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Khudiram Bose की वीरता से नई पीढ़ी को रूबरू कराने के लिए बंगाल के युवा चला रहे ग्रीन अभियान

11 अगस्त 1908 का दिन था जब महज 18 साल की उम्र में मुजफ्फरपुर जेल में खुदीराम बोस को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया था। आज खुदीराम बोस की वीरता की कहानी से रूबरू कराने के लिए बंगाल के युवा हरित खुदीराम बोस नाम से अभियान चला रहे हैं। बता दें कि पिछले पांच वर्षों में युवा कई जगहों पर हजारों की संख्या में पौधा रोपण कर चुके हैं।

By Jagran NewsEdited By: Jagran News NetworkUpdated: Sat, 12 Aug 2023 08:35 AM (IST)
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पौधा लगा रहे हैं युवा। फोटो : जागरण
अमरेन्द्र तिवारी, मुजफ्फरपुर : बलिदानी खुदीराम बोस की यादों को संजोने के लिए युवा पीढ़ी काम कर रही है। बंगाल के मिदनापुर से हर साल करीब आधा दर्जन युवाओं व महिलाओं की टोली अमर शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारा में उन्हें नमन करने आती है। यहां से माटी (मिट्टी) और बूढ़ी गंडक से पानी ले जाकर बंगाल में पौधारोपण कर 'हरित खुदीराम बोस' अभियान चलाती है।

वर्ष 2019 में मिदनापुर कालेजियट स्कूल से इसकी शुरुआत हुई थी। खुदीराम बोस इसी स्कूल में पढ़ते थे। पौधों की देखभाल की जिम्मेदारी स्कूल के प्राचार्य व शिक्षक की होती है। पांच वर्षों में युवाओं की टोली पांच हजार से अधिक पौधे तीन दर्जन से अधिक स्कूलों में लगा चुकी है।

11 अगस्त, 1908 को महज 18 वर्ष की उम्र में मुजफ्फरपुर जेल में खुदीराम बोस को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया था। हरित खुदीराम बोस अभियान चलाने वाले समाजसेवी अरिंदम भौमिक कहते हैं कि नई पीढ़ी को खुदीराम बोस की वीरता की कहानी से रूबरू कराना हमारा उद्देश्य है।

पौधारोपण के दौरान स्कूलों में परिचर्चा भी करते हैं। अरिंदम भी मिदनापुर कालेजियट स्कूल के छात्र रहे हैं। वे हर साल खुदीराम के गिरफ्तारी स्थल, फांसी स्थल व चिताभूमि से मिट्टी तथा बूढ़ी गंडक से पानी लेकर मिदनापुर जाते हैं।

वहां की मिट्टी में शहादत भूमि की मिट्टी मिलाई जाती है। बूढ़ी गंडक के पानी को पांच सौ लीटर वाले पानी के ड्रम में मिलाया जाता है। मिट्टी के कलश में एक पौधे के साथ मिट्टी और बोतल में पानी का वितरण किया जाता है। अभियान में मुख्य रूप से अशोक, अमलताश व पीपल के पौधे लगाए जाते हैं।

घर पर तैयार की नर्सरी

अरिंदम ने अपने घर पर खुदीराम बोस हरित नर्सरी बनाई है। जून, जुलाई व अगस्त में प्रतिदिन एक से दो पौधे स्कूलों में लगाते हैं। उनके घर पर आकर भी लोग पौधा और माटी लेकर जाते हैं।

इस काम में उनका परिवार भी सहयोग करता है। अभियान के तहत अलग-अलग स्कूल के प्राचार्य, शिक्षक व बच्चे मिलकर पौधा लगाते हैं और खुदीराम बोस को याद करते हैं।

2019 में हरित खुदीरामबोस अभियान का आगाज

अरिंदम भौमिक ने बताया कि जिस मिदनापुर कालेजियट स्कूल में अमर शहीद खुदीराम बोस ने पढाई की थी। वहीं से इस अभियान का शुभारंभ आईपीएस अधिकारी मिदनापुर के तत्कालीन एसपी आलोक रजौरिया ने चंदन का पेड़ लगाकर किया था।

उसके बाद पश्चिमी मिदनापुर की जिलाधिकारी डा. रश्मिी कमल ने पौधारोपण कर अभियान को आगे बढ़ाया। इस अभियान में उनकी पत्नी रिंकी भौमिक, अरिंन, अरिक का पूरा सहयोग मिल रहा है।

मुजफ्फरपुर के कण-कण में खुदीराम बोस का बलिदान

'एक बार बिदाई दे मां घुरे आसी, हांसी-हांसी परबो फांसी, देखबे जोगोतबासी'। अमर शहीद खुदीराम बोस केंद्रीय कारा मुजफ्फरपुर की दीवार पर अंकित ये पंक्तियां बताती हैं कि खुदीराम बोस ने किस तरह हंसते हुए फांसी के फंदे को चूमा था।

उनका बलिदान मुजफ्फरपुर के कण-कण में बसा है। फांसी स्थल हो या फिर चिताभूमि। वह रेलवे स्टेशन जहां पकड़े गए। कोर्ट रूम जहां सुनवाई हुई। ये सभी स्थल देश के लिए मर मिटने की प्रेरणा देते हैं। क्रांतिकारियों को अपमानित करने और दंड देने के लिए कलकत्ता (अब कोलकाता) का जज डगलस किंग्सफोर्ड बदनाम था।

क्रांतिकारियों ने उसे मारने की योजना बनाई, इसी बीच उसका तबादला मुजफ्फरपुर हो गया। उसकी हत्या का जिम्मा खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी को दिया गया। दोनों बंगाल से मुजफ्फरपुर पहुंचे।

वैनी स्टेशन पर पकड़े गए थे खुदीराम बोस

30 अप्रैल, 1908 को कंपनीबाग में यूरोपियन क्लब (अब मुजफ्फरपुर क्लब) के बाहर एक बग्घी पर बोस ने बम फेंका। इसपर किंग्सफोर्ड की जगह दूसरे अंग्रेज अधिकारी की पत्नी और बेटी थीं। विस्फोट से दोनों की मौत हो गई। खुदीराम बोस समस्तीपुर के पास वैनी स्टेशन पर पकड़े गए। सुनवाई के बाद उन्हें मृत्युदंड की सजा मिली।

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