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बिहार के मधुबनी में महाकवि कालिदास को मां भगवती से मिला था ज्ञान का वरदान

कालिदास के कृति की याद दिलाता है मधुबनी का उच्चैठ स्थित कालिदास डीह स्थल। उच्चैठ में कालीदास के नाम पर चल रहा साइंस कॉलेज। हर साल कालीदास के नाम पर उच्चैठ में हो रहा राजकीय महोत्सव। पर्यटन स्थल का दर्जा दिलाने की वर्षों से मांग कर रहे स्थानीय लोग।

By Murari KumarEdited By: Updated: Fri, 19 Feb 2021 12:47 PM (IST)
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बिहार के मधुबनी में महाकवि कालिदास को मां भगवती से मिला था ज्ञान का वरदान।
मधुबनी, जागरण संवाददाता। जिले के बेनीपट्टी प्रखंड मुख्यालय से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित उच्चैठ स्थान का महाकवि कालिदास से गहरा नाता रहा है। उच्चैठ गांव स्थित महाकवि कालिदास डीह स्थल आज भी लोगों को उनकी कृति की याद दिलाता है। यह डीह स्थल संस्कृत भाषा के महाकवि कालिदास के सिद्ध स्थली के रुप में भी जाना जाता है। यहां कालिदास के नाम से एक डिग्री साइंस कॉलेज संचालित है, जो आज भी इस महाकवि की यादों को स्मारित करा रही है। बेनीपट्टी के उच्चैठ में कालिदास डीह स्थल महाविद्यालय से दो सौ मीटर उंचे टीले पर अवस्थित है। डीह स्थल से उत्तर दिशा की ओर मां छिन्नमस्तिका भगवती का प्राचीन मंदिर अवस्थित है। यह उच्चैठ भगवती के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि उच्चैठ भगवती मंदिर में मां भगवती से कालिदास को वरदान मिला था। मान्यता है कि भगवती देवी को प्रसन्न करने पर कालिदास को ज्ञान का वरदान मिला था। जिससे महाकवि कालीदास के रूप में प्रसिद्ध हुए।

कालिदास डीह को विकसित करने की पहल 

मिथिलांचल के ऐतिहासिक व धार्मिक पौराणिक स्थल शक्तिपीठ उच्चैठ भगवती स्थान एवं महाकवि कालिदास के डीह को पर्यटन विभाग की ओर से विकसित करने एवं पर्यटन स्थल के पटल पर लाने के लिए कार्य शुरू किया गया है। इसको लेकर उच्चैठ में कालिदास के नाम पर दो दिवसीय राजकीय महोत्सव मनाया जा रहा है। अक्टूबर माह में मनाए जाने वाले इस राजकीय महोत्सव में महाकवि कालिदास और उनके डीह स्थल की गरिमा बहाल रखने के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास शुरू किए गए हैं। 

पर्यटन स्थल का दर्जा मिलने से तेजी से होगा विकास 

इस ऐतिहासिक स्थल को अब तक पर्यटन स्थल का दर्जा नहीं मिला है। स्थानीय लोग वर्षों से इसकी मांग करते रहे हैं। पर्यटन स्थल का दर्जा मिलने से इस क्षेत्र का तेजी से विकास हो सकेगा। स्थानीय स्तर पर रोजगार में भी वृद्धि होगी। इस दिशा में अब तक पहल नहीं हो पाई है। नतीजा, उच्चैठ स्थल की काफी भूमि अतिक्रमण का शिकार हो चुकी है।

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