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    मुजफ्फरपुर-समस्तीपुर फोरलेन के लिए अधिग्रहित जमीन की अवैध जमाबंदी होगी रद, डीएम से कार्रवाई का किया गया था आग्रह

    Updated: Mon, 15 Sep 2025 06:23 PM (IST)

    Muzaffarpur News अधिग्रहण के बावजूद रामदयालु से अतरदह तक बेच दी गई एनएचएआइ की जमीन। इसकी जानकारी होने के बाद परियोजना निदेशक ने डीएम से कार्रवाई करने का आग्रह किया था। इसके आलोक में मापी और सीमांकन की कवायद चल रही है। इसके बाद अवैध ढंग से कराई गई जमाबंदी कर दी जाएगी।

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    इस खबर में प्रतीकात्मक तस्वीर लगाई गई है।

     बाबुल दीप, मुजफ्फरपुर। मुजफ्फरपुर-समस्तीपुर फोरलेन के लिए वर्ष 1962 में रामदयालु से लेकर अतरदह तक अधिग्रहित जमीन को बेचने का मामला सामने आया था। इतना ही नहीं इसका दाखिल-खारिज भी करा लिया गया।

    एनएचएआइ के परियोजना निदेशक आशुतोष सिन्हा ने डीएम को पत्र भेजकर आवश्यक कार्रवाई करने का अनुरोध किया था। इसके आलोक में मुशहरी सीओ ने जांच की। अपर समाहर्ता राजस्व ने भी इसपर संज्ञान लिया। इस दौरान मुशहरी सीओ ने एनएचएआइ के परियोजना निदेशक से संपर्क किया।

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    उन्हें उक्त जमीन की मापी और सीमांकन करने को कहा गया है। इससे पता लगेगा कि कितनी जमीन का अधिग्रहण किया गया था। अधिग्रहण से संबंधित सभी कागजात का भी अवलोकन किया जाएगा। ताकि यह पता चल सके कि खतियानी रैयत में कौन है।

    सीओ महेंद्र प्रसाद शुक्ला के अनुसार इसमें देखा जाएगा कि खतियानी रैयत में किसका नाम है। इसी आधार पर अवैध जमाबंदी रद करने का प्रस्ताव अपर समाहर्ता को भेजा जाएगा। एनएचएआइ को इस दिशा में आवश्यक कार्रवाई करने को कहा गया है। इसके आलोक में एनएचएआइ ने मापी और सीमांकन की कवायद शुरू कर दी है।

    धड़ल्ले से बिक रही जमीन

    मुजफ्फरपुर-समस्तीपुर एनएच का करीब तीन हजार करोड़ रुपये से फोरलेन किया जाना है। यह टेंडर प्रक्रिया में है। इसी बीच एनएचएआइ की ओर से जब उक्त मार्ग का निरीक्षण किया गया तो पाया गया कि धड़ल्ले से जमीन की खरीद-बिक्री की जा रही है।

    उक्त भूमि पर कांप्लेक्स, मकान, कोचिंग समेत अन्य स्थायी निर्माण हो चुका है। पूर्व में भी परियोजना निदेशक ने जिला प्रशासन को तस्वीर समेत साक्ष्य सौंपते हुए जमीन की खरीद-बिक्री पर रोक लगाने का अनुरोध किया था, लेकिन संज्ञान नहीं लिया गया। इसके बाद पिछले माह फिर से रिमाइंडर भेजा गया, तब जिला प्रशासन हरकत में आया।

    एनएचएआइ की भी लापरवाही

    वर्ष 1962 में हाइवे निर्माण को लेकर करीब दो दर्जन रैयतों की जमीन का अधिग्रहण कर छोड़ दिया गया था। इसका दाखिल-खारिज नहीं कराया गया था। इसमें एनएचएआइ की भी लापरवाही सामने आई है।

    अगर उसी समय दाखिल-खारिज की प्रक्रिया पूरी हो जाती है तो यह परिस्थिति उत्पन्न नहीं होती। अब संरचनाओं को तोड़ना और दोबारा अधिग्रहण करने में एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ेगा। रैयत इसका विरोध भी कर सकते हैं।

    मामले की जानकारी सीओ से ली गई थी। उन्हें आवश्यक कार्रवाई करने को कहा गया है। मापी और सीमांकन के बाद पूरी स्थिति स्पष्ट होगी। इसके बाद प्रस्ताव मिलेगा तो जमाबंदी रद करने की प्रक्रिया की जाएगी।

    कुमार प्रशांत, अपर समाहर्ता, राजस्व