जयंती विशेष: गरीब-गुरबों की आवाज थे जननायक कर्पूरी ठाकुर, सादगी और ईमानदारी के थे प्रतिमूर्ति
Jubilee special आज जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती। गैर लाभकारी भूमि पर मालगुजारी बंद कर किसानों को दी थी राहत। कैंप लगाकर नौ हजार इंजीनियरों और डॉक्टरों को दी थी नौकरी।
By Murari KumarEdited By: Updated: Fri, 24 Jan 2020 09:19 AM (IST)
समस्तीपुर [विनोद कुमार गिरि]। सूबे में 24 जनवरी की खास अहमियत है। हर साल इसी दिन जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती मनाई जाती है। वे राजनीति में उस ऊंचाई तक पहुंचे, जहां उनके जैसी पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति के लिए असंभव सा है। वे बिहार की राजनीति में गरीब-गुरबों की सबसे बड़ी आवाज बन कर उभरे थे।
समस्तीपुर प्रखंड के पितौंझिया (अब कर्पूरीग्राम) में 24 जनवरी, 1924 को जन्मे कर्पूरी ठाकुर बिहार में एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे। 1952 की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद लगातार बिहार विधानसभा का सदस्य रहे। दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे। इस दौरान ऐसी छाप छोड़ी कि आज भी लोग याद करते हैं। बिहार में समाजिक बदलाव की शुरुआत
पूर्व विधायक दुर्गा प्रसाद सिंह कहते हैं कि कर्पूरी जी 1967 में पहली बार उपमुख्यमंत्री बने। उन्होंने अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म कर दी। इसके चलते उनकी आलोचना हुई, लेकिन उन्होंने शिक्षा को आम लोगों तक पहुंचाया। ऐसा इसलिए किया कि उस समय अंग्रेजी में सबसे ज्यादा बच्चे फेल होते थे। हालांकि, उनका मजाक भी उड़ाया गया। आर्थिक तौर पर गरीब बच्चों की स्कूल फी को माफ करने का काम भी किया। कर्पूरी जी देश के पहले मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने अपने राज्य में मैट्रिक तक मुफ्त पढ़ाई की घोषणा की थी।
उजियारपुर भाजपा के पूर्व मंडल अध्यक्ष एवं बेलामेघ गांव निवासी महादेव साह कहते हैं कि 1971 में मुख्यमंत्री बनने के बाद किसानों को बड़ी राहत दी। गैर लाभकारी जमीन पर मालगुजारी बंद कर दी। यह किसानों के लिए राहत देने वाला फैसला था। वे कहते हैं कि 1977 में मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्य की नौकरियों में गरीबों और पिछड़ों के लिए आरक्षण लागू कर दिया।
हालांकि, इसका उस समय भारी विरोध भी हुआ। लेकिन, उन्होंने बगैर झुके समाज के पिछड़े वर्ग को आगे बढऩे का मौका दिया। उनके करीबी रहे उजियारपुर निवासी रामसागर महतो कहते हैं कि युवाओं को रोजगार देने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता इतनी थी कि शिविर लगाकर नौ हजार से ज्यादा इंजीनियरों और डॉक्टरों को एक साथ नौकरी दी। इतने बड़े पैमाने पर एक साथ राज्य में इसके बाद आज तक इंजीनियर और डॉक्टर बहाल नहीं हुए।
सादगी और ईमानदारी के प्रतिमूर्ति थेपूर्व विधायक दुर्गा प्रसाद सिंह कहते हैं कि कर्पूरी जी लंबे समय तक राजनीति में रहे। वे विधायक और मुख्यमंत्री रहे। लेकिन, अपने जीवन में एक इंच न तो जमीन खरीद सके और न ही अपना घर ही बना सके। लोग इसकी कल्पना तक नहीं कर सकते। लेकिन, यह सच है। झोपड़ी के लाल कर्पूरी जी जीवन भर अपनी झोपड़ी में ही रहे। ऐसा करनेवाला देश में शायद ही कोई नेता होगा। वे परिवारवाद के विरोधी थी। कर्पूरी जी का देहांत 64 साल की उम्र में 17 फरवरी, 1988 को दिल का दौरा पडऩे से हो गया। वे भले ही आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनके विचार, उनकी निष्ठा, सादगी, ईमानदारी लोगों के जेहन में है।
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