजफ्फरपुर)। कल-कल बहती बूढ़ी गंडक नदी और इसके किनारे पेड़ों की छाया। मन मोहने वाले इस दृश्य के साथ आध्यात्मिक शांति और शक्ति की भक्ति करनी है तो आइए मुजफ्फरपुर जिले के पानापुर स्थित भस्मी देवी मंदिर।
नदी के किनारे पीपल के पांच पेड़ों के बीच स्थित यह मंदिर सदियों पुराना है। इसकी स्थापना कब हुई और इसका इतिहास क्या है, किसी को नहीं पता, लेकिन इसे पालकालीन बताया जाता है। मंदिर की ख्याति ऐसी है कि बंगाल व असम के अलावा नेपाल से भी श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन से 25 किलोमीटर पश्चिम एनएच-27 मोतिहारी मार्ग के पानापुर में भस्मी देवी मंदिर है। 1958 तक यहां मनौती पूरी होने पर बलि की प्रथा थी।
नवरात्र में बकरे की बलि दी जाती थी। बलि के बाद बकरे को नदी में साफ से धोकर घी, धूप, तिल व अन्य सामग्री के साथ हवन कुंड में भस्म किया जाता था। यहां का हवन कुंड पूरे साल जलता रहता था।1958 में अयोध्या से विमल बिहारी शरण के नेतृत्व में कुछ साधु यहां आए। उन साधुओं ने यहां अखंड कीर्तन करने के बाद बलि प्रथा बंद करा दी। बलि प्रथा बंद होने के बाद यहां अहिंसक बलि के रूप में सफेद कबूतर उड़ाने की अनोखी प्रथा शुरू हुई।
मनौती पूरी होने पर अष्टमी के दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु कबूतर उड़ाते हैं। नवरात्र के दौरान बंगाल से बड़ी संख्या में व्यापारी कबूतर बेचने खासतौर से यहां आते हैं।
मंदिर में पूजा व दर्शन को पहुंचे श्रद्धालु।
हवन कुंड के भस्म का लेप लगाते हैं भक्त
माता भस्मी देवी महिलाओं की सूनी गोद भरती हैं। गोद भरने पर आंचल पर नचवाने की लोकप्रथा भी है। श्रद्धालु मंदिर परिसर स्थित हवन कुंड के भस्म का लेप भी लगाते हैं।
ऐसी मान्यता है कि भस्म लगाने से चर्म रोग तथा पुरानी बीमारियां खत्म हो जाती हैं। वैसे तो यहां पूरे साल श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है।रोजाना करीब दो सौ श्रद्धालु माता के दर्शन को आते हैं, लेकिन शारदीय व बसंत नवरात्र में संख्या बढ़ जाती है। इस दौरान यहां उत्तर बिहार के विभिन्न जिलों के अलावा असम, बंगाल के साथ नेपाल से भी प्रतिदिन हजारों भक्त आते हैं।
मंदिर में स्थापित देवी की प्रतिमा।
नवरात्र में असम व बंगाल से भी आते व्यापारी
यहां पूजा-अर्चना कब से शुरू हुई, इसकी जानकारी किसी को नहीं। सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी लोग यहां पूजा करते आ रहे हैं। वर्ष 1960 में पटना विश्वविद्यालय के एक इतिहासकार ने अपने अध्ययन में मंदिर के गर्भगृह की ईंट को पालकालीन बताया था।हालांकि, उसके बाद किसी ने इस पर कोई शोध नहीं किया। पाल वंश का समय 8वीं से 12वीं शताब्दी तक माना जाता है। भस्मी देवी मंदिर विकास समिति के संरक्षक अवध किशोर प्रसाद शाही सहित अन्य कहते हैं कि मंदिर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए राज्य व केंद्र सरकार से मांग की गई है।
पर्यटन स्थल के रूप में विकसित नहीं होने के कारण श्रद्धालुओं के ठहरने की कोई सुविधा नहीं है। जिन्हें ठहरना होता है वे कांटी स्थित होटल में जाते हैं।नवरात्र में यहां मेला लगता है, जिसमें लकड़ी से बने सामान की काफी मांग होती है। असम व बंगाल के कारीगर लकड़ी से बने सजावटी और घरेलू उपयोग की वस्तुएं बेचने आते हैं।
नवरात्र के दौरान मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की भीड़ कुछ इस तरह उमड़ती है।उस दौरान खाने-पीने की दर्जनों दुकानें लगती हैं। पुजारी रविशंकर दुबे कहते हैं कि यहां आने वाले भक्तों के सभी कष्ट और संताप भस्म हो जाते हैं। माता उनकी मनोकामना पूरी करती हैं।आचार्य लालनारायण झा बताते हैं कि भस्मी देवी अज्ञानरूपी अंधकार से ज्ञान का प्रकाश लाने वाली भगवती हैं। इनके दर्शन व पूजन से यश व कीर्ति मिलती है।
ऐसे पहुंचें
यहां आने के लिए मुजफ्फरपुर, कांटी और मोतीपुर निकटतम रेलवे स्टेशन हैं। मुजफ्फरपुर से 25, कांटी रेलवे स्टेशन से सात और मोतीपुर रेलवे स्टेशन से इसकी दूरी आठ किलोमीटर है। इन सभी रेलवे स्टेशनों से आटो लेकर यहां पहुंच सकते हैं।
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