मुजफ्फरपुर की शाही लीची: तमिलनाडु और महाराष्ट्र में भी होंगे बाग, ताजे फल खाने के लिए नहीं करना होगा इंतजार
मुजफ्फरपुर के शाही लीची के पौधे अब दक्षिण और पश्चिम भारत में भी लहलहाएंगे। तमिलनाडु और महाराष्ट्र की धरती पर शाही लीची का दायरा बढ़ाने को लेकर राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र पहल कर रहा है। इसको लेकर परिसर में लीची बैंक की स्थापना की गई है। इस बैंक में 37 हजार पौधे तैयार किए जा रहे हैं। इन पौधों को अलग-अलग राज्यों में किसानों के बीच भेजा जाएगा।
By Jagran NewsEdited By: Jagran News NetworkUpdated: Fri, 04 Aug 2023 06:03 PM (IST)
अमरेन्द्र तिवारी, मुजफ्फरपुर: मुजफ्फरपुर के शाही लीची के पौधे अब दक्षिण और पश्चिम भारत में भी लहलहाएंगे। तमिलनाडु और महाराष्ट्र की धरती पर शाही लीची का दायरा बढ़ाने को लेकर राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र पहल कर रहा है।
इसको लेकर परिसर में लीची बैंक की स्थापना की गई है। इस बैंक में 37 हजार पौधे तैयार किए जा रहे हैं। इन पौधों को अलग-अलग राज्यों में किसानों के बीच भेजा जाएगा।
लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ.बिकास दास ने बताया कि परिसर के पौधशाला की क्षमता 50 हजार पौधे की है। अभी यहां 37 हजार नए पौधे तैयार किए जा रहे हैं। इसकी विधिवत देखभाल भी की जाती है। इसके लिए एक विज्ञानी को पौधशाला देखने की जिम्मेदारी दी गई है।
इस पौधशाला में शाही व चाइना के साथ-साथ अनुसंधान की ओर से विकसित तीन प्रजातियां गंडकी योगिता, गंडकी लालिमा और गंडकी संपदा भी हैं।
समय-समय पर पौधों का लिया जाता अपडेट
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र निदेशक ने बताया कि जो भी किसान पौधा ले जाते हैं, उनका पूरा पता व मोबाइल नंबर रखा जाता है। जिससे किसान से समय-समय पर बातचीत होती रहे और पौधे के वृद्धि की जानकारी मिलती रहे।उन्होंने कहा कि लीची का पौधा सात साल में पूरी तरह तैयार हो जाता है। उसके बाद उसमें फल आने लगता है। किसान अगर पौधा लेना चाहते हैं, तो उनको एक सौ रुपये प्रति पौधा देना पड़ता है।
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