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Lalit Narayan Mithila University: बीएड रेगुलर कोर्स में सौ सीटों को औपबंधिक रूप से दी स्वीकृत

BEd Regular Course in Lalit Narayan Mithila University पटना उच्च न्यायालय ने विश्वविद्यालय एवं दूरस्थ शिक्षा बनाम एनसीटीई मामले में दोषी व्यक्ति पर पांच लाख जुर्माने का दिया आदेश। न्यायालय ने कहा विश्वविद्यालय की उदासीनता के कारण विधिवत योग्य व्यक्तियों की भर्ती नहीं की गई ।

By Murari KumarEdited By: Updated: Fri, 25 Dec 2020 06:57 AM (IST)
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ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय कि फाइल फोटो
दरभंगा, जागरण संवाददाता। पटना उच्च न्यायालय ने ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय एवं दूरस्थ शिक्षा निदेशालय बनाम एनसीटीई  के मामले की सुनवाई पर अपना फैसला सुनाया  है। इसमें ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय को निर्देश दिया है कि लापरवाही बरतने एवं गैर जिम्मेदाराना कार्य किए जाने को लेकर दोषी व्यक्ति से पांच लाख रुपये जुर्माना वसूल किया जाए। विश्वविद्यालय अंतर्गत चल रहे दूरस्थ शिक्षा निदेशालय ने एनसीटीई पर पटना उच्च न्यायालय में वाद संख्या सीडब्ल्यूजेसी नंबर 9421-2020 दायर किया गया था। इसमें एनसीटीई द्वारा बीएड रेगुलर कोर्स के पूर्व से स्वीकृत सौ सीटों को घटाकर 50 सीट करने के निर्णय को चुनौती दी गई थी। एनसीटीई ने अपने पत्र में इस बात का जिक्र किया था कि सौ सीटों के लिए मानक फैकल्टी सदस्य संस्था के पास नहीं है।

 पत्र में उद्धृत मानक के अनुसार न्यूनतम तीन शिक्षकों  की नियुक्ति के बाद ही सौ सीटों पर नामांकन की मान्यता की बात कही गई थी। दूरस्थ शिक्षा निदेशालय ने इस के लिए तीनों संकाय सदस्यों का चयन किया था। जिसे एनसीटीई ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था, कि ये नियुक्तियां एनसीटीई के मानदंडों को पूरी तरह से  पूरा नहीं करते। साथ ही मानक के अनुसार ये अयोग्य हैं। दूरस्थ शिक्षा निदेशालय ने उन नियुक्तियों को खारिज कर फिर से तीन नई नियुक्तियां की तथा एनसीटीई को इस नयी नियुक्ति के आलोक में अपने पूर्व के निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए पुनर्विचार याचिका प्रेषित किया था। जिसे एनसीटीई ने अस्वीकृति कर दिया । एनसीटीई के इस निर्णय के विरुद्ध  विश्वविद्यालय उच्च न्यायालय गई थी ।

50 अतिरिक्त सीटों पर औपबंधिक नामांकन की अनुमति

पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ए अमानुल्लाह ने अपने आदेश में  50 अतिरिक्त सीटों पर औपबंधिक नामांकन की अनुमति दी है। साथ ही पूर्व में एनसीटीई के रेग्युलेशन की जानकारी होने के बावजूद प्रथम चरण में अयोग्य शिक्षकों की नियुक्ति को गंभीरता से लिया है। न्यायालय ने विश्वविद्यालय को जिम्मेदार व्यक्तियों को चिन्हित कर पांच लाख रुपये जुर्माने के रूप में वसूलने का आदेश जारी किया है। विश्वविद्यालय अधिवक्ता ने बताया कि जुर्माना वसूली करने की प्रक्रिया को तत्काल विचाराधीन रखा गया है। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि  इस तरह की लागत सरकारी खजाने से नहीं आनी चाहिए क्योंकि यह स्पष्ट रूप से इस प्रकार की भर्ती प्रक्रिया के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों का कार्य है। न्यायालय ने इस मुद्दे पर एक जांच के निर्देश देने और व्यक्तियों पर जिम्मेदारी तय करने की बात कही है।

 कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा की सांविधिक विश्वविद्यालय होने के नाते यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है कि एनसीटीई के मानदंडों को पूरी तरह से संतोषजनक तरीके से पूरा करने के उद्देश्य से संकाय की भर्ती की ऐसी प्रक्रियाओं का आयोजन करेगा जिसके परिणाम स्वरूप तीनों ऐसे व्यक्तियों को नियुक्त किया गया जो बुनियादी पात्रता, मानदंड को पूरा नहीं करते थे । याचिकाकर्ता विश्वविद्यालय द्वारा इस तरह की बड़ी चूक को उनकी ओर से अनजाने में हुई त्रुटि के रूप में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता । एक और विश्वविद्यालय की उदासीनता के कारण विधिवत योग्य व्यक्तियों की भर्ती नहीं की गई दूसरी ओर इसमें सुधारात्मक उपाय करने में समय बर्बाद कर अनावश्यक रूप से सिस्टम को बाधित किया गया। न्यायालय ने सौ सीटों को औपबंधिक रूप से स्वीकृत करते हुए आदेश दिया कि ऐसे सीटों पर प्रवेश के लिए  उच्चतम न्यायालय द्वारा अनुमोदित नोडल विश्वविद्यालय द्वारा अधिसूचित समय सारणी के अनुसार 26 दिसंबर से 30 दिसंबर तक पूरा कर लिया जाएगा। 

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