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Diwali 2022: सपनों से भी सुंदर घरौंदों में भरे जाते थे भावनाओं के रंग...वे दिन भी क्या दिन थे

Deepawali 2022 मिट्टी के घरौंदे की जगह थर्मोकाल और लकड़ी से बने रेडिमेड घरौंदों ने ले ली। घरौंदे के माध्यम से भाई का घर-परिवार भरा-पूरा रहने की कामना करतीं हैं बहनें। पहले घरौंदों की चटखीले रंगों से पुताई की जाती थी। उस पर फूल-पत्ती बनाकर सजाया जाता था।

By Jagran NewsEdited By: Ajit kumarUpdated: Thu, 20 Oct 2022 11:20 AM (IST)
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अब पहले वाली बात नहीं रही, आत्मीयता की कमी महसूस हो रही। फोटो: जागरण
मुजफ्फरपुर, [मीरा सिंह]। दीपावली का मतलब मिट्टी के दीये, लड़ियां-झालर, रंगोली, लक्ष्मी-गणेश की पूजा और पटाखों की मस्ती...। वहीं कुछ ऐसा भी है जिसे हम अब बिसरा रहे हैं। पहले की उन यादों को जरा ताजा करें। दीपावली पर मिट्टी के घरौंदे बनाने को बच्चे उत्साहित रहते थे। घरौंदों की चटखीले रंगों से पुताई कर उस पर फूल-पत्ती बना सजाते थे। खील-बताशे रख उसे भरा जाता था। वहीं बदलते परिवेश में हम इन परंपराओं को ही भूलने लगे हैं। अब मिट्टी के घरौंदे की जगह थर्मोकाल और लकड़ी से बने रेडिमेड घरौंदों ने ले ली है। इनसे न तो वह भावनात्मक जुड़ाव होता है, न वो उत्साह। महज रस्म अदायगी रह गई है।

...ताकि भरा-पूरा रहे घर-परिवार

मिठनपुरा की सरोजनी झा कहती हैं, दीपावली से चार-पांच दिन पहले ईंट, मिट्टी, बांस की कमानी, सनठी इकट्ठे कर आंगन में खूबसूरत घरौंदा तैयार करतीं थीं। अहाता तैयार कर दरवाजे पर पेड़ के प्रतीक स्वरूप खर लगाए जाते थे। लाल, नीले, हरे, गेरुआ रंगों से रंगाई होती थी। दीवार पर फूल-पत्तियां बनती थीं। दीपावली के दिन भाई के नाम से मूढ़ी, खील-बताशे और खिलौने घरौंदा में रखते और उसके आगे दीया जलाते थे। अगली सुबह मूढ़ी, खील-बताशे भाई को खिलाए जाते थे। माना जाता था कि जैसे खील-बताशों, खिलौनों से घरौंदे को भरा है वैसे ही भाई का घर-परिवार भरा-पूरा रहे। अब धीरे-धीरे यह परंपरा खत्म होती जा रही है। लोगों के पास न तो समय है और न ही पहले जैसा माहौल। लेनिन चौक निवासी सोमू कहते हैं एक दशक पहले तक घरौंदा बनाने को लेकर काफी उत्साह रहता था। भाई-बहन पहले से ही योजना बनाने लगते थे। घरौंदे को तैयार करने में मिट्टी-कीचड़ में सन जाया करते थे। अब तो बच्चे मिट्टी छूना ही नहीं चाहते। वे रेडिमेड घरौंदा ही खरीद लाते हैं।

कल्पनाओं को मिलते थे आकार

घरौंदे बनाने के पीछे मनोवैज्ञानिक पहलू भी था। देखा जाता था कि लड़की कितनी सुघड़ है। उसकी कल्पनाशीलता और कलात्मकता कैसी है। घर में उपलब्ध चीजों से ही घरौंदे तैयार किए जाते थे। इससे बेकार की चीजों को उपयोगी बनाने की सीख भी मिलती थी। वहीं आध्यात्मिक पक्ष यह है कि भगवान राम 14 वर्ष बाद अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों का मानना था कि भगवान राम के आने से उनकी नगरी दोबारा बसी है। उसी के प्रतीक स्वरूप घरौंदे बनाए जाते थे। 

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