अपने नाम पर शैक्षणिक संस्थानों के नामकरण के विरोधी थे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जननायक कर्पूरी ठाकुर
1960 में पटोरी में स्थापित कॉलेज के नामकरण में आचार्य नरेंद्र देव का सुझाया था नाम। 1978 में वारिसनगर के मथुरापुर में स्थापित कॉलेज में अपना नाम देखकर हो गए थे नाराज।कई ऐसे मौके आए जब उन्होंने सामाजिक प्रस्ताव को अस्वीकार कर देश की अन्य विभूतियों के नाम जोड़े।
समस्तीपुर, [मुकेश कुमार]। कर्पूरी ठाकुर शैक्षणिक संस्थानों के खोलने के पक्षधर थे। दूर-दराज के गांवों में स्कूल-कॉलेज खोले जाने में उनकी भावनात्मक रुचि रही। शुरुआती दौर में जिले के शाहपुर पटोरी, ताजपुर व शहरी क्षेत्र में स्कूलों की स्थापना में अहम भूमिका निभाई थी। बाद में अन्य जिलों में भी स्कूलों की स्थापना कराई। लेकिन, इन संस्थानों के खुद के नाम पर नामकरण के विरोधी रहे। कई ऐसे मौके आए जब उन्होंने सामाजिक प्रस्ताव को अस्वीकार कर देश की अन्य विभूतियों के नाम जोड़े।
निर्माण में बढ़-चढ़कर सहयोग किया
साहित्यकार और सेवानिवृत्त प्राध्यापक प्रो. ब्रह्मदेव झा बताते हैं कि पटोरी में वर्ष 1960 में एक कॉलेज खोलने की योजना बनी थी। स्थानीय लोगों में सहमति बनी कि कर्पूरीजी से बात की जाए। उन तक जब बात पहुंची तो वे सहर्ष तैयार हो गए। कॉलेज निर्माण में बढ़-चढ़कर सहयोग किया था। बांस-बल्लों के साथ ईंट व मिट्टी तक की ढुलाई की। जब कॉलेज का भवन बनकर तैयार हो गया तो नामकरण का प्रस्ताव उनके पास गया। कॉलेज का नाम 'कर्पूरी ठाकुर महाविद्यालय रखा गया था। उन्होंने जनभावनाओं का सम्मान किया, पर खुद के नाम पर नामकरण के लिए तैयार नहीं हुए। उन्होंने आचार्य नरेंद्र देव के नाम पर महाविद्यालय के नामकरण का सुझाव दिया था।
प्रस्ताव को कर दिया था खारिज
सन् 1978 में वारिसनगर के मथुरापुर में एक कॉलेज की स्थापना हुई थी। कॉलेज के नामकरण की बात छिड़ी तो स्वतंत्रता सेनानी व समस्तीपुर के पूर्व विधायक राजेंद्र नारायण शर्मा ने कर्पूरी ठाकुर के नाम का प्रस्ताव रखा था। इसपर उन्होंने नाराजगी व्यक्त की थी। काफी मान-मनौव्वल के बाद सहमति बनी। लेकिन, उन्होंने कॉलेज के नामकरण में 'कर्पूरी जोडऩे से पहले पूर्व राज्यपाल सत्यनारायण सिन्हा, मेहरअली, रामनंदन मिश्र, चरण सिंह का नाम जोडऩे की शर्त रख दी थी। बाद में कॉलेज का नाम 'एसएमआरसीके महाविद्यालय रखा गया।
घर की जगह बनवा दिया था स्कूल
पूर्व सांसद भोला सिंह ने एक संस्मरण में लिखा है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद भी जब कर्पूरीजी ने अपना घर नहीं बनाया तो किसी ने उनके लिए पचास हजार ईंटें भिजवा दीं। इसी दौरान उन्हेंं पता चला कि समस्तीपुर के पितौंझिया स्थित उनके गांव में स्कूल का भवन नहीं है तो उन्होंने उन ईंटों से स्कूल बनवा दिया। कर्पूरी ठाकुर स्मृति ग्रंथ के प्रधान संपादक डॉ. नरेश कुमार विकल बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर का जीवन चरित्र एक सीख है। संस्कृत शिक्षा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष डॉ. दुर्गेश राय का कहना है कि शिक्षा के अलावा साहित्यकारों और संगीतकारों के प्रति उनका सम्मान सर्वविदित था। मुख्यमंत्री रहते साहित्यकार रामावतार अरुण और पंडित सियाराम तिवारी को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत कराया था।
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