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आपातकाल के 49 साल: JP की पर्ची पर बनती थी आंदोलन की रणनीति, शहर से गांव तक बांटे जाते पोस्टर

जेपी आंदोलन में सक्रिय रहे पूर्व विधायक महेश्वर प्रसाद यादव ने कहा कि आंदोलन के दौरान 13 अगस्त 1975 को उनपर गायघाट की सड़क काटने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के लिए लोगों को भड़काने का आरोप लगा। मुकदमा हुआ और लगातार 19 महीना 21 दिनों तक जेल में रहना पड़ा। बाद में मोरारजी देसाई की सरकार आई तो रिहाई का आदेश दिया।

By Amrendra Tiwari Edited By: Rajat Mourya Updated: Tue, 25 Jun 2024 02:03 PM (IST)
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जय प्रकाश नारायण और इंदिरा गांधी। (फोटो- जागरण)
जागरण संवाददाता, मुजफ्फरपुर। 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाने की घोषणा की थी। उस दौरान भारत रक्षा अधिनियम (डीआईआर) और आंतरिक सुरक्षा कानून (मीसा) के अंतर्गत बंदी बनाए गए कई लोगों को अमर शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारा में बंद कर दिया गया था।

इनमें जॉर्ज फर्नांडीस, डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह, साधुशरण शाही आदि शामिल थे। कारागार में शारीरिक-मानसिक प्रताड़ना झेली। मीसा बंदी मुरौल कोरीगांवा निवासी डीके विधार्थी पुराने दिनों को याद कर सहम जाते हैं।

कहते हैं कि अपने देश में ही शासन-प्रशासन के लोग दुश्मन की तरह देखते थे। दो बार गिरफ्तार हुए। लंबे समय जेल में रहे। उस समय मोबाइल का युग नहीं था। धर्मशाला चौक पर भोला चौधरी की चाय की दुकान पर पर्ची आती और उसके आधार पर आंदोलन की रणनीति बनती थी।

मीसा में उनके साथ पूर्व विधायक साधुशरण शाही, मुशहरी के रामशृंगार सिंह व समाजवादी लक्षणदेव प्रसाद भी अंदर रहे। डीआइआर के तहत गिरफ्तार व भूमिगत अब भी अलग-अलग जगह पर सामाजिक व राजनीतिक काम में लगे हैं। अभी करीब 100 जेपी सेनानी पेंशन लेने वाले और पचास भूमिगत आंदोलन वाले हैं। समय-समय पर सभी की बैठक होती हैं।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार आई तो जेपी सेनानी परिषद का गठन किया। वह भी तीन सदस्य वाली टीम के सदस्य हैं। अभी दो सदस्य में से एक अनिल प्रकाश हैं। एक सदस्य अंजनी कुमार की मृत्यु हो गई।

साइकिल से गांव-गांव में जाकर करते थे प्रचार

जेपी आंदोलन में सक्रिय रहे पूर्व विधायक महेश्वर प्रसाद यादव ने कहा कि आंदोलन के दौरान 13 अगस्त 1975 को उनपर गायघाट की सड़क काटने, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के लिए लोगों को भड़काने का आरोप लगा। मुकदमा हुआ और लगातार 19 महीना 21 दिनों तक जेल में रहना पड़ा।

बाद में मोरारजी देसाई की सरकार आई तो रिहाई का आदेश दिया। जेपी सेनानी धनौर निवासी अधिवक्ता परशुराम मिश्रा ने कहा कि गांव में ऐसा आंदोलन हुआ कि सरकार हिल गई। सत्ता परिवर्तन हुआ। पारू प्रखंड के देवरिया मुहब्बतपुर निवासी सीताराम साह कहते हैं कि वह कठिन दौर था।

सरकार के विरुद्ध बोलने पर पाबंदी थी। वह भूमिगत हो गए थे। पुलिस उन्हें गुप्त सूचना पर गिरफ्तार कर ली। 12 माह तक जेल में रहे। मुजफ्फरपुर तथा भागलपुर जेल में रहे। वहां काफी प्रताड़ना झेलनी पड़ी।

चाय की दुकान को होटल डी पेरिस का दिया नाम

आपातकाल के आंदोलन में शामिल धर्मशाला चौक के भोला चौधरी ने बताया कि उनकी चाय की दुकान सूचना-आदान प्रदान का केन्द्र थी। प्रशासन की नजर से बचाने के लिए चाय की दुकान को होटल डी पेरिस नाम का कोड दिया गया था। बाहर से आने वाले सारे आंदोलनकारी यहां पर आते थे।

पोस्टर बैनर छपकर यहां पर आता था। शहर से गांव तक वितरण होता। जेपी आंदोलन में उनके लिए यह टास्क था कि गिरफ्तारी नहीं देनी हैं ताकि आंदोलन की सूचना विधिवत प्रसारित होती रहे। कई बार पकड़े गए। शिविर जेल में रहते व निकल जाते। मझौलिया रोड के समाजवादी शारदा मल्ल तथा कलमबाग चौक के अधिवक्ता राजदेवनारायण सिंह के यहां पर मुख्य बैठक होती थी।

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