हथकरघा दिवस:चरखा न होता तो बच्चों को नहीं दे पाते बेहतर शिक्षा; इतना बोल भावुक हुईं पिंकी..जानिए क्या है कहानी
सात अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया जाता है। आज ही के दिन वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री ने इसकी शुरुआत की थी। तब से हर साल हथकरघा दिवस मनाया जाता है। हथकरघा दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य लघु और मध्यम उद्योग को बढ़ावा देना है। मुजफ्फरपुर में स्वदेशी आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए महिलाएं चरखा चला रही हैं। जिससे उनके परिवार और बच्चों का भरन पोषण हो रहा है।
अमरेन्द्र तिवारी, मुजफ्फरपुर।National Handloom Day 2023: सात अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया जाता है। आज ही के दिन वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री ने इसकी शुरुआत की थी। तब से हर साल हथकरघा दिवस मनाया जाता है। हथकरघा दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य लघु और मध्यम उद्योग को बढ़ावा देना है।
मुजफ्फरपुर में स्वदेशी आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए महिलाएं चरखा चला रही हैं। जिला खादी ग्रामोद्योग संघ के मंत्री बीरेन्द्र कुमार ने कहा कि संघ की ओर से 487 चरखे चल रहे हैं। सभी पर महिलाएं काम कर रही हैं।
घर का काम पूरा करने के बाद प्रतिदिन इन्हें तीन से चार घंटे काम के लिए 100 से 150 रुपये मिल जाते हैं। बिहार खादी ग्रामोद्योग संघ सर्वोदय ग्राम परिसर में काम कर रही एक महिला ने कहा कि सर यह चरखा न होता तो शायद बच्चों को बेहतर शिक्षा नहीं दे पाते।
बगाही ढोली की पिंकी कुमारी इतना कहकर भावुक हो जाती हैं। पिंकी ने बताया कि उसको 2019 में पता चला कि बिहार खादी ग्रामोद्योग संघ सर्वोदय ग्राम परिसर में रोजगारसृजन का काम हो रहा। वह यहां से जुड़ी तथा चरखा चलाने लगीं। जब वह चरखा अभियान से जुड़ीं, बेटी सातवीं, एक बेटा पांचवां और दूसरा चौथी कक्षा में पढ़ रहा था।
बच्चों के कोचिंग का इंतजाम यहां से मिलने वाली राशि से हुआ। वह बताती हैं कि यह पार्ट टाइम काम है। घर का काम निपटाने के बाद वहां पर जाकर काम करते हैं। हर माह करीब 2500 से 3000 हजार तक आमदनी हो जाती है।
शोभा कुमारी बताती हैं कि वह 2017 से चरखा चल रही हैं। यहां से जो आमदनी होती, उससे अपना निजी काम हो जाता है। जितना चरखा चलेगा, उतनी आमदनी होती है। औसत 100 से 200 के बीच आमदनी हो जाती है। घर पर भी चरखा चलाकर आप आमदनी कर सकते हैं।
स्वदेशी आंदोलन को बल दे रहा चरखा
मुजफ्फरपुर में स्वदेशी आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए महिलाएं चरखा चला रही हैं। जिला खादी ग्रामोद्योग संघ के मंत्री बीरेन्द्र कुमार ने कहा कि संघ की ओर से 487 चरखे चल रहे हैं। सभी पर महिलाएं काम कर रही हैं। घर का काम पूरा करने के बाद प्रतिदिन इन्हें तीन से चार घंटे काम के लिए 100 से 150 रुपये मिल जाते हैं।
इनके बनाए धागे से तैयार वस्त्रों को राज्य के विभिन्न जिलों के बाहर जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, गुजरात, बंगाल, असम आदि जगह पर भेजा जा रहा है। जिला खादी पदाधिकारी रिजवान अहमद ने बताया कि खादी उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए खादी पुनरुद्धार योजना का लाभ मिल रहा है।
इसके लिए सरकार चरखा और करघा पर 90 प्रतिशत अनुदान तथा चार प्रतिशत ब्याज पर कार्यशील पूंजी उपलब्ध करा रही है। बिहार खादी ग्रामोद्योग संघ व अन्य संस्थाओं को सहयोग किया जा रहा, ताकि अधिक से अधिक महिलाएं रोजगार पा सकें।
कौशल्या खादी ग्रामोत्थान समिति सुरजन पकड़ी के सचिव मुकेश कुमार ने बताया कि उनके यहां 15 चरखा तथा तीन करघे चल रहे हैं। अभी 80 लोग को रोजगार मिला है। यहां से तैयार कपड़े को पश्चिम बंगाल व अन्य जगह पर भेजा जाता है।
हथकरघा दिवस का यह इतिहास
साल 1905 में लार्ड कर्जन ने बंगाल के विभाजन की घोषणा की थी। इसी दिन कोलकाता के टाउनहॉल में एक जनसभा से स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत हुई थी। इसी घटना की याद में हर साल सात अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया जाता है।
7 अगस्त 2015 में प्रधानमंत्री ने इस दिन की शुरुआत की थी। तब से हर साल इस दिन को मनाया जाता है। हथकरघा दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य लघु और मध्यम उद्योग को बढ़ावा देना है।