चंपारण सत्याग्रह: इस गांव की गरीबी ने गांधी को झकझोरा, वस्त्र त्याग धारण कर ली धोती
चंपारण सत्याग्रह के दौरान बापू को वहां की गरीबी ने झकझोर दिया। गांधीजी ने जाना कि वहां महिलाओं के पास पूरे पूरे कपड़े तक नहीं। तब उन्होंने भी कपड़े त्याग धोती-चादर धारण कर लिए।
By Amit AlokEdited By: Updated: Mon, 10 Apr 2017 11:36 PM (IST)
पटना [सुनील राज]। चंपारण सत्याग्रह से जुड़ी कई कहानियां ऐसी हैं, जिनके साक्ष्य शायद इतिहास के पन्नों में न मिलें, मगर पीढिय़ों से चंपारण के लोग सुनाते रहे हैं । कहा जाता है कि चंपारण की मर्मस्पर्शी सच्चाईयों को महसूस कर बापू महात्मा बन गए। ऐसी ही एक सच्चाई थी यहां की गरीबी, जिसमें महिलाओं के पास पूरा तन ढ़कने को भी कपड़े नहीं होते थे। कस्तूरबा ने जब बापू को इससे अवगत कराया तो उन्होंने पूरे कपड़े त्याग करने का संकल्प लिया। तब से गांधीजी खुद बुनी खादी की धोती और चादर से ही तन ढंकते थे।
चंपारण सत्याग्रह के दौरान बापू पहली बार 27 अप्रैल 1917 को चंपारण के भितिहरवा गए। नरकटियागंज के रास्ते बिहार आए बापू किसानों की पीड़ा जानने के लिए गांव-गांव घूमते और उन्हें दस्तावेज की शक्ल देते। वे गांवों में जनसभाएं भी करते।
चंपारण सत्याग्रह के दौरान बापू पहली बार 27 अप्रैल 1917 को चंपारण के भितिहरवा गए। नरकटियागंज के रास्ते बिहार आए बापू किसानों की पीड़ा जानने के लिए गांव-गांव घूमते और उन्हें दस्तावेज की शक्ल देते। वे गांवों में जनसभाएं भी करते।
सीएम नीतीश ने कहा- जिन्हें गांधी के विचारों से लेना देना नहीं, वो भी करेंगे कार्यक्रमभितिहरवा आश्रम के सेवक अनिरुद्ध चौरसिया बताते हैं कि बापू जब गांवों में किसानों की समस्या सुनते तो हमेशा महसूस करते कि पीड़ा बताने वालों में महिलाओं की संख्या बेहद कम होती। जनसभाओं में भी ऐसा ही होता। ये पहेली बापू की समझ से परे थी।
एक दिन दोपहर को वे भितिहरवा आश्रम के ढ़ाई कोस पश्चिम में स्थित गांव कोलभील पहुंचे। यह गांव हड़बोड़ा नदी के किनारे बसा एक छोटा सा कस्बानुमा इलाका था। बाद में यह कस्बा नदी के कटाव में विलीन हो गया। बहरहाल, कोलभील में भ्रमण करने के दौरान बापू की नजर एक महिला पर पड़ी, जो काफी मैले-कुचैले कपड़े पहने हुए थी।
चौरसिया बताते हैं कि बापू ने उस महिला को देखने के बाद उस वक्त तो कुछ नहीं कहा, पर आश्रम लौटने पर कस्तूरबा को यह बात बताई। बापू ने कस्तूरबा से कहा कि उनकी जनसभाओं में भी जो महिलाएं आती हैं वे काफी गंदे कपड़े पहने होती हैं। जरा पता करो इसकी वजह क्या है।बापू के कहने पर कस्तूरबा कोलभील गईं और वहां उन्होंने एक महिला से गंदे रहने की वजह पूछी। इस सवाल पर पहले तो वह महिला चुप रही। फिर उसने कस्तूरबा का हाथ पकड़ा और उन्हें अपने घर के भीतर ले गई। महिला ने अपनी एक लोहे की संदूकची खोल कर कस्तूरबा के सामने कर दी और सवाल किया आप बताएं मैं गंदी न रहूं तो क्या करूं। मेरे पास सिर्फ यही एक धोती है, जिसका आधा हिस्सा धोकर में शेष आधा हिस्सा पहने रहती हैं। मेरा काम ऐसे ही चलता है।
कस्तूरबा दुखी मन से कोलभील से लौटीं और उन्होंने बापू के सामने सारा सच रख दिया। यह सुनने के बाद बापू ने उसी क्षण प्रण लिया कि वे अब पूरे कपड़े कभी धारण नहीं करेंगे। इसके बाद उन्होंने पूरे कपड़े त्याग कर खादी से बनी एक धोती से अपना शरीर ढक लिया। उसी दिन बापू ने यह प्रण भी लिया कि वे चरखा कातेंगे और अपने कपड़े खुद बुनेंगे तथा औरों को भी इसके लिए प्रेरित करेंगे।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।चौरसिया बताते हैं कि बापू ने उस महिला को देखने के बाद उस वक्त तो कुछ नहीं कहा, पर आश्रम लौटने पर कस्तूरबा को यह बात बताई। बापू ने कस्तूरबा से कहा कि उनकी जनसभाओं में भी जो महिलाएं आती हैं वे काफी गंदे कपड़े पहने होती हैं। जरा पता करो इसकी वजह क्या है।बापू के कहने पर कस्तूरबा कोलभील गईं और वहां उन्होंने एक महिला से गंदे रहने की वजह पूछी। इस सवाल पर पहले तो वह महिला चुप रही। फिर उसने कस्तूरबा का हाथ पकड़ा और उन्हें अपने घर के भीतर ले गई। महिला ने अपनी एक लोहे की संदूकची खोल कर कस्तूरबा के सामने कर दी और सवाल किया आप बताएं मैं गंदी न रहूं तो क्या करूं। मेरे पास सिर्फ यही एक धोती है, जिसका आधा हिस्सा धोकर में शेष आधा हिस्सा पहने रहती हैं। मेरा काम ऐसे ही चलता है।
कस्तूरबा दुखी मन से कोलभील से लौटीं और उन्होंने बापू के सामने सारा सच रख दिया। यह सुनने के बाद बापू ने उसी क्षण प्रण लिया कि वे अब पूरे कपड़े कभी धारण नहीं करेंगे। इसके बाद उन्होंने पूरे कपड़े त्याग कर खादी से बनी एक धोती से अपना शरीर ढक लिया। उसी दिन बापू ने यह प्रण भी लिया कि वे चरखा कातेंगे और अपने कपड़े खुद बुनेंगे तथा औरों को भी इसके लिए प्रेरित करेंगे।